अध्याय इकसठ – बलराम द्वारा रुक्मी का वध (10.61)
1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: भगवान कृष्ण की प्रत्येक पत्नी से दस-दस पुत्र हुए जो अपने पिता से कम नहीं थे और जिनके पास अपने पिता का सारा निजी ऐश्वर्य था।
2 भगवान श्रीकृष्ण के बारे में पूरी सच्चाई न समझने के कारण उनकी प्रत्येक पत्नी यही सोचती थी कि वे उसके महल में निरन्तर रहते हैं, अतः वही उनकी प्रिय पत्नी है।
3 भगवान की पत्नियाँ उनके कमल जैसे सुन्दर मुख, लम्बी बाँहों, बड़ी बड़ी आँखों, हास्य से पूर्ण उनकी प्रेममयी चितवनों तथा मनोहर बातों से पूरी तरह मोहित थीं, किन्तु इन समस्त आकर्षणों के होते हुए भी सर्वशक्तिमान भगवान के मन को जीत नहीं पाईं।
4 इन सोलह हजार रानियों की भौहें उनके मनोभावों को लजीली हास्ययुक्त तिरछी चितवनों से माधुर्य सन्देश भेजती थीं, किन्तु अपनी भौंहों को नचाने या अन्य साधनों से भगवान कृष्ण के मन को चलायमान नहीं कर सकीं।
5 इस तरह इन सबने रमापति को अपने पति रूप में प्राप्त किया यद्यपि ब्रह्मा जैसे बड़े बड़े देवता भी उन तक पहुँचने की विधि नहीं जानते। प्रेम में निरन्तर वृद्धि के साथ, नित नवीन घनिष्ठ संग हेतु उत्सुक ये (पत्नियाँ) उनके प्रति अनुराग का अनुभव करतीं, उनसे हास्ययुक्त चितवनों का आदान-प्रदान करतीं।
6 यद्यपि भगवान की रानियों के पास सैकड़ों दासियाँ थीं, तथापि वे विनयपूर्वक भगवान के पास जाकर, आसन देकर, उत्तम सामग्री से पूजा करके, चरणों का प्रक्षालन कर तथा दबाकर, खाने के लिए पान देकर, पंखा झलकर, सुगन्धित चन्दन का लेप करके, फूल की मालाओं से सजाकर, केश सँवार कर, बिछौना ठीक करके, नहलाकर तथा नाना प्रकार की भेंटें देकर स्वयं उनकी सेवा करती थीं।
7 भगवान कृष्ण की प्रत्येक पत्नी से दस दस पुत्र हुए। उन पत्नियों में से आठ पटरानियाँ थीं, जिनका उल्लेख मैं पहले कर चुका हूँ। अब मैं तुम्हें उन आठों रानियों के पुत्रों के नाम बतलाऊँगा जिनमें प्रद्युम्न मुख्य थे।
8-9 महारानी रुक्मिणी का प्रथम पुत्र प्रद्युम्न था। उन्हीं के पुत्रों में चारुदेष्ण, सुदेष्ण, बलशाली चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, भद्रचारु, चारुचन्द्र, विचारु तथा दसवाँ पुत्र चारु थे। भगवान हरि के इन पुत्रों में से कोई भी अपने पिता से कम नहीं था।
10-12 सत्यभामा से दस पुत्र थे--भानु, सुभानु, स्वर्भानु, प्रभानु, भानुमान, चन्द्रभानु, बृहदभानु, अतिभानु (आठवाँ), श्रीभान तथा प्रतिभानु। जाम्बवती के पुत्रों के नाम थे – साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, सतजित, सहस्रजित, विजय, चित्रकेतु, वासुमान, द्रविड़ तथा क्रतु। साम्ब आदि ये दसों अपने पिता के अत्यन्त लाड़ले थे।
13 नाग्नजिती के पुत्र थे वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगु, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु तथा ऐश्वर्यशाली कुन्ति।
14 श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शान्ति, दर्श तथा पूर्णमास कालिन्दी के पुत्र थे। उनका सबसे छोटा पुत्र सोमक था।
15 माद्रा के पुत्र थे प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, उर्धग, महाशक्ति, सह, ओज तथा अपराजित।
16 मित्रविन्दा के पुत्रों के नाम थे वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, उन्नाद, महान्स, पावन, वह्रि, तथा क्षुधि।
17 भद्रा के पुत्र थे संग्रामजित, बृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयुर तथा सत्यक।
18 दीप्तिमान, ताम्रतप्त इत्यादि भगवान कृष्ण द्वारा रोहिणी से उत्पन्न किए गये पुत्र थे। भगवान कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न ने रुक्मी की पुत्री रुक्मवती के गर्भ से शक्तिशाली अनिरुद्ध को जन्म दिया।
19 हे राजन, यह सब तब हुआ जब वे भोजकट नगर में रह रहे थे। हे राजन कृष्ण के पुत्रों के पुत्रों तथा पौत्रों की संख्या करोड़ों में थी। सोलह हजार माताओं ने इस वंश को आगे बढ़ाया।
20 राजा परीक्षित ने कहा: रुक्मी ने कैसे अपने शत्रु के पुत्र को अपनी पुत्री प्रदान की? रुक्मी तो युद्ध में भगवान कृष्ण द्वारा पराजित किया गया था और उन्हें मार डालने की ताक में था। हे विद्वान, कृपा करके मुझे बतलाइये कि ये दोनों शत्रु पक्ष किस तरह विवाह के माध्यम से जुड़ सके।
