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ॐ श्री गणेशाय नमः

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नमस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

श्रीमद भागवत की महिमा

द्वादश स्कन्ध अध्याय तेरह

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सूत गोस्वामी ने कहा: ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र तथा मरुतगण दिव्य स्तुतियों का उच्चारण करके तथा वेदों को उनके अंगों, पद-क्रमों तथा उपनिषदों समेत बाँच कर जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गायक जिनका सदैव गायन करते हैं, सिद्ध योगी अपने को समाधि में स्थिर करके और अपने को उनके भीतर लीन करके जिनका दर्शन अपने मन में करते हैं तथा जिनका पार किसी देवता या असुर द्वारा कभी भी नहीं पाया जा सकता---ऐसे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को मैं सादर नमस्कार करता हूँ। जब भगवान कूर्म (कछुवे) के रूप में प्रकट हुए तो उनकी पीठ पर स्थित भारी, घूमने वाले मंदराचल पर्वत के नुकीले पत्थरों के द्वारा खरोंची गई जिसके कारण भगवान उनींदे हो गये। इस सुप्तावस्था में भगवान की श्र्वास से उत्पन्न वायुओं द्वारा आप सबों की रक्षा हो। उसी काल से, आज तक, समुद्री ज्वारभाटा पवित्र रूप में आ-आकर भगवान के श्र्वास-निश्र्वास का अनुकरण करता आ रहा है। अब मुझसे सभी पुराणों की श्लोक-संख्या सुनिये। तब इस भागवत पुराण के मूल विषय तथा उद्देश्य, इसे भेंट में देने की सही विधि, ऐसी भेंट देने का माहात्म्य और अंत में इस ग्रंथ के सुनने तथा कीर्तन करने का माहात्म्य सुनिये। ब्रह्म पुराण में दस हजार, पद्म पुराण में पचपन हजार, श्री विष्णु पुराण में तेईस हजार, शिव पुराण में चौबीस हजार तथा श्रीमदभागवत में अठारह हजार श्लोक हैं। नारद पुराण में पच्चीस हजार हैं, मार्कण्डेय पुराण में नौ हजार, अग्नि पुराण में पंद्रह हजार चार सौ, भविष्य पुराण में चौदह हजार पाँच सौ, ब्रह्मवैवर्त पुराण में अठारह हजार तथा लिंग पुराण में ग्यारह हजार श्लोक हैं। वराह पुराण में चौबीस हजार, स्कन्द पुराण में इक्यासी हजार एक सौ, वामन पुराण में दस हजार, कूर्म पुराण में सत्रह हजार, मत्स्य पुराण में चौदह हजार, गरुड़ पुराण में उन्नीस हजार तथा ब्रह्मांड पुराण में बारह हजार श्लोक हैं। इस तरह समस्त पुराणों की कुल श्लोक संख्या चार लाख है। पुनः इनमें से अठारह हजार श्लोक अकेले श्रीमदभागवत के हैं। भगवान ने सर्वप्रथम ब्रह्मा को सम्पूर्ण श्रीमदभागवत प्रकाशित की। उस समय ब्रह्मा, संसार से भयभीत होकर, भगवान की नाभि से निकले कमल पर आसीन थे। 

श्रीमदभागवत आदि से अंत तक ऐसी कथाओं से भरा पड़ा है, जो भौतिक जीवन से वैराग्य की ओर ले जाने वाली हैं। साथ ही इसमें भगवान हरि की दिव्य लीलाओं का अमृतमय विवरण भी है, जो संत भक्तों तथा देवताओं को भाव विभोर कर देने वाला है। यह भागवत समस्त वेदान्त दर्शन का सार है क्योंकि इसकी विषयवस्तु परम सत्य है, जो आत्मा से अभिन्न होते हुए भी अद्वितीय सर्वोपरि सत्य है। इस ग्रंथ का लक्ष्य परम सत्य की एकांतिक भक्ति है। यदि कोई व्यक्ति भाद्र मास की पूर्णमासी को सोने के सिंहासन पर रखकर श्रीमदभागवत का दान उपहार के रूप में देता है, तो उसे परम दिव्य गंतव्य प्राप्त होगा। अन्य सारे पुराण तब तक संत भक्तों की सभा में चमकते हैं जब तक अमृत के महासागर श्रीमदभागवत को सुना नहीं गया हो। श्रीमदभागवत को समस्त वेदान्त-दर्शन का सार कहा जाता है। जिसे इसके अमृतमय रस से तुष्टि हुई है, वह कभी अन्य किसी ग्रंथ के प्रति आकृष्ट नहीं होगा। जिस तरह गंगा समुद्र की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है, भगवान अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान शंभु (शिव) वैष्णवों में सबसे बड़े हैं, उसी तरह श्रीमदभागवत समस्त पुराणों में सर्वोपरि है। हे ब्राह्मणों, जिस तरह पवित्र स्थानों में काशी नगरी अद्वितीय है, उसी तरह समस्त पुराणों में श्रीमदभागवत सर्वश्रेष्ठ है।श्रीमदभागवत निर्मल पुराण है। यह वैष्णवों को अत्यंत प्रिय है क्योंकि यह परमहंसों के शुद्ध तथा सर्वोच्च ज्ञान का वर्णन करनेवाला है। यह भागवत समस्त भौतिक कर्म से छूटने के साधन के साथ ही दिव्य ज्ञान, वैराग्य तथा भक्ति की विधियों को प्रकाशित करता है। जो कोई भी श्रीमदभागवत को गंभीरतापूर्वक समझने का प्रयास करता है, जो समुचित ढंग से श्रवण करता है और भक्तिपूर्वक कीर्तन करता है, वह पूर्ण मुक्त हो जाता है।

मैं उन शुद्ध तथा निष्कलुष परम पूर्ण सत्य का ध्यान करता हूँ जो दुख तथा मृत्यु से मुक्त हैं और जिन्होंने प्रारम्भ में इस ज्ञान के अतुलनीय दीपक को ब्रह्मा से प्रकट किया। तत्पश्र्चात ब्रह्मा ने इसे नारद मुनि से कहा, जिन्होंने इसे कृष्ण द्वैपायन व्यास से कह सुनाया। श्रील व्यास ने इस भागवत को मुनियों में सर्वोपरि, शुकदेव गोस्वामी, को बतलाया जिन्होंने कृपा करके इसे महाराज परीक्षित से कहा। हम सर्वव्यापक साक्षी, भगवान वासुदेव को नमस्कार करते हैं जिन्होंने कृपा करके ब्रह्मा को यह विज्ञान तब बतलाया जब वे उत्सुकतापूर्वक मोक्ष चाह रहे थे। मैं श्री शुकदेव गोस्वामी को सादर नमस्कार करता हूँ जो श्रेष्ठ योगी-मुनि हैं और परम सत्य के साकार रूप हैं। उन्होंने संसार रूपी सर्प द्वारा काटे गये परीक्षित महाराज को बचाया। हे ईशों के ईश, हे स्वामी, आप हमें जन्म-जन्मांतर तक अपने चरणकमलों की शुद्ध भक्ति का वर दें। मैं उन भगवान हरि को सादर नमस्कार करता हूँ जिनके पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन सारे पापों को नष्ट करता है और जिनको नमस्कार करने से सारे भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है।

(समर्पित एवं सेवारत जे. सी. चौहान)

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