ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

नारायणम नस्कृत्यम नरं चैव नरोत्तमम

देवी सरस्वती व्यासं ततो जयम उदिरयेत

द्वादश स्कन्ध (12 Canto)

 

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श्रीमद भागवतम द्वादश स्कन्ध के श्लोकों का कथारूप में अनुदित संकलन

हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ सादर, साभार श्रील प्रभुपाद के श्रीचरणों में समर्पित

अध्याय बारह ------ श्रीमद भागवत की संक्षिप्त विषय-सूची

सूत गोस्वामी ने कहा: परम धर्म भक्ति को, परम स्रष्टा भगवान कृष्ण को तथा समस्त ब्राह्मणों को नमस्कार करके, अब मैं धर्म के शाश्र्वत सिद्धांतों का वर्णन करूँगा। हे ऋषियों, मैं आप लोगों से भगवान विष्णु की अद्भुत लीलाएँ कह चुका हूँ, क्योंकि आप लोगों ने इनके विषय में मुझसे पूछा था। ऐसी कथाओं का सुनना उस व्यक्ति के लिए उचित है, जो वास्तव में मानव है। यह ग्रंथ उन भगवान श्री हरि का पूर्ण गुणगान करनेवाला है, जो अपने भक्तों के सारे पापों को दूर करने वाले हैं। भगवान का यह गुणगान नारायण, हृषिकेश तथा सात्वतों के प्रभु के रूप में किया गया है। यह ग्रंथ इस ब्रह्मांड के सृजन तथा संहार के स्रोत परम सत्य के रहस्य का वर्णन करता है। यही नहीं, इसमें उनके दैवी ज्ञान के साथ-साथ उसके अनुशीलन की विधि तथा मनुष्य द्वारा प्राप्त होनेवाली दिव्य अनुभूति का भी वर्णन हुआ है।

इसमें भक्ति की विधि के साथ-साथ वैराग्य का गौण स्वरूप तथा महाराज परीक्षित एवं नारद मुनि के इतिहास का भी वर्णन हुआ है। इसके साथ ही ब्राह्मण-पुत्र के शाप के शमनार्थ परीक्षित का आमरण उपवास करना तथा परीक्षित और ब्राह्मण-श्रेष्ठ शुकदेव के मध्य हुई वार्ता का भी वर्णन हुआ है। भागवत बतलाती है कि किस तरह योग में ध्यान स्थिर करके मृत्यु के समय मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसमें नारद तथा ब्रह्मा के बीच हुई वार्ता, भगवान के अवतारों की गणना तथा भौतिक प्रकृति की अव्यक्त अवस्था से लेकर क्रमशः यह ब्रह्मांड जिस तरह बना, उसका भी वर्णन हुआ है। इस शास्त्र में उद्धव तथा मैत्रेय के साथ विदुर के संवादों, इस पुराण के विषय में प्रश्न तथा प्रलय के समय भगवान के शरीर में सृष्टि के विलीन होने का भी वर्णन हुआ है। प्रकृति के गुणों के उद्वेलन से उत्पन्न सृष्टि, तात्विक विकारों से विकास की सात अवस्थाएँ तथा उस विश्र्व अंडे का निर्माण जिससे भगवान के विश्र्वरूप का उदय होता है--इन सबों का इसमें पूरी तरह वर्णन हुआ है। 

