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अध्याय ग्यारह – इन्द्र द्वारा असुरों का संहार (8.11)

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: तत्पश्चात भगवान श्रीहरि की परम कृपा से इन्द्र, वायु इत्यादि सारे देवता जीवित हो गये। इस प्रकार जीवित होकर सारे देवता उन्हीं असुरों को बुरी तरह पीटने लगे जिन्होंने पहले उन्हें परास्त किया था।

2 जब सर्वाधिक शक्तिशाली इन्द्र क्रुद्ध हो गए और उन्होंने महाराज बलि को मारने के लिए अपने हाथ में वज्र ले लिया तो सारे असुर "हाय हाय" चिल्लाकर शोक करने लगे।

3 गम्भीर, सहिष्णु तथा लड़ने के साज-सामान से भलीभाँति सज्जित बलि महाराज उस विशाल युद्धस्थल में इन्द्र के सामने घूम रहे थे। सदा हाथ में वज्र लिये रहने वाले इन्द्र ने बलि महाराज को इस प्रकार तिरस्कारपूर्वक ललकारा।

4 इन्द्र ने कहा: रे धूर्त! जिस प्रकार ठग बच्चे की आँखों पर पट्टी बाँधकर कभी-कभी उसका धन चुरा ले जाता है उसी प्रकार तुम यह जानते हुए कि हम सब ऐसी माया-शक्तियों के स्वामी हैं, अपनी मायाशक्ति दिखलाकर हमें परास्त करना चाहते हो।

5 उन मूर्खों तथा धूर्तों को जो माया या तांत्रिक साधनों से उच्चलोकों तक पहुँचना चाहते हैं या जो उच्चलोकों को भी पार करके वैकुण्ठलोक या मुक्ति प्राप्त करना चाहते हैं, मैं उन्हें ब्रह्माण्ड के सबसे निम्न भाग में भिजवा देता हूँ।

6 वही शक्तिशाली मैं इन्द्र आज हजारों तेज धारों वाले वज्र से तुम्हारे सिर को शरीर से काटकर अलग कर दूँगा। यद्यपि तुम माया द्वारा पर्याप्त चमत्कार दिखा सकते हो, किन्तु तुम्हारा ज्ञान अत्यल्प है। अब तुम अपने सम्बन्धियों तथा सहायकों सहित युद्धभूमि में ठहरे रहने की ही चेष्टा कर लो।

7 बलि महाराज ने उत्तर में कहा: सभी लोग जो इस युद्धभूमि में उपस्थित हैं निश्चय ही नित्य काल के वश में हैं और वे अपने नियत कर्मों के अनुसार क्रमशः यश, विजय, पराजय तथा मृत्यु प्राप्त करेंगे।

8 काल की गतियों को देखकर, जो लोग वास्तविक सत्य से अवगत हैं, वे विभिन्न परिस्थितियों के लिए न तो हर्षित होते हैं, न सोचते हैं। चूँकि तुम लोग अपनी विजय पर हर्षित हो अतः तुम्हें अत्यन्त विद्वान नहीं माना जा सकता।

9 तुम देवता लोग स्वयं को अपनी ख्याति तथा विजय प्राप्त करने का कारण मानते हो। तुम लोगों की अज्ञानता के कारण साधु पुरुष तुम्हारे लिए शोक करते हैं। अतएव तुम्हारे वचन मर्मस्पर्शी होते हुए भी हमें स्वीकार्य नहीं है।

10 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: स्वर्ग के राजा इन्द्र को इस प्रकार कटु वचनों से फटकारने के बाद वीरों का मर्दन करने वाले बलि महाराज ने नाराच बाणों को अपने कान तक खींचा और उनसे इन्द्र पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने पुनः इन्द्र को कठोर शब्दों में फटकार लगायी।

11 चूँकि महाराज बलि की फटकारें सत्य थीं अतएव इन्द्र तनिक भी खिन्न नहीं हुआ जिस तरह कोई हाथी महावत द्वारा अंकुश से पीटा जाने पर भी कभी-कभी विचलित नहीं होता।

12 जब शत्रुओं को हराने वाले इन्द्र ने अमोघ वज्र बलि महाराज पर उन्हें मारने की इच्छा से चलाया तो बलि महाराज वायुयान समेत भूमि पर गिर पड़े मानो कोई पर्वत पंख काटे जाने से गिरा हो।

13 जब जम्भासुर ने देखा कि उसका मित्र बलि गिर गया है, तो वह उसके शत्रु इन्द्र के समक्ष प्रकट हुआ मानो मैत्रीपूर्ण आचरण से बलि महाराज की सेवा करने के लिए आया हो।

14 अत्यन्त शक्तिशाली जम्भासुर सिंह पर सवार होकर इन्द्र के पास आया और उसने अपनी गदा से उसके कंधे पर बलपूर्वक प्रहार किया। उसने इन्द्र के हाथी पर भी प्रहार किया।

15 जम्भासुर की गदा से चोट खाकर इन्द्र का हाथी विभ्रमित और व्यथित हो गया। उसने भूमि पर घुटने टेक दिये और अचेत होकर गिर गया।

