10885233057?profile=RESIZE_584x

अध्याय सोलह – पयोव्रत पूजा विधि का पालन करना (8.16)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन! जब अदिति के पुत्र देवतागण स्वर्गलोक से अदृश्य हो गये और असुरों ने उनका स्थान ग्रहण कर लिया तो अदिति इस प्रकार विलाप करने लगी मानो उसका कोई रक्षक न हो।

2 महान शक्तिशाली कश्यपमुनि कई दिनों बाद जब ध्यान की समाधि से उठे और घर लौटे तो देखा कि अदिति के आश्रम में न तो हर्ष है, न उल्लास।

3 हे कुरुश्रेष्ठ! भलीभाँति सम्मान तथा स्वागत किये जाने के बाद कश्यपमुनि ने आसन ग्रहण किया और अत्यन्त उदास दिख रही अपनी पत्नी अदिति से इस प्रकार कहा।

4 हे भद्रे! मुझे आश्चर्य है कि कहीं धर्म पर, ब्राह्मण वर्ग या काल की सोच के अधीन जनता को कुछ हो तो नहीं गया?

5 हे गृहस्थ जीवन में अनुरक्त मेरी पत्नी! यदि कोई गृहस्थ जीवन में धर्म, अर्थ तथा काम का समुचित पालन करता है, तो उसके कार्यकलाप एक अध्यात्मवादी (योगी) के ही समान श्रेष्ठ होते हैं। मुझे आश्चर्य है कि क्या इन नियमों के पालन में कोई त्रुटि आ गई है?

6 मुझे आश्चर्य है कि कहीं तुम अपने परिवार के सदस्यों में अत्यधिक आसक्त रहने के कारण अचानक आए अतिथियों का ठीक से स्वागत नहीं कर पाई और वे बिना सत्कार के ही वापस चले गये?

7 जिन घरों में मेहमान एक गिलास जल भेंट किए गए बिना वापस चले जाते हैं, वे घर खेतों के उन बिलों के समान हैं जिनमें सियार रहते हैं।

8 हे सती तथा शुभे! जब मैं घर से अन्य स्थानों को चला गया तो क्या तुम इतनी चिन्तित थीं कि अग्नि में घी की आहुति भी नहीं दे सकीं?

9 एक गृहस्थ अग्नि तथा ब्राह्मणों की पूजा करके उच्च लोकों में निवास करने के वांछित लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है क्योंकि यज्ञ की अग्नि तथा ब्राह्मणों को समस्त देवताओं के परमात्मा स्वरूप भगवान विष्णु का मुख माना जाना चाहिए।

10 हे मनस्विनि! तुम्हारे सारे पुत्र कुशलपूर्वक तो हैं? तुम्हारे म्लान मुख को देखकर मुझे लगता है कि तुम्हारा मन शान्त नहीं है। ऐसा क्यों है?

11 अदिति ने कहा: हे मेरे पूज्य ब्राह्मण पति! ब्राह्मण, गाएँ, धर्म तथा अन्य लोग सभी कुशलपूर्वक हैं। हे मेरे घर के स्वामी! धर्म, अर्थ तथा काम ये तीनों गृहस्थ जीवन में ही फलते फूलते हैं जिसके फलस्वरूप यह जीवन सौभाग्य से पूर्ण होता है।

12 हे प्रिय पति! मैं अग्नि, अतिथि, सेवक तथा भिखारी इन सबका समुचित ध्यान रखती रही हूँ। चूँकि मैं सदैव आपका चिन्तन करती रही हूँ अतएव धर्म में किसी प्रकार की उपेक्षा की सम्भावना नहीं रही।

13 हे स्वामी! जब आप प्रजापति हैं और धर्म के सिद्धान्तों के पालन में साक्षात मेरे उपदेशक हैं, तो फिर मेरी इच्छाओं के पूरा न होने में क्या सम्भावना रह सकती है?