21 जो अभी घटित नहीं हुआ तथा भूतकाल या वर्तमान की बातें जो इन्द्रियों के परे, सुदूर या भौतिक अवरोधों से अवरुद्ध हैं, उन्हें योगीजन भलीभाँति देख सकते हैं।
22 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: अपने स्वयंवर उत्सव में रुक्मावती ने प्रद्युम्न को चुना, जो कि साक्षात कामदेव थे। तब एक ही रथ पर अकेले लड़ते हुए प्रद्युम्न ने राजाओं को युद्ध में पराजित किया और वे उसे हर ले गये।
23 यद्यपि रुक्मी कृष्ण के प्रति अपनी शत्रुता को सदैव स्मरण रखे रहा क्योंकि उन्होंने उसको अपमानित किया था किन्तु अपनी बहन को प्रसन्न करने के लिए उसने अपनी पुत्री का विवाह अपने भानजे के साथ होने की स्वीकृति प्रदान कर दी।
24 हे राजन, कृतवर्मा के पुत्र बली ने रुक्मिणी की विशाल नेत्रों वाली तरुण कन्या चारुमती से विवाह कर लिया।
25 रुक्मी ने अपनी पौत्री रोचना को अपनी कन्या के पुत्र अनिरुद्ध को दे दिया यद्यपि भगवान हरि से उसकी घोर शत्रुता थी। इस विवाह को अधार्मिक मानते हुए भी रुक्मी स्नेह-बन्धन से बँधकर अपनी बहन को प्रसन्न करने का इच्छुक था।
26 हे राजा, उस विवाह के उल्लासपूर्ण अवसर पर महारानी रुक्मिणी, बलराम, कृष्ण तथा कृष्ण के अनेक पुत्र, जिनमें साम्ब तथा प्रद्युम्न मुख्य थे, भोजकट नगर गये।
27-28 विवाह होने के पश्चात कालिंगराज इत्यादि दम्भी राजाओं की टोली ने रुक्मी से कहा, “तुम्हें चाहिए कि बलराम को चौसर में हरा दो – हे राजन, वे चौसर में पटु नहीं हैं फिर भी उन्हें इसका व्यसन है।" इस तरह उकसाये जाने पर रुक्मी ने बलराम को ललकारा और उनके साथ चौसर की बाजी खेलने लगा।
29 उस स्पर्धा में सर्वप्रथम बलराम ने एक सौ सिक्कों की बाजी स्वीकार की, फिर एक हजार की और तब दस हजार की। रुक्मी ने इस पहली पारी को जीत लिया तो कालिंगराज अपने सारे दाँत निपोर कर बलराम पर ठहाका मारकर हँसा। बलराम इसे सहन नहीं कर पाये।
30 इसके बाद रुक्मी ने एक लाख सिक्कों की बाजी लगाई जिसे बलराम ने जीत लिया। किन्तु रुक्मी ने यह घोषित करते हुए धोखा देना चाहा कि "मैं विजेता हूँ।"
31 बलराम के नेत्र क्रोध से और अधिक लाल हो रहे थे। पूर्णमासी के दिन उफनते समुद्र की भाँति–क्रुद्ध होकर उन्होंने दस करोड़ मुहरों की बाजी लगाई।
32 इस बाजी को भी बलराम ने स्पष्टतः जीत लिया किन्तु रुक्मी ने फिर से छल करके यह घोषित किया, “मैं जीता हूँ। यहाँ उपस्थित ये गवाह कहें – जो कुछ उन्होंने देखा है।"
33 तभी आकाशवाणी हुई "इस बाजी को बलराम ने न्यायपूर्वक जीता है। रुक्मी निश्चित रूप से झूठ बोल रहा है।"
34 दुष्ट राजाओं द्वारा उकसाये (प्रेरित किए) जाने से रुक्मी ने हँसी उड़ाते हुए इस दैवी वाणी की उपेक्षा कर दी। वस्तुतः साक्षात काल रुक्मी को प्रेरित कर रहा था।
35 रुक्मी ने कहा: तुम ग्वाले तो जंगलों में घूमते रहते हो चौसर के बारे में कुछ भी नहीं जानते। चौसर खेलना और बाण चलाना तो एकमात्र राजाओं के लिए हैं, तुम जैसों के लिए नहीं।
36 इस प्रकार रुक्मी द्वारा अपमानित करने तथा राजाओं द्वारा उपहास किए जाने पर बलराम का क्रोध भड़क उठा। उन्होंने अपनी गदा उठाई और उस शुभ सभा में रुक्मी का वध कर दिया।
37 कालिंगराज ने, जो बलराम पर दाँत निपोरते हुए हँसा था – भागने का प्रयास किया किन्तु क्रुद्ध बलराम ने तेजी से उसे दसवें कदम में ही पकड़ लिया और उसके सारे दाँत तोड़ डाले।
38 बलराम की गदा से चोट खाकर राजाओं की बाँहें, जांघें तथा सिर टूटे थे और उनके शरीर रक्त से लथपथ थे। यह देखकर अन्य राजा भय के मारे भाग खड़े हुए।
39 हे राजन, जब भगवान कृष्ण का साला (रुक्मी) मार दिया गया तो उन्होंने न तो इसे सराहा न ही विरोध प्रकट किया, क्योंकि वे यह जानते थे कि रुक्मिणी या बलराम से स्नेह-बन्धन बिगड़ सकते हैं।
40 भगवान की कृपा से सारे कार्य पूर्ण हो गये, तब बलराम इत्यादि दशार्हो ने अनिरुद्ध तथा उसकी पत्नी को एक सुन्दर रथ में बैठा लिया और भोजकट से द्वारका के लिए प्रस्थान कर गये।
समर्पित एवं सेवारत - जगदीश चन्द्र चौहान
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