16 तत्पश्चात इन्द्र का सारथी मातलि रथ ले आया जिसे एक हजार घोड़े खींच रहे थे। इन्द्र ने हाथी को छोड़ दिया और वह रथ पर चढ़ गया।

17 मातलि के सेवाभाव की प्रशंसा करते हुए असुरश्रेष्ठ जम्भासुर मुस्कराने लगा और उसने युद्धभूमि में अग्नि के समान जलते हुए त्रिशूल से मातलि पर प्रहार कर दिया।

18 मातलि की वेदना असहनीय थी, किन्तु धैर्यपूर्वक उसने सहन कर ली। इन्द्र अत्यधिक क्रुद्ध हो उठा और वज्र से प्रहार कर जम्भासुर के सिर को धड़ से अलग कर दिया।

19 जब नारद ऋषि ने जम्भासुर के मित्रों तथा सम्बन्धियों को यह जानकारी दी कि जम्भासुर मारा गया है, तो नमुचि, बल तथा पाक नामक तीन असुर बड़ी तेजी से युद्धभूमि में आ गए।

20 इन्द्र को कठोर, निष्ठुर तथा मर्मभेदी शब्दों से भला-बुरा कहते हुए इन असुरों ने उस पर बाणों से उसी प्रकार वर्षा की जिस तरह वर्षा की झड़ी किसी महान पर्वत को धो देती है।

21 बल नामक असुर ने युद्धभूमि में परिस्थिति को तुरन्त सँभालते हुए एक हजार घोड़ों को उतने ही बाणों से घायल करके इन्द्र को संकट में डाल दिया।

22-23 असुर पाक ने अपने धनुष पर दो सौ बाण चढ़ाकर सारथी मातलि पर आक्रमण कर दिया। असुर नमुचि ने इन्द्र को पन्द्रह सुनहरे पंखों वाले अत्यन्त शक्तिशाली बाणों से आक्रमण कर घायल कर दिया, जिनसे जल से भरे बादल के समान गर्जना हुई।

24 अन्य असुरों ने अपने बाणों की निरन्तर बौछार से इन्द्र को रथ तथा सारथी सहित ढक दिया जिस तरह वर्षा ऋतु में बादल सूर्य को ढक लेते हैं।

25 देवतागण अपने शत्रुओं द्वारा बुरी तरह से सताये जाने तथा युद्धभूमि में इन्द्र को न देख पाने के कारण अत्यन्त चिन्तित थे। वे बिना नायक या अधिपति के उसी तरह विलाप करने लगे जिस तरह समुद्र के बीच में जहाज ध्वंस होने पर व्यापारी विलाप करते हैं।

26 तत्पश्चात इन्द्र ने बाणों के पिंजर से अपने को मुक्त किया और रथ, झण्डे, घोड़े तथा सारथी के साथ प्रकट होते हुए आकाश, पृथ्वी तथा सभी दिशाओं में प्रसन्नता फैलाते हुए तेजी से ऐसे चमकने लगा मानो रात बीत जाने पर सूर्य तेजी से चमक रहा हो। इन्द्र स्पष्टतः तेजवान तथा सुन्दर लग रहा था।

27 वज्रधर नाम से विख्यात इन्द्र ने जब देखा कि उसके सैनिक युद्धभूमि में शत्रुओं द्वारा इस तरह सताये जा रहे हैं, तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और उसने शत्रुओं को मारने के लिए वज्र उठा लिया।

28 हे राजा परीक्षित! राजा इन्द्र ने बल तथा पाक दोनों असुरों के सिर को उनके सम्बन्धियों तथा अनुयायियों की उपस्थिति में वज्र द्वारा काट दिया। इस तरह उसने युद्धभूमि में अत्यन्त भयावह वातावरण उत्पन्न कर दिया।

29 हे राजन! जब असुर नमुचि ने बल तथा पाक दोनों असुरों को मारे जाते देखा तो वह सन्ताप तथा शोक से भर गया। अतः उसने क्रुद्ध होकर इन्द्र को मारने का एक जोरदार प्रयास किया।

30 सिंह गर्जना करते हुए नमुचि ने क्रोध में आकर इस्पात का एक भाला उठाया जिसमें घण्टियाँ बँधी थी और सोने के आभूषणों से सजाया गया था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया "अब तुम मारे गये।" इस प्रकार इन्द्र को मारने के लिए उसके समक्ष जाकर नमुचि ने अपना हथियार चलाया।

31 हे राजन! जब स्वर्ग के राजा इन्द्र ने इस अत्यन्त शक्तिशाली भाले को ज्वलित उल्का की भाँति भूमि की ओर गिरते देखा तो तुरन्त ही उसे अपने बाणों से खण्ड-खण्ड कर दिया। इन्द्र ने अत्यन्त क्रुद्ध होकर नमुचि के कंधे पर वज्र से प्रहार किया जिससे उसका सिर कट जाये।

32 यद्यपि इन्द्र ने नमुचि पर अपना वज्र बड़े ही वेग से चलाया था, किन्तु वह उसकी चमड़ी तक को भेद नहीं पाया। यह बड़ी विचित्र बात है कि जिस सुप्रसिद्ध वज्र ने वृत्रासुर के शरीर को भेद डाला था वह नमुचि की गर्दन की खाल को रंचमात्र भी क्षति नहीं पहुँचा पाया।

