अध्याय छब्बीस - अद्भुत कृष्ण (10.26)
1 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: जब गोपों ने गोवर्धन पर्वत उठाने जैसे कृष्ण के कार्यों को देखा तो वे विस्मित हो गये। उनकी दिव्य शक्ति को न समझ पाने के कारण वे नन्द महाराज के पास गये और इस प्रकार बोले।
2 ग्वालों ने कहा: जब यह बालक ऐसे अद्भुत कार्य करता है, तो फिर किस तरह हम जैसे संसारी व्यक्तियों के बीच उसने जन्म लिया? ऐसा जन्म तो उसके लिए घृणित लगेगा।
3 यह सात वर्ष का बालक किस तरह विशाल गोवर्धन पर्वत को खेल खेल में एक हाथ से उसी तरह उठाये रह सकता है, जिस तरह बलशाली हाथी कमल के फूल को उठा लेता है?
4 अभी इसने अपनी आँखें भी नहीं खोली थीं और निरा बच्चा ही था कि इसने बलशाली राक्षसी पूतना के स्तन का दूध पिया और उसी के साथ उसके प्राण चूस लिये जिस तरह काल की शक्ति मनुष्य के शरीर से यौवन को चूस लेती है।
5 एक बार कृष्ण तीन मास के छोटे शिशु थे, तो रो रहे थे और एक बड़े से छकड़े के नीचे लेटे हुए अपने पाँवों को ऊपर चला रहे थे। तभी यह छकड़ा गिरा और उलट गया क्योंकि उन्होंने अपने पाँव के अँगूठे से उस पर प्रहार किया था।
6 एक वर्ष की आयु में, जब वे शान्तिपूर्वक बैठे थे तो तृणावर्त नामक असुर उन्हें आकाश में उड़ा ले गया। किन्तु बालक कृष्ण ने उस असुर की गर्दन दबोच ली जिससे उसे महान पीड़ा हुई और इस तरह उसे मार डाला।
7 एक बार उनकी माता ने उन्हें रस्सियों से एक ऊखल से बाँध दिया क्योंकि माता ने उन्हें मक्खन चुराते पकड़ लिया था। तब वे अपने हाथों के बल रेंगते हुए उस ऊखल को दो अर्जुन वृक्षों के बीच खींच ले गये और उन वृक्षों को उखाड़ डाला।
8 अन्य समय जब वे बलराम तथा ग्वालबालों के साथ वन में गौवें चरा रहे थे तो राक्षस बकासुर उनको मार डालने की मंशा से वहाँ आया। किन्तु कृष्ण ने इस शत्रु राक्षस का मुँह (चोंच) पकड़ लिया और उसको चीर डाला।
9 कृष्ण को मार डालने की इच्छा से राक्षस वत्सासुर बछड़े का वेश बनाकर उनके बछड़ों के बीच घुस गया। किन्तु कृष्ण ने इस असुर को मार डाला और इसके शरीर से कैथे के वृक्षों से फल नीचे गिराने का खिलवाड़ किया।
10 भगवान बलराम समेत कृष्ण ने राक्षस धेनुकासुर तथा उसके सभी साथियों का वध किया और इस तरह तालवन जंगल को, जो पके हुए ताड़ फलों से भरापुरा था, सुरक्षित बनाया।
11 भीषण दैत्य प्रलम्बासुर को बलशाली भगवान बलराम द्वारा मरवाकर कृष्ण ने व्रज के ग्वालबालों तथा उनके पशुओं को दावानल (जंगल की आग) से बचाया।
12 कृष्ण ने अति विषैले नाग कालिय को दण्ड दिया और उसे विनीत बनाकर यमुना के सरोवर से बलपूर्वक निकाल बाहर किया। इस तरह भगवान ने उस नदी के जल को साँप के प्रचण्ड विष से मुक्त बनाया।
13 हे नन्द महाराज, हम तथा व्रज के सारे वासी क्योंकर आपके पुत्र के प्रति अपना निरन्तर स्नेह त्याग नहीं पा रहे हैं? और वे हम लोगों के प्रति स्वतः इतना आकृष्ट क्योंकर हैं?