अन्य विषयों में काल की स्थूल तथा सूक्ष्म गतियाँ, गर्भोदकशायी विष्णु की नाभि से कमल की उत्पत्ति तथा हिरण्याक्ष असुर का वध, जब गर्भोदक सागर से पृथ्वी का उद्धार हुआ, सम्मिलित हैं। भागवत में देवताओं, पशुओं तथा आसुरी योनियों की उत्पत्ति, भगवान रुद्र के जन्म तथा अर्ध नारीश्र्वर से स्वायंभुव मनु के प्राकट्य का भी वर्णन हुआ है। इसमें प्रथम स्त्री शतरुपा, जोकि मनु की अति गुणी प्रिया थीं तथा प्रजापति कर्दम की पवित्र पत्नियों की संतान का भी वर्णन हुआ है। भागवत में महान कपिल मुनि के रूप में भगवान के अवतार का और इन विद्वान महात्मा तथा उनकी माता देवहूति के बीच हुई वार्ता का अंकन है। इसमें नौ महान ब्राह्मणों की संतानों, दक्ष के यज्ञ के विध्वंस तथा ध्रुव महाराज के इतिहास, तत्पश्र्चात राजा पृथु एवं राजा प्राचीनबर्ही की कथाओं, प्राचीनबर्ही तथा नारद के बीच संवाद तथा महाराज प्रियव्रत के जीवन का वर्णन हुआ है। तत्पश्र्चात हे ब्राह्मणों, भागवत में राजा नाभि, भगवान ऋषभ तथा राजा भरत के चरित्र एवं कार्यों का वर्णन मिलता है। 

भागवत में पृथ्वी के महाद्वीपों, वर्षों, समुद्रों, पर्वतों तथा नदियों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें स्वर्गिक मण्डल की व्यवस्था तथा पाताल और नरक में विद्यमान स्थितियों का भी वर्णन हुआ है। इसमें प्रचेताओं के पुत्र रूप में प्रजापति दक्ष का पुनर्जन्म तथा दक्ष की पुत्रियों की संतति जिससे देवताओं, असुरों, मनुष्यों, पशुओं, सर्पों, पक्षियों इत्यादि प्रजातियाँ प्रारम्भ हुई-इन सबों का वर्णन हुआ है। हे ब्राह्मणों, भागवत में वृत्रासुर के तथा दितिपुत्र हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु के जन्मों तथा मृत्युओं का और उसी के साथ दिति के महानतम वंशज, महाराज प्रह्लाद, के इतिहास का वर्णन हुआ है। इसमें प्रत्येक मनु का शासनकाल, गजेन्द्र के मोक्ष तथा प्रत्येक मन्वंतर में भगवान विष्णु के विशिष्ट अवतारों, यथा भगवान हयशीर्ष, का भी वर्णन है।

भागवत में कूर्म, मत्स्य, नृसिंह तथा वामन के रूप में ब्रह्मांड के स्वामी के प्राकट्यो एवं अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं द्वारा क्षीरसागर के मंथन का भी वर्णन है। देवताओं तथा असुरों के बीच लड़ा गया महसंग्राम, विभिन्न राजाओं के वंशों का क्रमबद्ध वर्णन तथा इक्ष्वाकु के जन्म, उसके वंश एवं महात्मा सुद्युम्न के वंश से संबंधित कथाएँ--इन सबों को इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया गया है। इसमें इला तथा तारा के इतिहास तथा सूर्यदेव के वंशजों का जिनमें शशाद तथा नृग जैसे राजा सम्मिलित हैं, वर्णन हुआ है। इसमें सुकन्या, शर्याति, बुद्धिमान ककुत्स्थ, खटवांग, मांधाता, सौभरि तथा सगर की कथाएँ कही गई हैं। भागवत में कौशल के राजा भगवान रामचन्द्र की पवित्रकारिणी लीलाओं का वर्णन है और उसी के साथ यह भी बताया गया है कि राजा निमि ने किस तरह अपना भौतिक शरीर छोड़ा। इसमें राजा जनक के वंशजों की उत्पत्ति का भी उल्लेख हुआ है।

