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अध्याय दस – सृष्टि के विभाग (3.10)

1 श्री विदुर ने कहा: हे महर्षि, कृपया मुझे बतायें कि लोकवासियों के पितामह ब्रह्मा ने भगवान के अन्तर्धान हो जाने पर किस तरह से अपने शरीर तथा मन से जीवों के शरीरों को उत्पन्न किया?

2 हे महान विद्वान, कृपा करके मेरे सारे संशयों का निवारण करें और मैंने आपसे जो कुछ जिज्ञासा की है उसे आदि से अन्त तक मुझे बताएँ।

3 सूत गोस्वामी ने कहा: हे भृगुपुत्र, महर्षि मैत्रेय मुनि विदुर से इस तरह सुनकर अत्यधिक प्रोत्साहित हुए। हर वस्तु उनके हृदय में थी, अतः वे प्रश्नों का एक एक करके उत्तर देने लगे।

4 परम विद्वान मैत्रेय मुनि ने कहा: हे विदुर, इस तरह भगवान द्वारा दी गई सलाह के अनुसार ब्रह्मा ने एक सौ दिव्य वर्षों तक अपने को तपस्या में संलग्न रखा और अपने को भगवान की भक्ति में लगाये रखा।

5 तत्पश्चात ब्रह्मा ने देखा कि वह कमल जिस पर वे स्थित थे तथा वह जल जिसमें कमल उगा था प्रबल प्रचण्ड वायु के कारण काँप रहे हैं।

6 दीर्घकालीन तपस्या तथा आत्म-साक्षात्कार के दिव्य ज्ञान ने ब्रह्मा को व्यावहारिक ज्ञान में परिपक्व बना दिया था, अतः उन्होंने वायु को पूर्णत: जल के साथ पी लिया।

7 तत्पश्चात उन्होंने देखा कि वह कमल, जिस पर वे आसीन थे, ब्रह्माण्ड भर में फैला हुआ है और उन्होंने विचार किया कि उन समस्त लोकों को किस तरह उत्पन्न किया जाय जो इसके पूर्व उसी कमल में लीन थे।

8 इस तरह पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की सेवा में लगे ब्रह्माजी कमल के कोश में प्रविष्ट हुए और चूँकि वह सारे ब्रह्माण्ड में फैला हुआ था, अतः उन्होंने इसे ब्रह्माण्ड के तीन विभागों में और उसके बाद चौदह विभागों में बाँट दिया।

9 परिपक्व दिव्य ज्ञान में भगवान की अहैतुकी भक्ति के कारण ब्रह्माजी ब्रह्माण्ड में सर्वोच्च पुरुष हैं। इसीलिए उन्होंने विभिन्न प्रकार के जीवों के निवास स्थान के लिए चौदह लोकों का सृजन किया।

10 विदुर ने मैत्रेय से पूछा: हे प्रभु, हे परम विद्वान ऋषि, कृपा करके नित्यकाल का वर्णन करें जो अद्भुत अभिनेता परमेश्वर का दूसरा रूप है। नित्य काल के क्या लक्षण हैं? कृपा करके हमसे विस्तार से कहें।

11 मैत्रेय ने कहा: नित्यकाल ही प्रकृति के तीनों गुणों की अन्योन्य क्रियाओं का आदि स्रोत है। यह अपरिवर्तनशील तथा सीमारहित है और भौतिक सृजन की लीलाओं में यह भगवान के निमित्त रूप में कार्य करता है।

12 यह विराट जगत भौतिक शक्ति के रूप में अप्रकट तथा भगवान के निर्वेशेष स्वरूप काल द्वारा भगवान से विलग किया हुआ है। यह विष्णु की उसी भौतिक शक्ति के प्रभाव के अधीन भगवान की वस्तुगत अभिव्यक्ति के रूप में स्थित है।

13 यह विराट जगत जैसा अब है वैसा ही रहता है। यह भूतकाल में भी ऐसा ही था और भविष्य में इसी तरह रहेगा।

14 उस एक सृष्टि के अतिरिक्त जो गुणों की अन्योन्य क्रियाओं के फलस्वरूप स्वाभाविक रूप से घटित होती है नौ प्रकार की अन्य सृष्टियाँ भी हैं। नित्य काल, भौतिक तत्त्वों तथा मनुष्य के कार्य के गुण के कारण प्रलय तीन प्रकार का है।

15 नौ सृष्टियों में से पहली सृष्टि महत तत्त्वसृष्टि अर्थात भौतिक घटकों की समग्रता है, जिसमें परमेश्वर की उपस्थिति के कारण गुणों में परस्पर क्रिया होती है। द्वितीय सृष्टि में मिथ्या अहंकार उत्पन्न होता है, जिसमें से भौतिक घटक, भौतिक ज्ञान तथा भौतिक कार्यकलाप प्रकट होते हैं।

