10892903068?profile=RESIZE_584x

भगवान कृष्ण के दस लीलावतार ।  मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह देव, वामन, परशुराम, रामचन्द्र, कृष्ण तथा बलराम, बुद्ध एवं कल्कि। (11.4.1-6)

अध्याय चार -- राजा निमि से द्रुमिल द्वारा ईश्वर के अवतारों का वर्णन (11.4)

1 राजा निमि ने कहा: भगवान स्वैच्छानुसार अपनी अन्तरंगा शक्ति से भौतिक जगत में अवतरित होते हैं। कृपया भगवान हरि के – भूत, वर्तमान तथा भावी अवतारों की – विविध लीलाओं का वर्णन करें।

2 श्री द्रुमिल ने कहा: भले ही कोई महान प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी तरह से पृथ्वी के धूल-कणों की गणना कर सके, किन्तु समस्त शक्तियों के आधार असीम भगवान हरि के असंख्य दिव्य गुणों की गणना करने का प्रयास निरी मूर्खता होगी।

3 भगवान नारायण ने अपनी ही माया से निर्मित पाँच तत्त्वों से ब्रह्माण्ड की सृष्टि की, फिर परमात्मा – रूप में उस ब्रह्माण्ड में प्रवेश किया और पुरुष अवतार के नाम से विख्यात हुए।

4 भगवान के विराट शरीर में ब्रह्माण्ड के तीनों लोक स्थित हैं। उनकी दिव्य इन्द्रियाँ समस्त देहधारी जीवों की ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों को उत्पन्न करती हैं। उनकी चेतना से बद्ध-ज्ञान उत्पन्न होता है और उनके प्रबल श्वास से देहधारी जीवों का शारीरिक बल, ऐन्द्रिय शक्ति तथा बद्ध-कर्म उत्पन्न होते हैं। वे सतो, रजो तथा तमोगुणों के माध्यम से आदि गति प्रदान करनेवाले हैं। इस प्रकार ब्रह्माण्ड का सृजन, पालन और संहार होता है।

5 प्रारम्भ में आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान ने इस ब्रह्माण्ड की सृष्टि करने के निमित्त रजोगुण के माध्यम से ब्रह्मा का रूप प्रकट किया। भगवान ने ब्रह्माण्ड का पालन करने के लिए विष्णु-रूप में अपना स्वरूप प्रकट किया, जो यज्ञ का स्वामी, द्विजन्मा ब्राह्मणों तथा उनके धार्मिक कर्तव्यों का रक्षक है। जब ब्रह्माण्ड का संहार करना होता है, तब भगवान तमोगुण का प्रयोग करते हुए अपना रुद्र-रूप प्रकट करते हैं। समस्त जीव सदैव सृष्टि, पालन तथा संहार की शक्तियों के अधीन रहते हैं।

6 परम शान्त तथा ऋषियों में श्रेष्ठ नर-नारायण ऋषि का जन्म धर्म तथा उनकी पत्नी दक्षपुत्री मूर्ति के पुत्र के रूप में हुआ था। नर-नारायण ऋषि ने भगवदभक्ति की शिक्षा दी, जिससे भौतिक कर्म का अन्त हो जाता है। वे आज भी जीवित हैं और उनके चरणकमलों की सेवा सन्त पुरुषों द्वारा की जाती है।

7 यह सोचकर कि नर-नारायण ऋषि अपनी कठिन तपस्या से अत्यन्त शक्तिशाली बन कर उसका स्वर्ग का राज्य छीन लेंगे, राजा इन्द्र भयभीत हो उठा। भगवान के अवतार की दिव्य महिमा को न जानते हुए इन्द्र ने कामदेव को उसके संगियों सहित बदरिकाश्रम भेजा, जिसने वसन्त ऋतु की मनोहारी मन्द वायु और सुन्दर स्त्रियों की बाँकी चितवनों के तीरों से ऋषियों को बिधने का प्रयास किया।