श्रीमदभागवत में वर्णन हुआ है कि किस तरह भृगुवंशियों में सबसे महान भगवान परशुराम ने पृथ्वी से सारे क्षत्रियों का संहार किया। इसमें उन यशस्वी राजाओं के जीवनों का वर्णन हुआ है, जो चंद्रवंश में प्रकट हुए--यथा ऐल, ययाति, नहुष, दुष्मन्त पुत्र भरत, शांतनु तथा शांतनु पुत्र भीष्म जैसे राजा। इसके साथ ही ययाति के ज्येष्ठ पुत्र राजा यदु द्वारा स्थापित महान वंश का भी वर्णन हुआ है। जिस तरह ब्रह्मांड के स्वामी पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण यदुवंश में अवतरित हुए, जिस तरह उन्होंने वसुदेव के घर में जन्म लिया और जिस तरह वे गोकुल में बड़े हुए---इन सबका इसमें विस्तार से वर्णन हुआ है। इसमें असुरों के शत्रु श्रीकृष्ण की असंख्य लीलाओं का, जिनमें पूतना के स्तनों से दुग्ध के साथ प्राण को चूस लेने, शकट-भंजन, तृणावर्त-दलन, बकासुर वध, वत्सासुर तथा अघासुर के वध की बाल-लीलाएँ और ब्रह्मा द्वारा उनके बछड़ों तथा ग्वालबाल मित्रों का गुफा में छिपाये जाने के समय की गई लीलाओं का महिमा-गान है।

श्रीमदभागवत में बताया गया है कि किस तरह भगवान कृष्ण तथा बलराम ने धेनुकासुर तथा उसके साथियों को मारा, किस तरह बलराम ने प्रलंबासुर का विनाश किया और किस तरह कृष्ण ने दावाग्नि से घिरे ग्वालबालों को बचाया। कालीय नाग का दमन, विशाल सर्प से नन्द महाराज का बचाया जाना, तरुण गोपियों द्वारा कठिन व्रत किया जाना और इस तरह कृष्ण का तुष्ट होना, उन वैदिक ब्राह्मणों की पश्चाताप कर रही पत्नियों के प्रति कृपा-प्रदर्शन, गोवर्धन पर्वत के उठाये जाने के बाद इन्द्र तथा सुरभि गाय द्वारा पूजा तथा अभिषेक किया जाना, गोपियों के साथ कृष्ण की रत्रिकालीन लीलाएँ तथा शंखचूड़, अरिष्ट एवं केशी जैसे मूर्ख असुरों का वध--ये सारी लीलाएँ इसमें विस्तार से वर्णित हैं।

भागवत में अक्रूर के आने, तत्पश्र्चात कृष्ण तथा बलराम के जाने, गोपियों का विलाप और मथुरा भ्रमण का वर्णन मिलता है। इसमें यह भी वर्णन हुआ है कि किस तरह कृष्ण तथा बलराम ने कुवलयापीड़ हाथी, मुष्टिक तथा चाणूर मल्लों एवं कंस इत्यादि असुरों का वध किया और किस तरह कृष्ण अपने गुरु सांदीपनी मुनि के मृत पुत्र को वापस ले आये। तत्पश्र्चात, हे ब्राह्मणों, इस ग्रंथ में बतलाया गया है कि किस तरह उद्धव और बलराम के साथ मथुरा में निवास करते हुए भगवान हरि ने यदुवंश की तुष्टि के लिए लीलाएँ कीं। इसके साथ ही जरासंध द्वारा लाई गई अनेक सेनाओं का संहार, बर्बर राजा कालयवन का वध तथा द्वारकापुरी की स्थापना का भी वर्णन हुआ है। इस कृति में इसका भी वर्णन है कि भगवान कृष्ण किस तरह स्वर्ग से पारिजात वृक्ष तथा सुधर्मा सभाभवन लाये और उन्होंने किस तरह युद्ध में अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराकर रुक्मिणी का हरण किया। इसमें इसका भी वर्णन हुआ है कि कृष्ण ने किस तरह बाणासुर के साथ युद्ध में, शिव को जंभाई दिलाकर परास्त किया, किस तरह उन्होंने बाणासुर की भुजाएँ काटीं और किस तरह प्रागज्योतिषपुर के स्वामी को मारा तथा उसके बाद उस नगरी में बंदी की गई कुमारियों को छुड़ाया। 