16 इन्द्रिय विषयों का सृजन तृतीय सृष्टि में होता है और इनसे तत्त्व उत्पन्न होते हैं। चौथी सृष्टि है ज्ञान तथा कार्य-क्षमता (क्रियाशक्ति) का सृजन।

17 पाँचवी सृष्टि सतोगुण की अन्योन्य क्रिया द्वारा बने अधिष्ठाता देवों की है, जिसका सार समाहार मन है। छठी सृष्टि जीव के अज्ञानतापूर्ण अंधकार की है। जीव अज्ञान से, भौतिक वस्तुओं के स्वामी होने की मिथ्या भावना से बद्ध है।

18 उपर्युक्त समस्त सृष्टियाँ भगवान की बहिरंगा शक्ति की प्राकृतिक सृष्टियाँ हैं। अब मुझसे उन ब्रह्माजी द्वारा की गई सृष्टियों के विषय में सुनो जो रजोगुण के अवतार हैं और सृष्टि के मामले में जिनका मस्तिष्क भगवान जैसा ही है।

19 सातवीं सृष्टि अचर प्राणियों की है, जो छह प्रकार के हैं: फूलरहित फलवाले वृक्ष, फल पकने तक जीवित रहने वाले पेड़-पौधे, लताएँ, नलीदार पौधे; बिना आधार वाली लताएँ तथा फलफूल वाले वृक्ष।

20 सारे अचर पेड़-पौधे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। वे अचेतप्राय होते हैं, किन्तु भीतर ही भीतर उनमें पीड़ा की अनुभूति होती है। वे नाना प्रकारों में प्रकट होते हैं।

21 आठवीं सृष्टि निम्नतर जीवयोनियों की है और उनकी अट्ठाईस विभिन्न जातियाँ हैं। वे सभी अत्यधिक मूर्ख तथा अज्ञानी होती हैं। वे गन्ध से अपनी इच्छित वस्तुएँ जान पाती हैं, किन्तु हृदय में कुछ भी स्मरण रखने में अशक्य होती हैं।

22 हे शुद्धतम विदुर, निम्नतर पशुओं में गाय, बकरी, भैंस, काला बारहसिंगा, सूकर, नीलगाय, हिरण, मेंढा तथा ऊँट ये सब दो खुरों वाले हैं।

23 घोड़ा, खच्चर, गधा, गौर, शरभ-भैंसा तथा चँवरी गाय इन सबों में केवल एक खुर होता है। अब मुझसे उन पशुओं के बारे में सुनो जिनके पाँच नाखून होते हैं।

24 कुत्ता, सियार, बाघ, लोमड़ी, बिल्ली, खरगोश, सजारु (स्याही), सिंह, बन्दर, हाथी, कछुवा, मगर, गोसाप (गोह) इत्यादि के पंजों में पाँच नाखून होते हैं। वे पंचनख अर्थात पाँच नाखूनों वाले पशु कहलाते हैं।

25 कंक, गीध, बगुला, बाज, भास, भल्लूक, मोर, हंस, सारस, चक्रवाक, कौवा, उल्लू इत्यादि पक्षी कहलाते हैं।

26 मनुष्यों की सृष्टि क्रमानुसार नौवीं है। यह ऐसी योनि (जाति) है जो अपना आहार उदर में संचित करते हैं। मानव जाति में रजोगुण की प्रधानता होती है। मनुष्यगण दुखी जीवन में भी सदैव व्यस्त रहते हैं, किन्तु वे अपने को सभी प्रकार से सुखी समझते हैं।

27 हे श्रेष्ठ विदुर, ये अन्तिम तीन सृष्टियाँ तथा देवताओं की सृष्टि (दसवीं सृष्टि) वैकृत सृष्टियाँ हैं, जो पूर्ववर्णित प्राकृत (प्राकृतिक) सृष्टियों से भिन्न हैं। कुमारों का प्राकट्य दोनों ही सृष्टियाँ हैं।

28-29 देवताओं की सृष्टि आठ प्रकार की है – (1) देवता (2) पितरगण (3) असुरगण (4) गन्धर्व तथा अप्सराएँ (5) यक्ष तथा राक्षस (6) सिद्ध, चारण तथा विद्याधर, (7) भूत, प्रेत तथा पिशाच (8) किन्नर – अति मानवीय प्राणी, देवलोक के गायक इत्यादि। ये सब ब्रह्माण्ड के स्रष्टा ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न हैं।

30 अब मैं मनुओं के वंशजों का वर्णन करूँगा। स्रष्टा ब्रह्मा जो कि भगवान के रजोगुणी अवतार हैं भगवान की शक्ति के बल से प्रत्येक कल्प में अचूक इच्छाओं सहित विश्व प्रपंच की सृष्टि करते हैं।

(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान)

 

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Comments

  • 🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
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