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श्री गुरु गौरांग जयतः

ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

भूमिदेवी द्वारा स्तुति

श्रीमद भागवतम दशम स्कन्ध (अध्याय उनसठ)

23 तब भूमिदेवी भगवान कृष्ण के पास आई और भगवान को अदिति के कुंडल भेंट किये जो चमकीले सोने के बने थे और जिसमें चमकीले रत्न जड़े थे। उसने उन्हें एक वैजयंती माला, वरुण का छत्र तथा मन्दर पर्वत की चोटी भी दी।

24 हे राजन, उनको प्रणाम करके तथा उनके समक्ष हाथ जोड़े खड़ी वह देवी भक्ति-भाव से पूरित होकर ब्रह्मांड के उन स्वामी की स्तुति करने लगी जिनकी पूजा श्रेष्ठ देवतागण करते हैं।

25 भूमिदेवी ने कहा: हे देवदेव, हे शंख, चक्र तथा गदा के धारणकर्ता, आपको नमस्कार है। हे परमात्मा, आप अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए विविध रूप धारण करते हैं। आपको नमस्कार है।

26 हे प्रभु, आपको मेरा सादर नमस्कार है। आपके उदर में कमल के फूल जैसा गड्ढा अंकित है, आप सदैव कमल के फूल की मालाओं से सुसज्जित रहते है, आपकी चितवन कमल जैसी शीतल है और आपके चरणों में कमल अंकित हैं।

27 हे वसुदेव, हे विष्णु, हे आदि-पुरुष, हे आदि-बीज भगवान, आपको सादर नमस्कार है। हे सर्वज्ञ, आपको नमस्कार है।

28 अनंत शक्तियों वाले, इस ब्रह्मांड के अजन्मा जनक ब्रह्म, आपको नमस्कार है। हे वर तथा अवर के आत्मा, हे सृजित तत्त्वों के आत्मा, हे सर्वव्यापक परमात्मा, आपको नमस्कार है।

29 हे अजन्मा प्रभु, सृजन की इच्छा करके आप वृद्धि करते हैं और तब रजोगुण धारण करते हैं। इसी तरह जब आप ब्रह्मांड का संहार करना चाहते हैं, तो तमोगुण और जब इसका पालन करना चाहते हैं, तो सतोगुण धारण करते हैं। तो भी आप इन गुणों से अनाच्छादित रहते हैं। हे जगतपति! आप काल, प्रधान तथा पुरुष हैं फिर भी आप पृथक एवं भिन्न रहते हैं।

30 यह भ्रम है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, इंद्रिय-विषय, देवता, मन, इंद्रियाँ, मिथ्या अहंकार तथा महत तत्त्व आपसे स्वतंत्र होकर विद्यमान हैं। वास्तव में वे सब आपके भीतर हैं क्योंकि हे प्रभु आप अद्वितीय हैं।

31 यह भौमासुर का पुत्र है। यह भयभीत है और आपके चरणकमलों के समीप आ रहा है क्योंकि आप उन सबों के कष्टों को हर लेते हैं, जो आपकी शरण में आते हैं। कृपया इसकी रक्षा कीजिये। आप इसके सिर पर अपना कर-कमल रखें जो समस्त पापों को दूर करने वाला है।

32 शुकदेव गोस्वामी ने कहा: इस तरह विनीत भक्ति के शब्दों से भूमिदेवी द्वारा प्रार्थना किये जाने पर परमेश्र्वर ने उसके पोते को अभय प्रदान किया और तब भौमासुर के महल में प्रवेश किया जो सभी प्रकार के ऐश्वर्य से पूर्ण था।

(समर्पित एवं सेवारत – जगदीश चन्द्र चौहान)

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