10893639094?profile=RESIZE_400x

अध्याय पन्द्रह – भगवान कृष्ण द्वारा योग सिद्धियों का वर्णन (11.15)

1 पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान ने कहा : हे उद्धव, योग-सिद्धियाँ उस योगी द्वारा अर्जित की जाती है जिसने अपनी इन्द्रियों तथा प्राणायाम पर विजय प्राप्त कर ली है और जो अपनी चेतना को मुझमें स्थिर कर चुका है।

2 श्री उद्धव ने कहा : हे अच्युत, योग-सिद्धि किस विधि से प्राप्त की जा सकती है और ऐसी सिद्धि का स्वभाव क्या है? योग-सिद्धियाँ कितनी हैं? कृपा करकेमुझे बतलाइये। निस्सन्देह आप समस्त योग-सिद्धियों के प्रदाता हैं।

3 भगवान ने कहा : योग के पारंगतों ने घोषित किया है कि योग-सिद्धि तथा ध्यान के अठारह प्रकार हैं जिनमें से आठ मुख्य हैं, जो मेरे अधीन हैं और दस गौण हैं, जो सतोगुण से प्रकट होती हैं।

4-5 आठ प्रधान योग-सिद्धियों में तीन सिद्धियाँ, जिनसे मनुष्य अपने शरीर को रूपान्तरित कर सकता है, अणिमा (छोटे से छोटा बनना), महिमा (बड़े से बड़ा होना) तथा लघिमा (हल्के से हल्का होना) हैं। प्राप्ति सिद्धि द्वारा मनवांछित वस्तु प्राप्त की जा सकती है और प्राकाम्य सिद्धि द्वारा मनुष्य को उसकी भोग्य वस्तु का अनुभव इस लोक या अगले लोक में होता है। ईशिता सिद्धि से मनुष्य माया की उपशक्तियों को पा सकता है और वशिता सिद्धि से मनुष्य तीनों गुणों से अबाध बन जाता है। जिसने कामावसायिता सिद्धि प्राप्त की होती है, वह कहीं से कोई भी वस्तु सर्वोच्च सीमा तक पा सकता है। हे उद्धव,ये आठ योग-सिद्धियाँ प्राकृतिक रूप से विद्यमान होती है और इस जगत में अद्वितीय हैं।

6-7 प्रकृति के गुणों से उत्पन्न होनेवाली दस गौण योग-सिद्धियाँ हैं – भूख-प्यास तथा अन्य शारीरिक उत्पातों से अपने को मुक्त करने की शक्ति, काफी दूरी से वस्तुओं को देखने-सुनने की शक्ति, मन के वेग से शरीर को गतिशील बनाने की शक्ति, इच्छानुसार रूप धारण करने की शक्ति, अन्यों के शरीर में प्रवेश करने की शक्ति, इच्छानुसार शरीर त्यागने की शक्ति, देवताओं तथा अप्सराओं की लीलाओं का दर्शन करने की शक्ति, अपने संकल्प को पूरा करने तथा ऐसे आदेश देने की शक्ति, जिनका निर्बाध पालन हो सके।

8-9 भूत, वर्तमान तथा भविष्य जानने की शक्ति, शीत-घाम तथा अन्य द्वन्द्वों को सहने की शक्ति, अन्यों के मन को जान लेने, अग्नि, सूर्य, जल, विष इत्यादि के प्रभाव को रोकने तथा अन्यों द्वारा पराजित न होने की शक्ति – ये योग तथा ध्यान की पाँच सिद्धियाँ हैं। मैं उन्हें, उनके नामों तथा गुणों के अनुसार, यहाँ सूचीबद्ध कर रहा हूँ। तुम मुझसे सीख लो कि किस तरह विशेष ध्यान से विशिष्ट योग-सिद्धियाँ उत्पन्न होती है और उनमें कौन-सी विशेष विधियाँ निहित होती हैं।

10 जो व्यक्ति अपने मन को समस्त सूक्ष्म तत्त्वों में व्याप्त मेरे सूक्ष्म रूप में एकाग्र करके मेरी पूजा करता है, वह अणिमा नामक योग-सिद्धि प्राप्त करता है।

11 जो व्यक्ति महत तत्त्व के विशेष रूप में अपने मन को लीन कर देता है और इस तरह समस्त जगत के परमात्मा रूप में मेरा ध्यान करता है उसे महिमा नामक योग-सिद्धि प्राप्त होती है और जो आकाश, वायु, अग्नि इत्यादि पृथक पृथक तत्त्वों में अपने मन को लीन करता है, वह हर भौतिक तत्त्व की महानता (महत्ता) को प्राप्त करता है।