14 हे मरीचि पुत्र! आप महापुरुष होने के कारण असुरों तथा देवताओं के प्रति समभाव रखते हैं क्योंकि वे या तो आपके शरीर से उत्पन्न हैं या आपके मन से। वे सतो, रजो तथा तमो गुणों में से किसी न किसी गुण से युक्त हैं। लेकिन परम नियन्ता भगवान समस्त जीवों पर समदर्शी होते हुए भी भक्तों पर विशेष रूप से अनुकूल रहते हैं।

15 अतएव हे भद्र स्वामी! अपनी दासी पर कृपा कीजिये। हमारे प्रतिद्वन्द्वी असुरों ने अब हमें ऐश्वर्य तथा घर-बार से विहीन कर दिया है। कृपा करके हमें संरक्षण प्रदान कीजिये।

16 अत्यन्त शक्तिशाली शत्रु असुरों ने हमारा ऐश्वर्य, सौन्दर्य, यश--यहाँ तक कि हमारा घर भी हमसे छीन लिया है। दरअसल अब हमें वनवास दे दिया गया है और हम विपत्ति के सागर में डूबे जा रहे हैं।

17 हे श्रेष्ठ साधु, हे कल्याण करने वाले परम श्रेष्ठ! हमारी स्थिति पर विचार करें और मेरे पुत्रों को ऐसा वर दें जिससे वे अपनी खोई हुई वस्तुएँ फिर से प्राप्त कर सकें।

18 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: जब अदिति ने कश्यप मुनि से इस प्रकार प्रार्थना की तो वे कुछ मुस्काये और उन्होंने कहा "ओह! भगवान विष्णु की माया कितनी प्रबल है, जिससे सारा संसार बच्चों के स्नेह से बँधा रहता है।"

19 कश्यप मुनि ने आगे कहा: यह पाँच तत्त्वों से बना भौतिक शरीर है क्या? यह आत्मा से भिन्न है। निस्सन्देह, आत्मा उन भौतिक तत्त्वों से सर्वथा भिन्न है जिनसे यह शरीर बना हुआ है। किन्तु शारीरिक आसक्ति के कारण ही किसी को पति या पुत्र माना जाता है। ये मोहमय सम्बन्ध अज्ञान के कारण उत्पन्न होते हैं।

20 हे अदिति! तुम उन भगवान की भक्ति में लगो जो हरेक के स्वामी, शत्रुओं का दमन करने वाले तथा जो सबके हृदय में आसीन रहते हैं। वे ही परम पुरुष, श्रीकृष्ण अथवा वासुदेव, सबको शुभ वरदान दे सकते हैं क्योंकि वे विश्व के स्वामी हैं।

21 दीनों पर अत्यन्त दयालु भगवान तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करेंगे क्योंकि उनकी भक्ति अच्युत है। भक्ति के अतिरिक्त अन्य सारी विधियाँ व्यर्थ हैं। ऐसा मेरा मत है।

22 श्रीमती अदिति ने कहा: हे ब्राह्मण! मुझे वह विधि-विधान बतलाये जिससे मैं जगन्नाथ की पूजा कर सकूँ और भगवान मुझसे प्रसन्न होकर मेरी समस्त इच्छाओं को पूरा कर दें।

23 हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! कृपा करके मुझे भगवान की भक्तिपूर्वक पूजा की पूर्ण विधि का उपदेश दें जिससे भगवान मुझ पर तुरन्त ही प्रसन्न हो जायें और मुझे मेरे पुत्रों सहित इस अत्यन्त संकटपूर्ण परिस्थिति से उबार लें।

24 श्री कश्यप मुनि ने कहा: जब मुझे सन्तानों की इच्छा हुई तो मैंने कमलपुष्प से उत्पन्न होनेवाले ब्रह्माजी से जिज्ञासा की। अब मैं तुम्हें वही विधि बतलाऊँगा जिसका उपदेश ब्रह्माजी ने मुझे दिया था और जिससे भगवान केशव तुष्ट होते हैं।

25 फाल्गुन मास (फरवरी-मार्च) के शुक्ल पक्ष में द्वादशी के बारह दिनों तक मनुष्य को केवल दूध पर आश्रित रहकर व्रत रखना चाहिए और भक्तिपूर्वक कमलनयन भगवान की पूजा करनी चाहिए।