भागवत में चेदीराज, पौण्ड़ृक, शाल्व, मूर्ख दंतव्रक, शंबर, द्विविद, पीठ, मूर, पंचजन तथा अन्य असुरों के पराक्रमों तथा मृत्युओं के वर्णन के साथ-साथ बनारस के जलाये जाने का वर्णन है। इसमें यह भी बताया गया है कि किस तरह कृष्ण ने पांडवों को कुरुक्षेत्र के युद्ध में लगाकर पृथ्वी के भार को कम किया। भगवान द्वारा ब्राह्मण शाप के बहाने अपने वंश की समाप्ति, नारद के साथ वसुदेव का संवाद, उद्धव तथा कृष्ण के बीच असाधारण बातचीत जो आत्म-विज्ञान को विस्तार से प्रकट करनेवाली है और मानव समाज के धर्म की व्याख्या करती है और फिर भगवान कृष्ण द्वारा अपने योगबल से इस मर्त्यलोक का परित्याग करना---इन सारी घटनाओं का भागवत में वर्णन हुआ है। इस कृति में विभिन्न युगों में लोगों के लक्षण तथा आचरण, कलियुग में मनुष्यों के सम्मुख आनेवाली अव्यवस्था, चार प्रकार के प्रलय तथा तीन प्रकार की सृष्टि का भी वर्णन हुआ है। इसमें बुद्धिमान तथा साधु स्वभाव वाले राजा विष्णुरात (परीक्षित) के निधन का, श्रील व्यासदेव द्वारा वेदों की शाखाओं के प्रसार की व्याख्या का, मार्कण्डेय ऋषि विषयक शुभ कथा का तथा भगवान के विश्र्वरूप एवं ब्रह्मांड की आत्मा सूर्य के रूप में उनके रूप की विस्तृत व्याख्या का भी विवरण है। 

