|आनंद कि खोज कहाँ करे|
दुनिया मैं सभी लोगो को आनद की तलाश है। संसारी लोग हो या फिर अध्यतमिक लोग तालाश सिर्फ एक ही चीज़ कि है , दुःख कि निर्वृति एवं आनद कि तलाश| हम सब को जब लगता है कि आनद गाडी मैं मिलेगा तो हम गाडी कि तरफ भागते है, नया स्मार्ट फ़ोन से आनद मिलेगा तो, स्मार्ट फ़ोन खरीदते है यह आनद निश्चित नहीं होता । संसार कि कोई भी चीज़ ले लो उसका आनद परमानेंट नहीं है, मोबाइल बना तो रेडिशन से बीमारिया भी बढ़ी । गाडी बनी तो उससे पर्दूषण और अस्थमा जैसे बीमारिया पैदा हो गयी, अगर संसारी चीज़ो मैं आनद हो तो वह सबके लिए सामान होना चाहिए। एक आदमी शराब पीता है, और कहता है वाह! क्या मजा आया। वंही किसी दूसरे व्यक्ति को शराब दूर से भी दिख जाए तो नाक और मुंह बाद कर लेता है। ऐसा क्यों है ? अगर शराब एक व्यक्ति को सुख देती है तो दूसरे को भी सामान सुख देना चाहिए लेकिन नहीं ऐसा नहीं होता क्योकि इस संसार मैं जितनी भी चीज़े है वो परमानेंट सुख नहीं दे सकती है। भागवद पुराण ३- ५ -२ मैं लिखा है
" सुखाय कर्माणि करोति लोको न तै: सुखम वानयदुपराम वा ।
विन्दते भूयस्तत् एवं दुखम यदत्र युक्तं भगवान् वेदन्न्न
प्रत्येक जीव प्रतिक्षण सुख के लिए प्रत्येक कर्म करता है किन्तु दुःख मिलता है । करता है सुख के लिए लेकिन मिलता है दुःख। सभी लगे है अपनी अक्ल लगाने मैं , बड़े बड़े फिलॉस्फर, सेल्फ-हेल्प बुक राइटर , मेरी किताब पढ़ लो तुम सुखी हो जाओगे, हम शारीर को सवस्थ कर लेंगे तो आंनद मिल जाएगा। अरबपति हो जाएगे तो आंनद मिल जाएगा। हमारे बीवी आजाये , बेटा हो जाए तो आंनद मिल जाएगा, प्राइम मिन्स्टर हो जाए तो आनद मिल जाएगा ! बड़ी बड़ी तरकीबे लगा रहे है लोग यंहा तक कि हम लाल किताब खरीद के दूसरा का नुक्सान कर के अपना फयदा कर ले तो मिल जाएगा --- लेकिन " न तै: सुखम् " सुख नहीं मिला किस को; और न मिलेगा। आनद तो उसको माने जो कभी खतम न हो । कैसे मिलेगा ऐसा आनद ? श्रील प्रभुपदा ने अपनी बुक्स के द्वारा जो कि वेदो और शाश्त्रो पर आधारित है हमे बताते है कि श्री कृष्णा आनद के परम स्त्रोत है । सबसे पहेले हमे अपनी और भगवान् कृष्णा कि स्थिति को समझना होगा।
एक तो जीव है (हम सब लोग), , एक माया है ( माया का जगत है ) और एक भगवान् है। माया के इस जगत मैं दुःख है भगवान् के जगत मैं आनद है। हम सब माया के जगत मैं आनादि काल से दुखी हो रहे है। हमे भगवान् का आनद कभी मिला ही नहीं। क्योकि आनद एक बार मिल जाए तो छीन नहीं सकता जैसे कि प्रकाश पर अँधेरे का अधिकार कभी नहीं हो सकता , हा लेकिन अँधेरे पर प्रकाश का अधिकार होता है।
हम जीवो को लगता है कि हम चीजो को नियंत्रित कर सकते है। हम ख़ुशी को, सुख को, खूब सारे धन से पा सकते है। इसी चक्कर मैं हम दिन रात लग के पैसा कमाते है और फिर एक दिन हमे सारा कमाया हुआ धन और सम्पति यंही छोड़ कर जाना पड़ता है। हम सब खुद के सुख के लिए , खुद कि इन्द्रियो कि तृप्ति के लिए सब वर्क करते है। ये गलतफमी है कि आप किसी और के लिए काम करते है न आप सिर्फ खुद के लिए ही ये सब जी का झंझाल पाले है । ऐसा नहीं है कि हम जीवो को वैरागय का अनुभव नहीं होता है । समय समय पर माया इसकी भी व्यवस्था करती है , एक दिन मैं ही हमे कई बार अपने प्रिये पति देव पर बीवी पर गुस्सा आता है, हमारी बात मानी तो वाहा क्या बीबी मिली है , क्या बेटा है , क्या पति मिला है और थोडा सा कहा नहीं माना तो, लो जी कैसे बीवी मिली किस्मत ही फूट गयी, ऐसा बेटा मिला पूरा फ्यूचर ही खराब हो गया। फिर बात मान ली तो वह वह क्या फॅमिली है! अपना स्वार्थ सिद्ध होना चाहिए बस ये तो स्थिति है हम सब कि। और इस स्थिति के साथ हम समझना चाहते है कि आनद कैसे मिले ? क्या यह पॉसिबल है ? नहीं बिलकुल नहीं , वेदो का कथन है कि आंनद कि खोज के हमरा लक्ष्ये है।