26 यदि सुअर द्वारा खोदी गई मिट्टी उपलब्ध हो तो अमावस्या के दिन अपने शरीर पर इस मिट्टी का लेप करे और बहती नदी में स्नान करे। स्नान करते समय निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करे।

27 हे माता पृथ्वी! तुम्हारे द्वारा ठहरने के लिए स्थान पाने की इच्छा करने पर भगवान ने वराह रूप में तुम्हें ऊपर निकाला था। मैं प्रार्थना करता हूँ कि कृपा करके मेरे पापी जीवन के सारे फलों को आप विनष्ट कर दें। मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

28 तत्पश्चात वह अपने नित्य तथा नैमित्तिक आध्यात्मिक कार्य करे और तब बड़े ही मनोयोग से भगवान के अर्चाविग्रह की पूजा करे। साथ ही वेदी, सूर्य, जल, अग्नि तथा गुरु को भी पूजे।

29 हे भगवान, हे महानतम, हे सबके हृदय में वास करने वाले तथा जिनमें सभी जीव वास करते हैं, हे प्रत्येक वस्तु के स्वामी, हे सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वव्यापी पुरुष वासुदेव! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

30 हे परम पुरुष! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। अत्यन्त सूक्ष्म होने के कारण आप भौतिक आँखों से कभी नहीं दिखते। आप चौबीस तत्त्वों के ज्ञाता हैं और आप सांख्य योगपद्धति के सूत्रपात-कर्ता हैं।

31 हे भगवान! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ, जिनके दो सिर (प्रायणीय तथा उदानीय) तीन पाँव (सवन-त्रय) चार सींग (चार वेद) तथा सात हाथ (सप्त छन्द यथा गायत्री) हैं। मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ, जिनका हृदय तथा आत्मा तीनों वैदिक काण्डों (कर्मकाण्ड, ज्ञानकाण्ड तथा उपासना काण्ड) हैं तथा जो इन काण्डों को यज्ञ के रूप में विस्तार करते हैं।

32 हे शिव, हे रुद्र! मैं समस्त शक्तियों के आगार, समस्त ज्ञान के भण्डार तथा प्रत्येक जीव के स्वामी आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

33 हिरण्यगर्भ में स्थित, जीवन के स्रोत, प्रत्येक जीव के परमात्मा स्वरूप आपको मैं सादर नमस्कार करता हूँ। आपका शरीर समस्त योग के ऐश्वर्य का स्रोत है। मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

34 मैं आदि भगवान, प्रत्येक के हृदय में स्थित साक्षी तथा मनुष्य रूप में नर-नारायण ऋषि के अवतार आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

35 हे पीताम्बरधारी भगवान! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। आपके शरीर का रंग मरकत मणि जैसा है और आप लक्ष्मीजी को पूर्णतः वश में रखने वाले हैं। हे भगवान केशव! मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ।

36 हे परम पूज्य भगवान, हे वरदायकों में सर्वश्रेष्ठ! आप हरेक की इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं अतएव जो धीर हैं, वे अपने कल्याण के लिए आपके चरणकमलों की धूल को पूजते हैं।

37 सारे देवता तथा लक्ष्मीजी भी उनके चरणकमलों की सेवा में लगी रहती हैं। दरअसल, वे उन चरणकमलों की सुगन्ध का आदर करते हैं। ऐसे भगवान मुझ पर प्रसन्न हों।

38 कश्यप मुनि ने आगे कहा: इन सभी मंत्रों के उच्चारण द्वारा भगवान का श्रद्धा तथा भक्ति के साथ स्वागत करके एवं उन्हें पूजा की वस्तुएँ (पाद्य तथा अर्ध्य) अर्पित करके मनुष्य को केशव अर्थात हृषीकेश अर्थात भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।

