1 मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था, और मेरे गुरु ने अपने ज्ञानरूपी प्रकाश से मेरी आँखेँ खोल दीं। मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ।
2 श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद कब मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे, जिन्होंने इस जगत में भगवान चैतन्य की इच्छा की पूर्ति के लिए प्रचार योजना (मिशन) की स्थापना की है।
3 मैं अपने गुरु के चरणकमलों को तथा समस्त वैष्णवों के चरणों को नमस्कार करता हूँ। मैं श्रील रूप गोस्वामी तथा उनके अग्रज सनातन गोस्वामी एवं साथ ही रघुनाथदास, रघुनाथभट्ट, गोपालभट्ट एवं श्रील जीव गोस्वामी के चरणकमलों को सादर नमस्कार करता हूँ। मैं भगवान कृष्णचैतन्य तथा भगवान नित्यानन्द के साथ-साथ अद्वैत आचार्य,गदाधर,श्रीवास तथा अन्य पार्षदों को सादर प्रणाम करता हूँ। मैं श्रीमति राधरानी तथा श्रीकृष्ण को, श्री ललिता तथा श्री विशाखा सखियों सहित को सादर नमस्कार करता हूँ।
4 श्रीकृष्ण के चरण-आश्रित और अत्यंत प्रिय भक्त कृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्रील अभयचरणार्विंद भक्ति वेदान्त स्वामी श्रील प्रभुपाद को मैं अपना श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूँ। हे प्रभुपाद, हे सरस्वती गोस्वामी ठाकुर के प्रिय शिष्य, कृपापूर्वक श्रीचैतन्य महाप्रभु की वाणी के प्रचार के द्वारा निर्विशेषवाद, शून्यवाद पूर्ण पाश्चात्य देशों का उद्धार करने वाले, आपको मैं श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूँ।
5 हे कृष्ण ! आप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं। आप गोपियों के स्वामी तथा राधारानी के प्रेमी हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ।
6 मैं उन राधरानी को प्रणाम करता हूँ जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सदृश है, जो वृंदावन की महारानी हैं। आप राजा वृषभानु की पुत्री हैं और भगवान कृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं।
7 मैं भगवान के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूँ। वे कल्पवृक्ष के समान सब की इच्छाएँ पूर्ण करने में समर्थ हैं, तथा पतित जीवात्माओं के प्रति अत्यंत दयालु हैं।
8 मैं श्रीकृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि समस्त भक्तों को सादर प्रणाम करता हूँ।
!!हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे!!
!!!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!!!!
प्रार्थना (1.1.1)
हे प्रभु, हे वसुदेव पुत्र श्रीकृष्ण, हे सर्वव्यापी भगवान, मैं आपको सादर नमस्कार करता हूँ। मैं भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, क्योंकि वे परम सत्य हैं और व्यक्त ब्रह्मांडों की उत्पत्ति, पालन तथा संहार के समस्त कारणों के आदि कारण हैं। वे प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सारे जगत से अवगत रहते हैं और वे परम स्वतंत्र हैं, क्योंकि उनसे परे अन्य कोई कारण है ही नहीं। उन्होंने ही सर्वप्रथम आदि जीव ब्रह्माजी के हृदय में वैदिक ज्ञान प्रदान किया। उन्हीं के कारण बड़े-बड़े मुनि तथा देवता उसी तरह मोह में पड़ जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि में जल या जल में स्थल देखकर कोई माया के द्वारा मोहग्रस्त हो जाता है। उन्हीं के कारण ये सारे भौतिक ब्रहमाण्ड, जो प्रकृति के तीन गुणों की प्रतिक्रिया के कारण अस्थायी रूप से प्रकट होते हैं, वास्तविक लगते हैं जबकि ये अवास्तविक होते हैं। अतः मैं उन भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करता हूँ, जो भौतिक जगत के भ्रामक रूपों से सर्वथा मुक्त अपने दिव्य धाम में निरंतर वास करते हैं। मैं उनका ध्यान करता हूँ क्योंकि :-
वे ही परम सत्य हैं।
वे ही परम सत्य हैं।
वे ही परम सत्य हैं।
ॐ कृष्णाय नमः
!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
!! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!
समर्पित एवं सेवारत (जगदीश चन्द्र चौहान)
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