8 इन्द्र द्वारा किये गये अपराध को जानते हुए आदि भगवान – कामदेव तथा थरथरा रहे उसके साथियों से हँसते हुए इस प्रकार बोले – “हे शक्तिशाली मदन, हे वायु-देव तथा देवताओं की पत्नियों डरो नहीं। कृपया मेरे द्वारा दी जाने वाली भेंट स्वीकार करो और अपनी उपस्थिति से मेरे आश्रम को पवित्र बनाओ।”

9 हे राजा निमि, जब नर-नारायण ऋषि ने देवताओं के भय को दूर करते हुए इस प्रकार कहा, तो उन्होंने लज्जा से अपने सिर झुका लिये और भगवान से इस प्रकार बोले – “हे प्रभु! आप सदैव दिव्य हैं, मोह से परे हैं, नित्य अविकारी हैं। हमारे महान अपराध के बावजूद आपकी अहैतुकी कृपा आपमें कोई असामान्य घटना नहीं है, क्योंकि असंख्य आत्माराम तथा क्रोध और मिथ्या अहंकार से मुक्त मुनिजन आपके चरणकमलों पर विनयपूर्वक अपना शीश झुकाते हैं।

10 देवतागण उन लोगों के मार्ग में अनेक अवरोध प्रस्तुत करते हैं, जो देवताओं के अस्थायी आवासों को लाँघकर आपके परम धाम पहुँचने के लिए आपकी पूजा करते हैं। जो यज्ञों में देवताओं को उनका नियत भाग भेंट में दे देते हैं, वे ऐसे किसी अवरोध का सामना नहीं करते। आप अपने भक्त के प्रत्यक्ष रक्षक हैं, अतएव वह उन सभी अवरोधों को, जो उसके सामने देवताओं द्वारा रखे जाते हैं, लाँघ जाने में समर्थ होता है।

11 कुछ लोग ऐसे हैं, जो हमारे प्रभाव को लाँघने के उद्देश्य से कठिन तपस्या करते हैं – जो भूख, प्यास, गर्मी, सर्दी तथा कालजनित अन्य परिस्थितियों यथा–रसनेन्द्रिय और जननेन्द्रिय के वेगों की अन्तहीन लहरों से युक्त अगाध समुद्र की तरह है। इस तरह कठिन तपस्या के द्वारा इन्द्रियतृप्ति के इस समुद्र को पार कर लेने पर भी, ऐसे व्यक्ति व्यर्थ के क्रोध के वशीभूत होने पर मूर्खता से गो-खुर में डूब जाते हैं। इस तरह वे अपनी कठिन तपस्या के लाभ को व्यर्थ गँवा बैठते हैं।

12 जब देवतागण इस तरह से भगवान की प्रशंसा कर रहे थे, तो सर्वशक्तिमान प्रभु ने सहसा उनकी आँखों के सामने अनेक स्त्रियाँ प्रकट कर दीं, जो भव्य, सुन्दर वस्त्रों-आभूषणों से सज्जित और भगवान की सेवा में लगी हुई थीं।

13 जब देवताओं के अनुयायियों ने नर-नारायण ऋषि द्वारा उत्पन्न स्त्रियों के मोहक सौन्दर्य की ओर निहारा और उनके शरीरों की सुगन्ध को सूँघा तो उनके मन मुग्ध हो गए। निस्सन्देह ऐसी स्त्रियों के सौन्दर्य तथा उनकी भव्यता को देखकर देवताओं के अनुयायी अपने ऐश्वर्य को तुच्छ समझने लगे।

14 नर-नारायण ऋषि किंचित मुसकाए और अपने समक्ष नतमस्तक प्रतिनिधियों से कहा, “तुम इन स्त्रियों में से जिस किसी को भी अपने उपयुक्त समझो, उसे चुन लो, वह स्वर्गलोक का आभूषण (शोभा बढ़ाने वाली) बन जायेगी।"

15 देवताओं के उन सेवकों ने ॐ शब्द का उच्चारण करते हुए अप्सराओं में सर्वोत्कृष्ट उर्वशी को चुन लिया और आदरपूर्वक उसे अपने साथ लेकर स्वर्गलोक लौट गए।

16 देवताओं के सेवकों ने इन्द्र को नारायण के परम बल के बारे में बताया। जब इन्द्र ने नर-नारायण ऋषि के बारे में सुना और अपने अपराध के विषय में अवगत हुआ, तो वह डरा और चकित भी हुआ।