12 मैं प्रत्येक वस्तु के भीतर रहता हूँ, इसलिए मैं भौतिक तत्त्वों के परमाणविक घटकों का सार हूँ। मेरे इस रूप में अपने मन को संलग्न करके, योगी लघिमा नामक सिद्धि प्राप्त कर सकता है, जिससे वह काल के समान सूक्ष्म परमाणविक वस्तु की अनुभूति कर सकता है।

13 सतोगुण से उत्पन्न मिथ्या अहंकार के भीतर अपने मन को पूरी तरह मुझमें एकाग्र करते हुए योगी प्राप्ति नामक सिद्धि प्राप्त करता है, जिससे वह समस्त जीवों की इन्द्रियों का स्वामी बन जाता है।

14 जो व्यक्ति महत तत्त्व के विशेष रूप में, सकाम कर्मों की शृंखला द्वारा उस अवस्था के अव्यक्त परमात्मा रूप मुझमें अपनी सारी मानसिक क्रियाएँ एकाग्र करता है, वह प्राकाम्य नामक सर्वोत्तम योग-सिद्धि प्राप्त करता है।

15 जो मूल गतिप्रदाता तथा तीन गुणों से युक्त बहिरंगा शक्ति के परमेश्वर, परमात्मा विष्णु में अपनी चेतना स्थिर करता है, वह अन्य बद्धजीवों, उनके शरीरों तथा उनकी उपाधियों को नियंत्रित करने की योग-सिद्धि प्राप्त करता है।

16 जो योगी मेरे नारायण रूप में, जो कि समस्त ऐश्वर्यपूर्ण चौथी अवस्था (तुरीय) माना जाता है, अपने मन को लगाता है, वह मेरे स्वभाव से युक्त हो जाता है और उसे वशिता नामक योग-सिद्धि प्राप्त होती है।

17 जो व्यक्ति मेरे निर्विशेष ब्रह्म रूप में अपना शुद्ध मन स्थिर करता है, वह सर्वाधिक सुख प्राप्त करता है, जिसमें उसकी सारी इच्छाएँ भलीभाँति पूरी हो जाती हैं।

18 जो व्यक्ति धर्म को धारण करनेवाले, साक्षात शुद्धता तथा श्वेत द्वीप के स्वामी के रूप मुझमें, अपना मन एकाग्र करता है, वह शुद्ध जीवन को प्राप्त करता है, जिसमें वह भौतिक उपद्रव की छह उर्मियों से अर्थात भूख, प्यास, क्षरण, मृत्यु, शोक तथा मोह से मुक्त हो जाता है।

19 वह शुद्ध जीव जो मेरे भीतर होनेवाली असामान्य ध्वनि पर साक्षात आकाश तथा प्राणवायु के रूप में अपना मन स्थिर करता है, वह आकाश में सारे जीवों की वाणी का अनुभव कर सकता है।

20 मनुष्य को चाहिए कि अपनी दृष्टि को सूर्यलोक में और सूर्यलोक को अपनी आँखों में लीन करके, सूर्य तथा दृष्टि के सम्मेल के भीतर मुझे स्थित मानकर, मेरा ध्यान करे। इस तरह वह किसी भी दूर की वस्तु को देखने की शक्ति प्राप्त कर लेता है।

21 जो योगी अपना मन मुझमें लीन कर देता है और इसके बाद मन का अनुसरण करनेवाली वायु का उपयोग भौतिक शरीर को मुझमें लीन करने के लिए करता है, वह मेरे ध्यान की शक्ति से उस योग-सिद्धि को प्राप्त करता है, जिससे उसका शरीर तुरन्त ही मन के पीछे-पीछे जाता है।

22 जब कोई योगी किसी विशेष विधि से अपने मन को लगाकर कोई विशिष्ट रूप धारण करना चाहता है, तो वही रूप तुरन्त प्रकट होता है। ऐसी सिद्धि मेरी उस अचिंत्य योगशक्ति के आश्रय में मन को लीन करने से सम्भव है, जिसके द्वारा मैं असंख्य रूप धारण करता हूँ।

23 जब कोई पूर्ण योगी किसी अन्य के शरीर में प्रवेश करना चाहता है, तो उसे चाहिए कि अन्य के शरीर में अपना ध्यान करे और तब अपना निजी स्थूल शरीर त्यागकर, वायु के मार्गों से होकर अन्य के शरीर में उसी तरह प्रवेश करे जिस तरह भौंरा उड़कर एक फूल को छोड़कर दूसरे पर चला जाता है।