दुःखतरायाभिघातत जिघ्यासा तदभि घातके हेतो (सांख्ये दर्शन) साथ मैं यह भी बताते पारम्परिक गुरु के सानिधय मैं ही इस आनद कि प्राप्ति हो सकती है। श्रीला प्रभुपाद ऐसे ही गुरु परमपरा से आते है , और वो बताते है कि अगर हम कोई भी कर्म श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए करते है तो उससे हमे आनद कि प्राप्ति होती है बस यह छोटी सी चीज़ करनी है आपको और हमे. अब श्री कृष्ण को प्रस्न्न कैसे किया जाए। भगवान् श्री कृष्णा स्व्यं भागवद गीता 9. 26 मैं कहते है
पत्रम पुष्पम फलम तोयं यो में भक्त्या प्रयच्छत
तदहं भक्ति -उपह्रताम असंयमी प्रयतात्मनः
यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र , पुष्प , फल या जल प्रदान करता है, तो मैं उससे स्वीकार करता हु।
यंहा पर प्रेम भक्ति शब्द बहुत महतवपूर्ण है। भगवान् को सिर्फ प्रेम के द्वारा ही पाया जा सकता है, जीवन युद्ध के सामान है तथा इस युद्ध को जितने कि लिए हमे अर्जुन कि तरह श्री- कृष्णा की शरण मैं जाना चाहिए। करुक्षेत्र के युद्ध से पहेले दुर्योधन को उसके मामा शुकनि ने कृष्ण को अपने पक्ष मैं करने के लिए भेजा और दूसरी तरफ अर्जुन भी उसी दिन श्री कृष्ण के पास पहुचे। समय आने पर भगवान् ने दोनों से से पूछा कि एक तरफ मेरी सारी सेना है, कुबेर से ज्यादा खजाना है , अस्त्र शस्त्र है और दूसरी तरफ सिर्फ मैं हूँ जो कि युद्ध मैं हाथ भी नहीं उठाउंगा बताओ तुम्हे कौन चाहिए। तो दुर्योधन ने उनसे भौतिक संसार मांग लिया और अर्जुन ने कृष्ण को माँगा। उस वक़त दुर्योधन को लगा होगा कि अर्जुन कितना मुर्ख है , इसे मुझ से पहेले मागने का अधिकार मिला फिर भी इसने श्री-कृष्णा को माँगा ?
आज हम जानते है कि उस युद्ध मैं किसी कि विजय हुई ! अर्जुन के पास सिर्फ कृष्ण थे उन्हें भारत वर्ष पर राज करने का अधिकार प्राप्त हुआ और दुर्योधन के पास सारी सांसारिक ताकत होते हुए भी उसे सिर्फ, संघर्ष, पीड़ा और मुर्त्यु ही प्राप्त हुई।
हमारी स्तिथि भी बिलकुल दुर्योधन जैसी ही है, हम हमेशा सुख कि तलाश संसार मैं करते है और भगवान् से भौतिक वस्तुए मांगते रहते है और जीवन रूपी यह युद्ध हम हार जाते है। इतना ही नहीं, जो भक्त है और भगवान् वे विश्वाश करते है, कई बार हम उनका मजाक बनाते है कि फलाना व्यक्ति तो सारा दिन हरी भजता है। क्योकि हम यह नहीं जानते कि हम हर पल इस माया से हारते है दुखी रहते है और हरी भक्त हर अवस्था मैं आंनद मैं रहता है क्योकि वह जनता है, की वह भगवान् कृष्ण की शरण मैं है और भगवान शरण मैं आये हुए हर व्यक्ति कि रक्षा करते है। ऐसा भगवान् गीता मैं स्व्यं कहते है।
सर्व -धर्मं परित्यज्य मम एकम शरणम वरजा
अहम् तवं सर्व -पापेभ्यो मोक्ष्यामि माँ सुकः 18.66 (गीता)
समस्त प्रकार के धर्मो का परित्याग करो और मेरी शरण मैं आओ। मैं समस्त पापो से तुम्हारा
उद्धार कर दूंगा। डरो मत।
हमे सिर्फ भगवान् के आदेशो का पालन करते हुए उनकी शरण मैं जाना चाहिए। iश्रीला प्रभुपाद उनकी शरण मैं जाने के लिए जिस सरलतम विधि के बारे मैं बताते है उसी विधि को स्व्यं भगवान ने ५०० वर्ष पूर्व चेतन्य महाप्रभु के रूप मैं आकर हम सब को बताया था । हमे सिर्फ "हरे कृष्णा, हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे , हरे राम, हरे राम , राम राम हरे हरे। का जप या कीर्तन करना चाहिए। यह मन्त्र कलियुग का यग है और इसके करने से हर तरह से आत्मिक शांति और आनद की प्राप्ति होती है।
हरे कृष्णा
You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!
Comments
Radhey Radhey
Hare Krishna Prabhuji,dandavat.
All Glories to Srila Prabhupada and Senior Vashinav Devotees
Hare Krishna
Hari Krishna Prabhuji. I really liked ur blog. Very informative information given. Radhey Radhey
Hare Krishna Prabhu jee
very nice Great.............. Hari Bol