इस प्रकार हे श्रेष्ठ-ब्राह्मण जनों, यहाँ पर तुम लोगों ने जो कुछ मुझसे पूछा था, वह सब मैंने बतला दिया। इस ग्रंथ में भगवान के लीला अवतारों के कार्यकलापों का विस्तार से गुणगान हुआ है। यदि गिरते, लड़खड़ाते, पीड़ा अनुभव करते या छींकते समय कोई विवशता से भी उच्च स्वर से "भगवान हरि की जय हो" चिल्लाता है, तो वह स्वतः सारे पापों से मुक्त हो जाता है। जब लोग ठीक से भगवान की महिमा का गायन करते हैं या उनकी शक्तियों के विषय में श्रवण करते हैं, तो भगवान स्वयं उनके हृदयों में प्रवेश करते हैं और सारे दुर्भाग्य को उसी तरह दूर कर देते हैं जिस तरह सूर्य अंधेरे को दूर करता है या कि प्रबल वायु बादलों को उड़ा ले जाती है। जो शब्द दिव्य भगवान का वर्णन नहीं करते अपितु क्षणिक व्यापारों की चर्चा चलाते हैं, वे निरे झूठे तथा व्यर्थ के होते हैं। केवल वे शब्द जो भगवान के दिव्य गुणों को प्रकट करते हैं, वास्तव में, सत्य, शुभ तथा पवित्र हैं। सर्वप्रसिद्ध भगवान के यश का वर्णन करनेवाले वे शब्द आकर्षक, आस्वाद्य तथा नित नवीन रहते हैं। निस्संदेह, ऐसे शब्द मन के लिए शाश्र्वत उत्सव हैं और वे कष्ट के सागर को सुखाने वाले हैं। जो शब्द उन भगवान के यश का वर्णन नहीं करते जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के वातावरण को पावन करनेवाले हैं, वे कौवों के तीर्थस्थान के समान हैं तथा ज्ञानी मनुष्य कभी भी उनका प्रयोग नहीं करते। शुद्ध तथा साधु स्वभाव वाले भक्तगण केवल अच्युत भगवान के यश को वर्णन करनेवाली कथाओं में रुचि लेते हैं। दूसरी ओर जो साहित्य अनंत भगवान के नाम, यश, रूपों, लीलाओं इत्यादि की दिव्य महिमा के वर्णनों से पूर्ण होता है, वह एक सर्वथा भिन्न सृष्टि है, जो इस संसार की गुमराह सभ्यता के अपवित्र जीवन में क्रान्ति लाने वाले दिव्य शब्दों से पूर्ण होती है। ऐसे ग्रंथ भले ही ठीक से रचे हुए न हों, किन्तु उन शुद्ध पुरुषों द्वारा जो पूरी तरह से ईमानदार हैं, सुने, गाये और स्वीकार किये जाते हैं। आत्म-साक्षात्कार का ज्ञान समस्त भौतिक आसक्ति से मुक्त होते हुए भी ठीक से काम नहीं करता यदि वह अच्युत (ईश्र्वर) के भाव से विहीन हो। तब अच्छे से अच्छे सम्पन्न कर्म जो प्रारम्भ से पीड़ादायक तथा क्षणिक स्वभाव के होते हैं, किस काम के हो सकते हैं यदि उनका उपयोग भगवान की भक्ति के लिए नहीं किया जाता? वर्णाश्रम प्रणाली में सामान्य सामाजिक तथा धार्मिक कर्तव्यों को निबाहने में, तपस्या करने में तथा वेदों को श्रवण करने में जो महान उद्यम करना पड़ता है, उससे मात्र संसारी यश तथा ऐश्वर्य की ही उपलब्धि हो पाती है। किन्तु भगवान लक्ष्मीपति के दिव्य गुणों का आदर करने तथा ध्यानपूर्वक उनका पाठ सुनने से मनुष्य उनके चरणकमलों का स्मरण कर सकता है।

भगवान कृष्ण के चरणकमलों की स्मृति प्रत्येक अशुभ वस्तु को नष्ट करती है और परम सौभाग्य प्रदान करती है। यह हृदय को परिशुद्ध बनाती है और परमात्मा की भक्ति के साथ-साथ अनुभूति तथा त्याग से युक्त ज्ञान प्रदान करती है। हे सुप्रसिद्ध ब्राह्मणों, तुम लोग सचमुच अत्यंत भाग्यशाली हो क्योंकि तुम लोगों ने पहले ही अपने हृदयों में भगवान श्री नारायण को---परम नियंता तथा सारे जगत के परम आत्मा भगवान को---धारण कर रखा है जिनसे बढ़कर कोई अन्य देव नहीं है। तुम लोगों में उनके लिए अविचल प्रेम है, अतएव तुम लोग उनकी पूजा करो, ऐसा मैं अनुरोध करता हूँ। अब मुझे उस ईश-विज्ञान का पूरी तरह स्मरण हो आया है, जिसे मैंने पहले महर्षि शुकदेव गोस्वामी के मुख से सुना था। मैं महर्षियों की उस सभा में उपस्थित था जिन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास पर बैठे महाराज परीक्षित से कहते उन्हें सुना था। हे ब्राह्मणों, इस तरह मैंने तुम लोगों से भगवान वासुदेव की महिमा का वर्णन किया जिनके असामान्य कार्य स्तुति के योग्य हैं। यह वर्णन अशुभ का विनाश करने वाला है। जो व्यक्ति अविचल भाव से इस ग्रंथ को प्रत्येक घंटे के प्रत्येक क्षण निरंतर सुनाता है तथा जो व्यक्ति एक अथवा आधा श्लोक, अथवा एक या आधी पंक्ति श्रद्धा भाव से सुनता है, वह अपने को पवित्र बना लेता है। जो कोई इस भागवत को एकादशी या द्वादशी के दिन सुनता है उसे निश्चित रूप से दीर्घायु प्राप्त होती है और जो व्यक्ति उपवास रखते हुए इसे ध्यानपूर्वक सुनाता है, वह सारे पापों के फल से शुद्ध हो जाता है। 