33 जब इन्द्र ने वज्र को शत्रु से वापस लौटते देखा तो वह अत्यन्त भयभीत हो गया और आश्चर्य करने लगा कि कहीं किसी चमत्कारी ऊँची देवी शक्ति से तो यह सब कुछ नहीं हुआ।

34 इन्द्र ने सोचा पूर्वकाल में जब अनेक पर्वत अपने पंखों के द्वारा आकाश में उड़ते हुए भूमि पर गिरते थे और लोगों को मार डालते थे तो मैं अपने इसी वज्र से उनके पंख काट लेता था।

35 यद्यपि वृत्रासुर, त्वष्टा द्वारा की गई तपस्या का सार-समाहार था, तो भी (इन्द्र के) वज्र ने उसका काम तमाम कर दिया था। निस्सन्देह, वही नहीं, अपितु ऐसे अनेक अग्रणी वीर भी जिनकी चमड़ी को अन्य हथियार तनिक भी क्षति नहीं पहुँचा सके थे, इसी वज्र द्वारा मारे गए।

36 किन्तु अब वही वज्र एक तुच्छ असुर पर छोड़े जाने पर भी प्रभावहीन हो गया है। अतएव ब्रह्मास्त्र जैसे होने पर भी यह मेरे लिए अब एक सामान्य डंडे की तरह व्यर्थ हो गया है।, इसलिए अब मैं इसे धारण नहीं करूँगा।

37 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: जब हताश इन्द्र इस तरह विषाद कर रहा था, तो एक देहरहित वाणी ने आकाश से कहा: यह असुर नमुचि किसी शुष्क या गीली वस्तु से विनष्ट नहीं किया जा सकता।

38 आकाशवाणी ने यह भी कहा "हे इन्द्र ! चूँकि मैंने इस असुर को वर दे रखा है कि वह कभी किसी सूखे या गीले हथियार से नहीं मारा जायेगा, अतएव उसे मारने के लिए कोई अन्य उपाय सोचो।"

39 वाणी को सुनकर इन्द्र बड़े मनोयोग से ध्यान करने लगा कि इस असुर को किस तरह मारा जाये। तब उसे यह सुझा कि झाग ही ऐसा साधन है, जो न तो गीली होती है, न शुष्क।

40 इस तरह स्वर्ग के राजा इन्द्र ने झाग के अपने हथियार से नमुचि का सिर काट दिया। यह झाग न तो शुष्क थी, न आर्द्र। तब सारे मुनियों ने उस महापुरुष इन्द्र पर फूलों की वर्षा की तथा माल्यार्पण द्वारा उसे लगभग ढक दिया और संतुष्ट कर लिया।

41 विश्वावसु तथा परावसु नामक दो गन्धर्व प्रमुखों ने अतीव प्रसन्नता में गीत गाये। देवताओं ने दुन्दुभियाँ बजाई और अप्सराओं ने हर्षित होकर नृत्य किया।

42 वायु, अग्नि, वरुण इत्यादि देवता अपने विरोधी असुरों को उसी तरह मारने लगे जिस तरह जंगल में हिरणों को सिंह मारते हैं।

43 हे राजन! जब ब्रह्मा ने देखा कि दानवों का पूर्ण संहार तुरन्त होने वाला है, तो उन्होंने नारद द्वारा सन्देश भेजा जो युद्ध रुकवाने के लिए देवताओं के समक्ष गये।

44 महामुनि नारद ने कहा: तुम सारे देवता भगवान नारायण की भुजाओं द्वारा सुरक्षित हो और उनकी कृपा से तुम सबको अमृत प्राप्त हुआ है। लक्ष्मीजी की कृपा से तुम हर तरह से गौरवान्वित हुए हो, अतएव अब यह लड़ाई बन्द कर दो।

45 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: नारदमुनि के वचनों को मानकर देवताओं ने अपना क्रोध त्याग दिया और लड़ाई बन्द कर दी। वे अपने अनुयायियों द्वारा प्रशंसित होकर स्वर्गलोक को लौट गये।

46 नारदमुनि के आदेशानुसार युद्धक्षेत्र में जितने भी असुर बचे थे, वे सब बलि महाराज को जिनकी अवस्था अत्यन्त गम्भीर थी, अस्तगिरि ले गये।

47 उस पर्वत पर शुक्राचार्य ने उन सारे असुर सैनिकों को जिनके सिर, धड़ तथा हाथ-पाँव कटे नहीं थे जीवित कर दिया। उन्होंने संजीवनी मंत्र के द्वारा यह सब किया।

48 बलि महाराज वैश्विक कार्यों में अत्यन्त अनुभवी थे। जब शुक्राचार्य की कृपा से उन्हें होश आया और उनकी स्मृति लौट आई तो जो कुछ हो चुका था उसे वे समझ गये, अतः पराजित होने पर भी उन्हें शोक नहीं हुआ।

( समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान )

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Comments

  • 🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
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