24 जिस योगी ने स्वच्छन्द-मृत्यु नामक योगशक्ति प्राप्त कर ली होती है, वह अपनी गुदा को पाँव की एड़ी से दबाता है और तब आत्मा को हृदय से उठाकर क्रमशः वक्षस्थल, गर्दन तथा अन्त में सिर तक उठाता है। तब ब्रह्म-रन्ध्र में स्थित योगी अपने शरीर को त्याग देता है और आत्मा को चुने हुए गन्तव्य तक ले जाता है।

25 जो योगी देवताओं के क्रीड़ा-उद्यानों का भोग करना चाहता है उसे मुझमें स्थित शुद्ध सतोगुण का ध्यान करना चाहिए और तब सतोगुण से उत्पन्न अप्सराएँ विमानों में चढ़कर उसके पास आ जाएँगी।

26 जो योगी मुझमें अपने मन को लीन करके तथा यह जानते हुए कि मेरा अभिप्राय सदैव पूरा होता है, मुझमें श्रद्धा रखता है, वह सदैव उन्हीं साधनों से, जिनका पालन करने का उसने संकल्प ले रखा है, अपना मन्तव्य प्राप्त करेगा।

27 जो व्यक्ति ठीक से मेरा ध्यान करता है, वह परम शासक तथा नियन्ता होने का मेरा स्वभाव प्राप्त कर लेता है। तब मेरे ही समान उसका आदेश किसी भी तरह से व्यर्थ नहीं जाता।

28 जिस योगी ने मेरी भक्ति द्वारा अपने जीवन को शुद्ध कर लिया है और जो इस तरह ध्यान की विधि को भलीभाँति जानता है, वह भूत, वर्तमान तथा भविष्य का ज्ञान प्राप्त करता है। अतः वह अपने तथा अन्यों के जन्म तथा मृत्यु को देख सकता है।

29 जिस तरह जलचरों के शरीरों को जल से चोट नहीं पहुँचती, उसी प्रकार जिस योगी की चेतना मेरी भक्ति से शान्त हुई रहती है और जो योग-विज्ञान में पूर्णतया समृद्ध होता है, उसका शरीर अग्नि, सूर्य, जल, विष इत्यादि से क्षतिग्रस्त नहीं किया जा सकता। मेरा भक्त मेरे ऐश्वर्यमय अवतारों का ध्यान करके अपराजेय बन जाता है। मेरे ये अवतार श्रीवत्स तथा विविध हथियारों से अलंकृत और ध्वजों, अलंकारिक छातों तथा पंखों जैसे राजसी साज-सामान से युक्त होते हैं।

31 विद्वान भक्त जो योग-ध्यान द्वारा मेरी पूजा करता है, वह निश्चित ही सभी तरह से उन योग-सिद्धियों को प्राप्त करता है जिनका वर्णन मैंने किया है।

32 जिस मुनि ने अपनी इन्द्रियों, श्वास तथा मन को जीत लिया है, जो आत्मसंयमी है और सदा मेरे ध्यान में लीन रहता है, उसके लिए कौन-सी योग-सिद्धि प्राप्त करना कठिन है?

33 भक्ति के विद्वान पण्डितों का कहना है कि योग-सिद्धियाँ, जिनका मैंने उल्लेख किया है, वास्तव में उस परम योग का अभ्यास करने वाले व्यक्ति के लिए अवरोधक तथा समय का अपव्यय है जिसके द्वारा वह मुझसे सीधे समस्त जीवन-सिद्धियाँ प्राप्त करता है।

34 उत्तम जन्म, जड़ी-बूटियों, तपस्याओं तथा मंत्रों से जो भी योग-सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं उन सबको मेरी भक्ति करके प्राप्त किया जा सकता है। निस्सन्देह, कोई भी व्यक्ति अन्य किसी साधन से वास्तविक योग-सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता।

35 हे उद्धव, मैं समस्त योग-सिद्धियों, योग-पद्धति, सांख्य ज्ञान, शुद्ध कर्म तथा विद्वान वैदिक शिक्षकों का कारण, रक्षक तथा स्वामी हूँ।

36 जिस तरह समस्त भौतिक शरीरों के भीतर तथा बाहर एक जैसे भौतिक तत्त्व उपस्थित रहते है, उसी तरह मैं किसी अन्य वस्तु से आच्छादित नहीं किया जा सकता। मैं हर वस्तु के भीतर परमात्मा रूप में और हर वस्तु के बाहर अपने सर्वव्यापक रूप में उपस्थित रहता हूँ।

(समर्पित एवं सेवारत – जगदीश चन्द्र चौहान)

 

E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT

Comments

  • https://youtu.be/HeU4cmbrqo8
    🙏हरे कृष्ण हरे कृष्ण - कृष्ण कृष्ण हरे हरे
    हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏
This reply was deleted.