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अध्याय पैंसठ – बलराम का वृन्दावन जाना (10.65)  

1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे कुरुश्रेष्ठ, एक बार अपने शुभचिन्तक मित्रों को देखने के लिए उत्सुक भगवान बलराम अपने रथ पर सवार हुए और उन्होंने नन्द गोकुल की यात्रा की।

2 दीर्घकाल से वियोग की चिन्ता सह चुकने के कारण गोपों तथा उनकी पत्नियों ने बलराम का आलिंगन किया। तब बलराम ने अपने माता-पिता को प्रणाम किया और उन्होंने स्तुतियों द्वारा बलराम का हर्ष के साथ सत्कार किया।

3 नन्द तथा यशोदा ने प्रार्थना की: हे दशार्ह वंशज, हे ब्रह्माण्ड के स्वामी, तुम तथा तुम्हारे छोटे भाई कृष्ण सदैव हमारी रक्षा करते रहो। यह कहकर उन्होंने श्री बलराम को अपनी गोद में उठा लिया, उनका आलिंगन किया और अपने प्रेमाश्रुओं से उन्हें सिक्त कर दिया।

4-6 तब बलराम ने अपने से बड़े ग्वालों के प्रति समुचित सम्मान प्रकट किया तथा जो छोटे थे उन्होंने उनका सादर-सत्कार किया। वे आयु, मैत्री की कोटी तथा पारिवारिक सम्बन्धों के अनुसार सबसे मिले। ग्वालबालों के पास जाकर किसी से बातें की – हाथ मिलाया और किसी को गले लगाया। विश्राम कर लेने के बाद उन्होंने सुखद आसन ग्रहण किया और सारे लोग उनके चारों ओर एकत्र हो गये। उनके प्रति प्रेम से रुद्ध वाणी से उन ग्वालों ने, जिन्होंने कमलनेत्र कृष्ण को सर्वस्व अर्पित कर दिया था, अपने द्वारका के प्रियजनों के स्वास्थ्य के विषय में पूछा। बदले में बलराम ने ग्वालों की कुशल-मंगल के विषय में पूछा।

7 ग्वालों ने कहा: हे राम, हमारे सारे सम्बन्धी ठीक से तो हैं न? और हे राम क्या तुम सभी लोग अपनी पत्नियों तथा पुत्रों सहित अब भी हमें याद करते हो?

8 यह हमारा परम सौभाग्य है कि पापी कंस मारा जा चुका है और हमारे प्रिय सम्बन्धी मुक्त हो चुके हैं। हमारा यह भी सौभाग्य है कि हमारे सम्बन्धियों ने अपने शत्रुओं को मार डाला है और पराजित कर दिया है तथा एक विशाल दुर्ग में पूर्ण सुरक्षा प्राप्त कर ली है।

9 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: भगवान बलराम के साक्षात दर्शन से गौरवान्वित हुई गोपियों ने हँसते हुए उनसे पूछा, “नगर की स्त्रियों के प्राणप्रिय कृष्ण सुखपूर्वक तो हैं?”

10 क्या वे अपने परिवार वालों को, विशेषतया अपने माता-पिता को याद करते हैं? क्या आपके विचार में वे अपनी माता को एक बार भी देखने वापस आयेंगे? और क्या बलशाली भुजाओं वाले कृष्ण हमारे द्वारा की गई सेवा का स्मरण करते हैं?

11-12 हे दाशार्ह, हमने कृष्ण के लिये अपनी माता, पिता, पति, पुत्रों, भाइयों तथा बहनों का भी परित्याग कर दिया यद्यपि इन पारिवारिक सम्बन्धों का परित्याग कर पाना कठिन है। किन्तु हे प्रभु, अब उन्हीं कृष्ण ने सहसा हम सबों को त्याग कर हमारे साथ समस्त स्नेह-बन्धनों को तोड़ दिया है, वे चले गये हैं और ऐसे में कोई स्त्री उनके वादों पर कैसे विश्वास कर सकती है?

13 नगर की बुद्धिमान स्त्रियाँ ऐसे व्यक्ति के वचनों पर कैसे विश्वास कर सकती हैं जिसका हृदय इतना अस्थिर है और जो इतना कृतघ्न है? वे उन पर इसलिए विश्वास कर लेती थीं क्योंकि वे इतने अद्भुत ढंग से बोलते हैं और उनकी सुन्दर हँसी से युक्त चितवनें, उन्हें प्रेमावेश से व्याकुल कर देती हैं।

14 हे गोपियों उनके विषय में बातें करने में क्यों पड़ी हो? कृपा करके किसी अन्य विषय पर बात चलाओ। यदि कृष्ण हमसे विलग होकर अपने दिन काट सकते हैं, तो हम उनके वियोग को, क्यों सहन कर सकतीं?