39 `सर्वप्रथम भक्त को द्वादश अक्षर मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और फूल की माला, अगुरु इत्यादि अर्पित करने चाहिए। इस प्रकार से भगवान की पूजा करने के बाद भगवान को दूध से नहलाना चाहिए और उन्हें उपयुक्त वस्त्र तथा यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाकर गहनों से सजाना चाहिए। तत्पश्चात भगवान के चरणों का प्रक्षालन करने के लिए जल अर्पित करके सुगन्धित पुष्प, अगुरु तथा अन्य सामग्री से भगवान की पुनः पूजा करनी चाहिए।

40 यदि सामर्थ्य हो तो भक्त अर्चाविग्रह पर दूध में घी तथा गुड़ के साथ पकाये चावल अर्थात खीर चढ़ाए। उसी मूल मंत्र का उच्चारण करते हुए यह सामग्री अग्नि में डाली जाये।

41 उसे चाहिए कि वह सारा प्रसाद या उसका कुछ अंश किसी वैष्णव को दे और तब कुछ प्रसाद स्वयं ग्रहण करे। तत्पश्चात अर्चाविग्रह को आचमन कराए और तब पान सुपारी चढ़ाकर फिर से भगवान की पूजा करे।

42 तत्पश्चात उसे चाहिए कि वह मन ही मन में 108 बार मंत्र का जप करे और भगवान की महिमा की स्तुतियाँ करे। तब वह भगवान की प्रदक्षिणा करे और अन्त में परम सन्तोष तथा प्रसन्नतापूर्वक भूमि पर लोटकर (दण्डवत) प्रणाम करे।

43 अर्चाविग्रह पर चढ़ाये गये जल तथा सभी फूलों को अपने सिर से छूने के बाद उन्हें किसी पवित्र स्थान पर उँड़ेल दे। तब कम से कम दो ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराए।

44-45 जिन सम्मान्य ब्राह्मणों को भोजन कराया हो उनका भलीभाँति सत्कार करे और तब उनकी अनुमति से अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों सहित स्वयं प्रसाद ग्रहण करे। उस रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे और दूसरे दिन प्रातः स्नान करने के बाद अत्यन्त शुद्धता तथा ध्यान के साथ अर्चाविग्रह को दूध से स्नान कराए और विस्तारपूर्वक पूर्वोक्त विधियों के अनुसार उनकी पूजा करे।

46 केवल दूधपान करके और श्रद्धा तथा भक्तिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करते हुए भक्त इस व्रत का पालन करे। उसे चाहिए कि वह अग्नि में हवन करे और पूर्वोक्त विधि से ब्राह्मणों को भोजन कराए।

47 इस तरह बारह दिनों तक प्रतिदिन भगवान का पूजन, नैत्यिक कर्म, हवन तथा ब्राह्मण-भोजन सम्पन्न कराकर यह पयोव्रत सम्पन्न किया जाये।

48 प्रतिपदा से लेकर अगले शुक्लपक्ष की तेरस (शुक्ल त्रयोदशी) तक पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे, फर्श पर सोये, प्रतिदिन तीन बार स्नान करे और इस व्रत को सम्पन्न करे।

49 इस अवधि में सांसारिक प्रपंचों या इन्द्रियतृप्ति के विषय पर अनावश्यक चर्चा न चलाये, वह सारे जीवों के प्रति ईर्ष्या से पूर्णतया मुक्त रहे और भगवान वासुदेव का शुद्ध एवं सरल भक्त बने।

50 तत्पश्चात शास्त्रविद ब्राह्मणों की सहायता से शास्त्रों के आदेशानुसार शुक्लपक्ष की तेरस को भगवान विष्णु को पञ्चामृत (दूध, दही, घी, चीनी तथा शहद) से स्नान कराये।

51-52 धन न खर्च करने में कंजूसी की आदत छोड़कर अन्तर्यामी भगवान विष्णु की भव्य पूजा का आयोजन करे। मनुष्य को चाहिए कि वह अत्यन्त मनोयोग से घी में पकाये अन्न तथा दूध से आहुति (हव्य) तैयार करे और पुरुष-सूक्त मंत्रोच्चार करे और विविध स्वादों वाले भोजन अर्पण करे। इस प्रकार मनुष्य को भगवान का पूजन करना चाहिए।

