10857261277?profile=RESIZE_400x

सती के भस्म होने पर शिवजी के गणों द्वारा यक्ष प्रजापति का वध तथा उसके यज्ञ का विध्वंस किये जाने पर ब्रह्मादि देवताओं सहित सब लोगों का उनके पास जाना (4.5.24-26तथा 4.6.1-34)

अध्याय पाँच – दक्ष के यज्ञ का विध्वंस (4.5)

1 मैत्रेय ने कहा: जब शिव ने नारद से सुना कि उनकी पत्नी सती प्रजापति दक्ष द्वारा किये गये अपमान के कारण मर चुकी हैं और ऋभुओं द्वारा उनके सैनिक खदेड़ दिये गये हैं, तो वे अत्यधिक क्रोधित हुए।

2 इस प्रकार अत्यधिक क्रुद्ध होने के कारण शिव ने अपने दाँतों से होंठ चबाते हुए तुरन्त अपने सिर की जटाओं से एक लट नोच ली, जो बिजली अथवा अग्नि की भाँति जलने लगी। वे पागल की भाँति हँसते हुए तुरन्त खड़े हो गये और उस लट को पृथ्वी पर पटक दिया।

3 उससे आकाश के समान ऊँचा तथा तीन सूर्यों के सम्मिलित तेज के समान एक भयानक श्याम वर्ण का असुर उत्पन्न हुआ, जिसके दाँत अत्यन्त भयानक थे और उसके सिर के केश प्रज्ज्वलित अग्नि के समान लग रहे थे। उसकी हजारों भुजाएँ थीं, जो अस्त्र-शस्त्रों से लैस थीं और उसने नरमुंडों की माला पहन रखी थी।

4 उस महाकाय असुर ने जब हाथ जोड़ कर पूछा, “हे नाथ! मैं क्या करूँ?” भूतनाथ रूप शिव ने प्रत्यक्षतः आदेश दिया "तुम मेरे शरीर से उत्पन्न होने के कारण मेरे समस्त पार्षदों के प्रमुख हुए, अतः यज्ञ (स्थल) पर जाकर दक्ष को उसके सैनिकों सहित मार डालो।"

5 मैत्रेय ने आगे बताया: हे विदुर, वह श्याम पुरुष भगवान का साक्षात क्रोध था और शिवजी के आदेशों का पालन करने के लिए उद्यत था। इस प्रकार किसी भी विरोधी शक्ति का सामना करने में अपने को समर्थ समझ कर उसने भगवान शिव की प्रदक्षिणा की।

6 घोर गर्जना करते हुए शिव के अन्य अनेक सैनिक भी उस भयानक असुर के साथ हो लिए। वह एक विशाल त्रिशूल लिए हुए था, जो इतना भयानक था कि मृत्यु का भी वध करने में समर्थ था और उसके पाँवों में कड़े थे, जो गर्जना करते प्रतीत हो रहे थे।

7 उस समय यज्ञस्थल में एकत्रित सभी लोग—पुरोहित, प्रमुख यजमान, ब्राह्मण तथा उनकी पत्नियाँ – आश्चर्य करने लगे कि यह अंधकार कहाँ से आ रहा है। बाद में उनकी समझ में आया कि यह धूलभरी आँधी थी और वे सभी अत्यन्त व्याकुल हो गये थे।

8 आँधी के स्रोत के सम्बन्ध में अनुमान लगाते हुए उन्होंने कहा: न तो तेज हवाएँ चल रही हैं और न गौएँ ही जा रही है, न यह सम्भव है कि यह धूल भरी आँधी लुटेरों द्वारा उठी है, क्योंकि अभी भी बलशाली राजा बर्हि उन्हें दण्ड देने के लिए जीवित है। तो फिर यह धूलभरी आँधी कहाँ से आ रही है? क्या इस लोक का प्रलय होने वाला है?

9 दक्ष की पत्नी प्रसूति एवं वहाँ पर एकत्र अन्य स्त्रियों ने अत्यन्त आकुल होकर कहा: यह संकट दक्ष के कारण सती की मृत्यु से उत्पन्न है, क्योंकि निर्दोष सती ने अपनी बहनों के देखते-देखते अपना शरीर त्याग दिया है।

10 प्रलय के समय, शिव के बाल बिखर जाते हैं और वे अपने त्रिशूल से विभिन्न दिशाओं के शासकों (दिक्पतियों) को बेध लेते हैं। वे गर्वपूर्वक अट्टहास करते हुए ताण्डव नृत्य करते हैं और दिक्पतियों की भुजाओं को पताकाओं के समान बिखेर देते हैं, जिस प्रकार मेघों की गर्जना से समस्त लोकों में बादल छितरा जाते हैं।

11 उस विराट श्याम पुरुष ने अपने डरावने दाँत निकाल लिए। अपनी भौंहों के चालन से उसने आकाश भर में तारों को तितर-बितर कर दिया और उन्हें अपने प्रबल भेदक तेज से आच्छादित कर लिया। दक्ष के कुव्यवहार के कारण दक्ष के पिता ब्रह्मा तक इस घोर कोप-प्रदर्शन से नहीं बच सकते थे।

