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श्रील प्रभुपाद की जय हो !

(All Glories to Sril Prabhupada)

हे प्रभु, हे वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी भगवान, मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। मैं भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्माण्डों की उत्पत्ति, पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं। वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं, क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया। उन्हीं के कारण बड़े-बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है। उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रहमाण्ड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं। अतः मैं उन भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरन्तर वास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे ही परम सत्य हैं। यह भागवत पुराण, भौतिक कारणों से प्रेरित होने वाले समस्त धार्मिक कृत्यों को पूर्ण रूप से बहिष्कृत करते हुए, सर्वोच्च सत्य का प्रतिपादन करता है, जो पूर्ण रूप से शुद्ध हृदय वाले भक्तों के लिए बोधगम्य है। यह सर्वोच्च सत्य वास्तविकता है जो माया से पृथक होते हुए सबों के कल्याण के लिए है। ऐसा सत्य तीनों प्रकार के सन्तापों को समूल नष्ट करने वाला है। महामुनि व्यासदेव द्वारा (अपनी परिपक्वावस्था में) संकलित यह सौन्दर्यपूर्ण भागवत ईश्वर-साक्षात्कार के लिए अपने आप में पर्याप्त है। तो फिर अन्य किसी शास्त्र की क्या आवश्यकता है? जैसे जैसे कोई ध्यानपूर्वक तथा विनीत भाव से भागवत के सन्देश को सुनता है, वैसे वैसे ज्ञान के इस संस्कार (अनुशीलन) से उसके हृदय में परमेश्वर स्थापित हो जाते हैं। (श्रीमद भागवतम 1.1.1-2)

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10भगवद्गीता यथारूप पत्रिका स्वरूप में.pdf

11 प्रथम स्कन्ध ब्लॉग संकलन .pdf

12 द्वितीय स्कन्ध ब्लॉग संकलन .pdf

13 तृतीय स्कन्ध ब्लॉग संकलन .pdf

14 ब्लॉग संकलन चतुर्थ स्कन्ध .pdf

15 ब्लॉग संकलन पंचम स्कन्ध .pdf

16 ब्लॉग संकलन षष्ठ स्कन्ध.pdf

17 ब्लॉग संकलन सप्तम स्कन्ध.pdf

18 ब्लॉग संकलन अष्टम स्कन्ध .pdf

19 नवम स्कन्ध ब्लॉग संकलन.pdf

20 ब्लॉग संकलन दशम स्कन्ध भाग एक 1-13.pdf

21 दशम स्कन्ध भाग दो ब्लॉग संकलन 14-44 .pdf

22 दशम स्कन्ध (भाग तीन) ब्लॉग संकलन 45-69.pdf

23दशम स्कन्ध ब्लॉग संकलन भाग चार 70-90 .pdf

24 एकादश स्कन्ध ब्लॉग संकलन .pdf

25 ब्लॉग संकलन द्वादश स्कन्ध .pdf

26 श्रीभगवान की स्तुतियाँ पत्रिका स्वरूप में .pdf

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मैं श्रील शुकदेव गोस्वामी को सादर नमस्कार करता हूँ जो श्रेष्ठ योगी-मुनि हैं और परम सत्य के साकार रूप हैं। उन्होंने संसार रूपी सर्प द्वारा काटे गये परीक्षित महाराज को बचाया। हे ईशों के ईश, हे स्वामी, आप हमें जन्म-जन्मान्तर तक अपने चरणकमलों की शुद्ध भक्ति का वर दें। मैं उन भगवान हरि को सादर नमस्कार करता हूँ जिनके पवित्र नामों का सामूहिक कीर्तन सारे पापों को नष्ट करता है और जिनको नमस्कार करने से सारे भौतिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है। (श्रीमद भागवतम 12.13.21-23)

एकमात्र श्रीभगवान की (हम सब पर) असीम कृपा से ही – हिन्दी भाषी भक्तों के लाभार्थ दिनांक 31 जुलाई 2020 से प्रतिदिन ब्लॉग रूप में श्रीमद भगवद्गीता एवं श्रीमदभागवतम के समस्त अध्यायों और श्रीभगवान की स्तुतियों के भक्ति वेदान्त श्लोकार्थ के प्रकाशन का संकलन (पत्रिका स्वरूप में) अपलोड करने सम्बन्धी कार्य सम्भव हो सका है (पूर्ण हुआ)

                             पत्रिकाओं की विशिष्टताएँ:-

  1. प्रत्येक अध्याय एक सुन्दर इमेज कोट्स सहित

  2. शब्दों के स्पष्ट उच्चारण के लिए अनुस्वार का न्यूनतम प्रयोग 

  3. श्लोकार्थ पृथक रंग में

  4. श्रीमद भगवद्गीता के महत्त्वपूर्ण 108 श्लोक पृथक रंग (purple color) में

  5. पत्रिका के सभी पृष्ठ रंगीन

  6. बॉर्डर हेडर (शीर्षक) - फुटर पृथक रंग में

  7. पत्रिका की साइज भगवद्दर्शन पत्रिका के समान

भक्तार्पण

श्रीमद भागवतम के द्वादश स्कन्ध के अध्याय तेरह के श्लोक क्रमांक तेरह में इस दिव्य ग्रन्थ के दान का महत्त्व बताया गया है। अतः आप सभी भक्तों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि, इन समस्त (सत्रह) पत्रिकाओं का कलर प्रिंट आउट लेकर (स्वयं के लिए दान कीजिए)।    इन्हीं भावपूर्ण शब्दों के साथ – अतीव विनीत एवं समर्पित भाव से – सभी भक्तों को सादर अर्पित।

आप सभी भक्तों एवं टीम इस्कॉन डिजायर ट्री.कॉम.

का हार्दिक आभार और धन्यवाद

(Thanks a lot to All devotee and team IDT.Com.)

***भगवान हरि की जय हो !**

**हरि बोल! हरि बोल! हरि बोल!***

-- :: हरि ॐ तत सत :: --

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(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र माँगीलाल चौहान)

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Comments

  • आपने बहुत ही सुंदर तरीके से यह दुरुह कार्य संपन्न किया है।
    अध्यात्म जगत में इसकी अनुगूँज सदैव के लिए बनी रहेगी।
    कृष्णे मतिरस्तु!!
  • 🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण -- कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम -- राम राम हरे हरे 🙏
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