14 कहाँ तो सात वर्ष का यह बालक और कहाँ उसके द्वारा विशाल गोवर्धन पर्वत का उठाया जाना, अतएव, हे व्रजराज, हमारे मन में आपके पुत्र के विषय में शंका उत्पन्न हो रही है।
15 नन्द महाराज ने उत्तर दिया: हे ग्वालो, जरा मेरी बातें सुनो और मेरे पुत्र के विषय में जो अपनी शंकाएँ हों उन्हें दूर कर दो। कुछ समय पहले गर्ग मुनि ने इस बालक के विषय में मुझसे इस प्रकार कहा था।
16 गर्ग मुनि ने कहा था: आपका पुत्र कृष्ण हर युग के अवतार के रूप में प्रकट होता है। भूतकाल में उसने तीन रंग – श्वेत, लाल तथा पीला धारण किये थे और अब वह श्यामवर्ण में प्रकट हुआ है।
17 अनेक कारणों से आपका यह सुन्दर पुत्र वसुदेव के पुत्र रूप में प्रकट हो चुका है। अतएव विद्वज्जन कभी कभी इस बालक को वासुदेव कहते हैं।
18 तुम्हारे इस पुत्र के अपने दिव्य गुणों तथा कर्मों के अनुसार अनेक रूप तथा नाम हैं। मैं उन्हें जानता हूँ किन्तु सामान्य जन उन्हें नहीं जानते हैं।
19 गोकुल के ग्वालों के दिव्य आनन्द में वृद्धि करने के लिए यह बालक सदैव तुम सबका कल्याण करेगा और उसकी कृपा से ही तुम लोग सारे कष्टों को पार कर सकोगे।
20 हे नन्द महाराज, इतिहास में यह अंकित है कि जब अनियमित तथा अक्षम सरकार थी; जब धर्मनिष्ठ लोग चोरों/डाकुओं द्वारा सताये जा रहे थे, तो यह बालक चोरों/डाकुओं का दमन करने तथा धर्मनिष्ठ लोगों की रक्षा करने के लिए प्रकट हुआ था।
21 देवतागण सदैव भगवान विष्णु के संरक्षण में रहते हैं अतएव असुरगण देवताओं को हानि नहीं पहुँचा सकते। इसी प्रकार सर्वमंगलमय कृष्ण से अनुरक्त कोई भी व्यक्ति या समूह शत्रुओं द्वारा पराजित नहीं किया जा सकता।
22 अतएव हे नन्द महाराज, आपका यह बालक नारायण जैसा है। यह अपने दिव्य गुण, ऐश्वर्य, नाम, यश तथा प्रभाव में बिल्कुल नारायण जैसा ही है। अतः इसके कार्यों से आपको चकित नहीं होना चाहिए।
23 नन्द महाराज ने कहा: जब गर्ग ऋषि ये शब्द कहकर अपने घर चले गये तो मैं विचार करने लगा कि जो कृष्ण हमें क्लेश से दूर रखता है, वह वास्तव में भगवान नारायण का अंश है।
24 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: नन्द महाराज द्वारा कहे गए गर्ग मुनि के कथन को सुनकर वृन्दावन के वासी परम प्रमुदित हुए। उनका विस्मय जाता रहा और उन्होंने आदरपूर्वक नन्द तथा भगवान कृष्ण की पूजा की।
25 अपना यज्ञ भंग किये जाने पर इन्द्र क्रोधित हुआ और उसने गोकुल पर वर्षा की तथा वज्रपात और तेज हवा के साथ साथ ओले गिराये जिनसे गौवों, पशुओं तथा स्त्रियों को अतीव कष्ट हुआ। जब दयालु प्रकृति वाले भगवान कृष्ण ने उन सबों की यह दशा देखी जिनकी उन्हें छोड़कर कोई दूसरी शरण नहीं थी तो वे मन्द-मन्द हँसने लगे और एक हाथ से उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया जिस तरह कोई छोटा सा बालक खेलने के लिए कुकुरमुत्ते को उखाड़ लेता है। इस तरह से उन्होंने ग्वाल समुदाय की रक्षा की। गौवों के स्वामी तथा इन्द्र के मिथ्या गर्व को खण्डित करने वाले वे ही गोविन्द हम सबों पर प्रसन्न हों।
(समर्पित एवं सेवारत – जगदीश चन्द्र चौहान)
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हरे राम हरे राम - राम राम हरे हरे🙏