12 जब सभी लोग परस्पर बातें कर रहे थे तो दक्ष को समस्त दिशाओं से, पृथ्वी से तथा आकाश से, अशुभ संकेत (अपशकुन) दिखाई पड़ने लगे।

13 हे विदुर, शिव के समस्त अनुचरों ने यज्ञस्थल को घेर लिया। वे नाटे कद के थे और अनेक प्रकार के हथियार लिए हुए थे उनके शरीर मकर के समान कुछ-कुछ काले तथा पीले थे। वे यज्ञस्थल के चारों ओर दौड़-दौड़कर उत्पात मचाने लगे।

14 कुछ सैनिकों ने यज्ञ-पण्डाल के आधार-स्तम्भों को नीचे गिरा दिया, कुछ स्त्रियों के कक्ष में घुस गये, कुछ ने यज्ञस्थान को विनष्ट करना प्रारम्भ कर दिया और कुछ रसोई घर तथा आवासीय कक्षों में घुस गये।

15 उन्होंने यज्ञ के सभी पात्र तोड़ दिये और उनमें से कुछ यज्ञ-अग्नि को बुझाने लगे। कुछेक ने तो यज्ञस्थल की सीमांकन मेखलाएँ तोड़ दी और कुछ ने यज्ञस्थल में मूत्र त्याग कर दिया।

16 इनमें से कुछ ने भागते मुनियों का रास्ता रोक लिया, कुछ ने वहाँ पर एकत्र स्त्रियों को डराया-धमकाया और कुछ ने पण्डाल से भागते हुए देवताओं को बन्दी बना लिया।

17 शिव के एक अनुचर मणिमान ने भृगुमुनि को बन्दी बना लिया तथा श्याम असुर वीरभद्र ने प्रजापति दक्ष को पकड़ लिया। एक अन्य अनुचर चण्डेश ने पूषा को तथा नन्दीश्वर ने भग देवता को बन्दी बना लिया।

18 लगातार पत्थरों की वर्षा के कारण समस्त पुरोहित तथा यज्ञ में एकत्र अन्य सदस्य महान संकट में पड़ गये। अपने प्राणों के भय से वे चारों ओर तितर-बितर हो गये।

19 वीरभद्र ने अपने हाथों से अग्नि में आहुति डालते हुए भृगुमुनि की मूँछ नोच ली।

20 वीरभद्र ने तुरन्त उस भग को पकड़ लिया, जो भृगु द्वारा शिव को शाप देते समय अपनी भौंहे मटका रहा था। उसने अत्यन्त क्रोध में आकर भग को पृथ्वी पर पटक दिया और बलपूर्वक उसकी आँखें निकाल लीं।

21 जिस प्रकार बलदेव ने अनिरुद्ध के विवाहोत्सव में द्यूतक्रीड़ा के समय कलिंगराज दन्तवक्र के दाँत निकाल लिये थे, उसी प्रकार से वीरभद्र ने दक्ष तथा पूषा दोनों के दाँत उखाड़ लिये, क्योंकि दक्ष ने शिव को शाप दिये जाते समय दाँत दिखाये थे और पूषा ने भी सहमति स्वरूप हँसते हुए दाँत दिखाए थे।

22 तब वह दैत्य सदृश पुरुष वीरभद्र दक्ष की छाती पर चढ़ बैठा और तीक्ष्ण हथियार से उसके शरीर से सिर काटकर अलग करने का प्रयत्न करने लगा, किन्तु सफल नहीं हुआ।

23 उसने मंत्रों तथा हथियारों के बल पर दक्ष का सिर काटना चाहा, किन्तु दक्ष के सिर की चमड़ी तक को काट पाना दूभर हो रहा था। इस प्रकार वीरभद्र अत्यधिक चकित हुआ।

24 तब वीरभद्र ने यज्ञशाला में लकड़ी की बनी युक्ति (करनी) देखी जिससे पशुओं का वध किया जाता था। उसने दक्ष का सिर काटने में इसका लाभ उठाया।

25 वीरभद्र के कार्य से शिवजी के दल को प्रसन्नता हुई और वह वाह-वाह कर उठा तथा जितने भी भूत, प्रेत तथा असुर वहाँ आये थे, इन सबों ने भयानक किलकारियाँ भरी। दूसरी ओर, यज्ञ का भार सँभालने वाले ब्राह्मण दक्ष की मृत्यु के कारण शोक से चीत्कार करने लगे।

26 फिर वीरभद्र ने उस सिर को लेकर अत्यन्त क्रोध से यज्ञ अग्नि की दक्षिण दिशा में आहुति के रूप में डाल दिया। इस प्रकार शिव के अनुचरों ने यज्ञ की सारी व्यवस्था तहस-नहस कर डाली और समस्त यज्ञ क्षेत्र में आग लगाकर अपने स्वामी के धाम, कैलाश के लिए प्रस्थान किया।

(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान)

 

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT

Comments

  • 🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
This reply was deleted.