15 ये शब्द कहती हुई तरुण गोपियों को भगवान शौरी की हँसी, अपने साथ उनकी मोहक बातें, उनकी आकर्षक चितवनें, उनके चलने का ढंग तथा उनके प्रेमपूर्ण आलिंगनों का स्मरण हो आया। इस तरह वे सिसकने लगीं।

16 सबों को आकृष्ट करने वाले भगवान बलराम ने, गोपियों को भगवान कृष्ण का गोपनीय सन्देश सुनाकर उन्हें धीरज बँधाया। ये सन्देश गोपियों के हृदयों को भीतर तक छू गये।

17 भगवान बलराम यमुना नदी के तट पर एक उद्यान में गोपियों के साथ विहार करते हुए गोकुल में दो मास रहे।

18 यह उद्यान पूर्ण चन्द्रमा की किरणों से नहलाया हुआ था और रात में खिली कुमुदिनियों की सुगन्ध ले जाने वाली मन्द वायु के द्वारा स्पर्शित था।

19 वरुण देव द्वारा भेजी गयी दैवी वारुणी मदिरा एक वृक्ष के खोखले छिद्र से बह निकली और अपनी मधुर गन्ध से सारे जंगल को और अधिक सुगन्धित बना दिया।

20 वायु उस मधुर पेय की धारा की सुगन्ध को बलराम के पास ले गई, जिसे सूँघकर वे वृक्ष के पास गये और उसका पान किया।

21-25 इन लीलाओं को देखकर देवताओं ने स्वर्ग में दुन्दुभियाँ बजाई, गन्धर्वों ने प्रसन्नतापूर्वक फूलों की वर्षा की तथा मुनियों ने भगवान बलराम की महिमा का गायन किया। जब उनके कार्यों का गान हो रहा था, तो हलायुध मदोन्मत्त होकर गोपियों के साथ जंगल में घूमने लगे। हर्ष से उन्मत्त बलराम फूल-मालाओं से खेल रहे थे। इनमें सुप्रसिद्ध वैजयन्ती माला सम्मिलित थी। वे कान में एक कुण्डल पहने थे और उनके मुसकान-भरे कमल-मुख पर पसीने की बूँदें इस तरह सुशोभित थीं मानो बर्फ के कण हों। तब उन्होंने यमुना को बुलाया जिससे वे उसके जल में क्रीड़ा कर सकें किन्तु उसने उनके आदेश की उपेक्षा इसलिए कर दी क्योंकि वे मदोन्मत्त थे। इससे बलराम क्रुद्ध हो उठे और वे अपने हल की नोक से नदी को खींचने लगे।

26 बलराम ने कहा: मेरे आदेश की उपेक्षा कर तुमने मेरा अनादर किया है, अतः मैं अपने हल की नोक से सौ धाराओं के रूप में तुम्हें यहाँ ले आऊँगा।

27 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन, बलराम द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर डरी हुई यमुनादेवी आईं और यदुनन्दन बलराम के चरणों पर गिर पड़ीं और काँपते हुए उसने निम्नलिखित शब्द कहे।

28 यमुनादेवी ने कहा: हे विशाल भुजाओं वाले राम, हे राम, मैं आपके पराक्रम के बारे में कुछ भी नहीं जानती। हे ब्रह्माण्ड के स्वामी, आप अपने एक अंशमात्र से पृथ्वी को धारण किए हुए हैं।

29 हे प्रभु, आप मुझे छोड़ दें। हे ब्रह्माण्ड के आत्मा, मैं भगवान के रूप में आपके पद को नहीं जानती थी किन्तु अब मैं आपकी शरण में हूँ और आप अपने भक्तों पर सदैव दयालु रहते हैं।

30 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: तब बलराम ने यमुना को छोड़ दिया और जिस तरह हाथियों का राजा अपनी हथनियों के झुण्ड के साथ जल में प्रवेश करता है उसी तरह वे अपनी संगिनियों के साथ नदी के जल में प्रविष्ट हुए।

31 इच्छानुसार जल-क्रीड़ा करने के बाद जब बलराम बाहर आये तो देवी कान्ति ने उन्हें नीले वस्त्र, मूल्यवान आभूषण तथा चमकीला गले का हार भेंट किया।

32 भगवान बलराम ने नीले वस्त्र पहने और गले में सुनहरा हार डाल लिया। सुगन्धियों से लेपित और सुन्दर ढंग से अलंकृत होकर वे इन्द्र के हाथी जैसे सुशोभित हो रहे थे।

33-34 हे राजन, आज भी यह देखा जा सकता है कि किस तरह यमुना अनेक धाराओं में होकर बहती है, जो असीम बलशाली बलराम द्वारा खींचे जाने पर बन गई थीं। इस प्रकार यमुना उनके पराक्रम को प्रदर्शित करती है। भगवान बलराम का मन व्रज गोपियों के अद्वितीय सौन्दर्य से मोहित था। अतः दो मास का समय बीत गया किन्तु उन्हें लगा कि उनके संग में मानो एक रात ही व्यतीत की।

(समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान)

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Comments

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