जो व्यक्ति मन को वश में रखता है, जो पुष्कर, मथुरा या द्वारका जैसे पवित्र स्थानों में उपवास रखता है और इस शास्त्र का अध्ययन करता है, वह सारे भय से मुक्त हो जाता है। जो व्यक्ति इस पुराण का कीर्तन करके अथवा इसको सुनकर इसकी स्तुति करते हैं उन्हें देवता, ऋषि, सिद्ध, पितर, मनु तथा पृथ्वी के राजा समस्त वांछित वस्तुएँ प्रदान करते हैं। इस भागवत को पढ़कर एक ब्राह्मण वैसी ही शहद, घी तथा दूध की नदियों को भोग सकता है जैसी वह ऋग, यजुर तथा सामवेदों के मंत्रों का अध्ययन करके भोग सकता है। जो ब्राह्मण समस्त पुराणों के इस अनिवार्य संकलन को कर्तव्यपरायणता से पढ़ता है, वह परम गंतव्य को प्राप्त होता है, जिसका वर्णन स्वयं भगवान ने इसमें किया है। जो ब्राह्मण श्रीमदभागवत को पढ़ता है, वह भक्ति में अविचल बुद्धि प्राप्त करता है। जो राजा इसका अध्ययन करता है, वह पृथ्वी पर सारभौम सत्ता प्राप्त करता है, वैश्य विपुल कोश पा लेता है और शूद्र पापों से छूट जाता है। सारे जीवों के परम नियंता भगवान हरि कलियुग के संचित पापों का संहार करनेवाले हैं, फिर भी अन्य ग्रन्थों में उनकी स्तुति नहीं मिलती। किन्तु असंख्य साकार अंशों के रूप में प्रकट होनेवाले पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान इस श्रीमदभागवत की विविध कथाओं में निरंतर तथा प्रचुरता से वर्णित हुए हैं। मैं अजन्मे तथा अनंत परमात्मा को नमन करता हूँ जिनकी निजी शक्तियाँ ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन तथा संहार के लिए उत्तरदायी हैं। यहाँ तक के ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर तथा स्वर्गलोकों के अन्य स्वामी भी उन अच्युत भगवान की महिमा की थाह नहीं पा सकते। मैं उन पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान को नमस्कार करता हूँ जो शाश्र्वत, स्वामी हैं और अन्य सारे देवों के प्रधान हैं, जिन्होंने अपनी नौ शक्तियों को विकसित करके अपने भीतर सारे चर तथा अचर प्राणियों का धाम व्यवस्थित कर रखा है और जो सदैव शुद्ध दिव्य चेतना में स्थित रहते हैं। मैं अपने गुरु व्यासदेव-पुत्र, शुकदेव गोस्वामी, को सादर नमस्कार करता हूँ। वे ही इस ब्रह्मांड की सारी अशुभ वस्तुओं को नष्ट करते हैं। यद्यपि प्रारम्भ में वे ब्रह्म-साक्षात्कार के सुख में लीन थे और अन्य समस्त चेतनाओ को त्यागकर एकांत स्थान में रह रहे थे, किन्तु वे भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर तथा अत्यंत मधुमयी लीलाओं के द्वारा आकृष्ट हुए। अतएव उन्होंने अत्यंत कृपा करके इस सर्वश्रेष्ठ पुराण, श्रीमदभागवत, का प्रवचन किया जो परम सत्य का तेज प्रकाश है और भगवान के कार्यकलापों का वर्णन करनेवाला है।

(समर्पित एवं सेवारत जे. सी. चौहान)

 

 

 

 

 

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