53 मनुष्य को चाहिए कि वह वैदिक साहित्य में पारंगत गुरु (आचार्य) को तुष्ट करे और उनके सहायक पुरोहितों को (जो होता, उदगाता, अध्वर्यु तथा ब्राह्मण कहलाते हैं) तुष्ट करे। उन्हें वस्त्र, आभूषण तथा गाएँ देकर प्रसन्न करे। यही विष्णु-आराधन अर्थात भगवान विष्णु की आराधना का अनुष्ठान है।

54 हे परम पवित्र स्त्री! मनुष्य को चाहिए कि वह ये सारे अनुष्ठान विद्वान आचार्यों के निर्देशानुसार सम्पन्न करे और उन्हें तथा उनके पुरोहितों को तुष्ट करे। उसे चाहिए कि प्रसाद वितरण करके ब्राह्मणों को तथा वाहन पर एकत्र हुए लोगों को भी तुष्ट करे।

55 मनुष्य को चाहिए कि गुरु तथा सहायक पुरोहितों को वस्त्र, आभूषण, गाएँ तथा कुछ धन का दान देकर प्रसन्न करे तथा प्रसाद वितरण द्वारा वहाँ पर आये सभी लोगों को यहाँ तक कि सबसे अधम व्यक्ति चाण्डाल (कुत्ते का माँस खाने वाले) को भी तुष्ट करे।

56 मनुष्य को चाहिए कि वह दरिद्र अन्धे, अभक्त तथा अब्राह्मण हर व्यक्ति को विष्णु प्रसाद बाँटे। यह जानते हुए कि जब हरेक व्यक्ति पेट भरकर विष्णु-प्रसाद पा लेते है तो भगवान विष्णु परम प्रसन्न होते हैं। यज्ञकर्ता को अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों के साथ-साथ प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

57 प्रतिपदा से त्रयोदशी तक इस अनुष्ठान को मनुष्य प्रतिदिन नाच, गाना, बाजा, स्तुति तथा शुभ मंत्रोच्चार एवं श्रीमदभागवत के पाठ के साथ-साथ जारी रखे। इस प्रकार मनुष्य भगवान की पूजा करे।

58 यह धार्मिक अनुष्ठान पयोव्रत कहलाता है, जिसके द्वारा भगवान की पूजा की जा सकती है। यह ज्ञान मुझे अपने पितामह ब्रह्माजी से मिला और अब मैंने विस्तार के साथ इसका वर्णन तुमसे किया है।

59 हे परम भाग्यशालिनी! तुम अपने मन को शुद्ध भाव में स्थिर करके इस पयोव्रत विधि को सम्पन्न करो और इस तरह अच्युत भगवान केशव की पूजा करो।

60 यह पयोव्रत सर्वयज्ञ भी कहलाता है। दूसरे शब्दों में, इस यज्ञ को सम्पन्न कर लेने पर अन्य सारे यज्ञ स्वतः सम्पन्न हो जाते हैं। इसे समस्त अनुष्ठानों में सर्वश्रेष्ठ भी माना गया है। हे भद्रे! यह समस्त तपस्याओं का सार है और दान देने तथा परम नियन्ता को प्रसन्न करने की विधि है ।

61 अधोक्षज कहलाने वाले दिव्य भगवान को प्रसन्न करने की यह सर्वोत्तम विधि है। यह समस्त विधि-विधानों में श्रेष्ठ है, यह सर्वश्रेष्ठ तपस्या है, दान देने की और यज्ञ की सर्वश्रेष्ठ विधि है।

62 अतएव हे भद्रे! तुम विधि-विधानों का दृढ़ता से पालन करते हुए इस आनुष्ठानिक व्रत को सम्पन्न करो। इस विधि से परम पुरुष तुम पर शीघ्र ही प्रसन्न होंगे और तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करेंगे।

( समर्पित एवं सेवारत जगदीश चन्द्र चौहान )

 

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT

Comments

  • 🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
This reply was deleted.