17 अच्युत भगवान विष्णु इस जगत में अपने विविध आंशिक अवतारों के रूप में अवतरित हुए हैं यथा हंस, दत्तात्रेय, चारों कुमार तथा हमारे पिता–महान ऋषभदेव। ऐसे अवतारों के द्वारा भगवान सारे ब्रह्माण्ड के लाभ हेतु आत्म-साक्षात्कार का विज्ञान पढ़ाते हैं। उन्होंने हयग्रीव के रूप में प्रकट होकर मधु असुर का वध किया और इस तरह वे पाताल-लोक से वेदों को वापस लाये।

18 मत्यस्य अवतार में भगवान ने सत्यव्रत मनु, पृथ्वी तथा उसकी मूल्यवान औषधियों की रक्षा की। उन्होंने प्रलय-जल से उनकी रक्षा की। वराह के रूप में भगवान ने दितिपुत्र हिरण्याक्ष का वध किया और ब्रह्माण्ड-जल से पृथ्वी का उद्धार किया। कच्छप-रूप में उन्होंने अपनी पीठ पर मन्दर पर्वत को उठा लिया, जिससे समुद्र को मथकर अमृत प्राप्त किया गया। भगवान ने शरणागत गजेन्द्र को बचाया, जो घड़ियाल के चंगुल में भीषण यातना पा रहा था ।

19 भगवान ने वालखिल्य नामक लघु-रूप मुनियों का भी उद्धार किया, जब वे गो-खुर जल में गिर गये थे और इन्द्र उन पर हँस रहा था। भगवान ने इन्द्र को भी बचाया, जो वृत्रासुर-वध के पापकर्म के फलस्वरूप अंधकार से प्रच्छन्न था। जब देव-पत्नियाँ असुरों के महल में असहाय होकर बन्दी बनाई गई थीं, तो भगवान ने ही उन्हें बचाया। अपने नृसिंह-अवतार में भगवान ने भक्तों का भय दूर करने के लिए असुरराज हिरण्यकशिपु का वध किया।

20 इस प्रकार भगवान प्रत्येक मन्वन्तर में अपने विभिन्न अवतारों के माध्यम से ब्रह्माण्ड की रक्षा करके देवताओं को प्रोत्साहित करते हैं। भगवान वामन के रूप में भी प्रकट हुए और तीन पग भूमि माँगने के बहाने बलि महाराज से उनका सर्वस्व प्राप्त कर अदिति-पुत्रों को वापस कर दिया।

21 परशुराम का जन्म भृगुवंश में अग्नि के रूप में हुआ, जिसने हैहय कुल को जलाकर भस्म कर दिया। इस प्रकार भगवान परशुराम ने पृथ्वी को इक्कीस बार क्षत्रियों से विहीन कर दिया। भगवान सीतादेवी के पति रामचन्द्र के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने दस सिरों वाले रावण को लंका के सारे सैनिकों समेत मारा। वे श्रीराम जिनकी कीर्ति संसार के कल्मष को नष्ट करती है सदैव विजयी होते हैं।

22 पृथ्वी का भार उतारने के लिए अजन्मा भगवान यदुवंश में जन्म लेंगे और ऐसे कर्म करेंगे, जिन्हें कर पाना देवताओं के लिए भी असम्भव है। वे बुद्ध के रूप में तर्कदर्शन की स्थापना करते हुए अयोग्य वैदिक यज्ञकर्ताओं को मोहित करेंगे और कल्कि के रूप में वे कलियुग के अन्त में अपने को शासक बताने वाले सारे निम्न श्रेणी के लोगों का वध करेंगे।

23 हे महाबाहु राजा, ब्रह्माण्ड के स्वामी भगवान के ऐसे जन्म तथा कर्म असंख्य हैं, जिस प्रकार मैं वर्णन कर चुका हूँ। वस्तुतः भगवान की कीर्ति अनन्त है।

 

(समर्पित एवं सेवारत – जगदीश चन्द्र चौहान)

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT

Comments

  • https://youtu.be/Z6mZP_eQs-E
    🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
This reply was deleted.