त्रुटि से चुटकी तक
(भागवतम तृतीय स्कंध)
अध्याय ग्यारह (परमाणु से काल की गणना)
विज्ञान में हम सब ने पढ़ा है, एक परमाणु होता है।
सृष्टी का ये सूक्ष्म कण है, जो अविभाज्य होता है।।
सृष्टी का जब प्रलय होता, तब भी परमाणु रहता है।
एकत्व रूप में रहकर तब ये कैवल्यं कहलाता है।।
इसके संयोजन से ही, सृष्टी का रूप निखरता है।
काल भी इसके संयोजन, अवधि से ही नपता है।
आओ मैं तुमको बतलाऊँ, ये कैसे कैसे होता है ।
परमाणु संयोग से कैसे, काल का मापन होता है।।
दो परमाणु जब मिलते, तो एक अणु बन जाता है।
ये अणु तरह तरह से, अपनी पहचान बनाता है।।
तीनअणु मिलकर दोस्ती का, एक बिगुल बजाते है।
ये त्रिअणु विज्ञान में, प्रकाश कण कहलाते है।। (फोटोन)
सूरज की रश्मि में ये तो, रेणु जैसे चमकते है।
खिडकी से आती धूप में, हमको ये सब दिखते हैं।।
देखें प्रकाशकण के मिलन समय को क्या कहते है।
बिन गलती करके भी, बेचारे त्रुटि में ही नपते हैं।।
काल की सबसे छोटी अवधि, त्रुटि मानी जाती है।
सैकेंड का लगभग डेढ़ हज़ारवा, भाग कहलाती है।। (1687.5)
सौ त्रुटि की संगम अवधि, को एक वेध बताते हैं।
तीन वेध मिलकर के अब, प्रेम से लव बनाते हैं।।
लेकिन ये लव भी सैंकेंड से, बहुत छोटा रह जाता है।
सैकेंड तक पहुंचने में ये अभी थोड़ा समय लगाता है।।
छोट छोटे तीन लव मिले, तब भी बहुत कुछ शेष है।
इनके मिलने का समय कहलाता, बस एक निमेष है।।
तीन निमेष भी कोशिश करके, जल्द ही मिल जाते हैं।
मिलने मे ये समय जो लेते, वो समय छण कहलाते हैं।।
क्या बतला सकते हो छण और सैकेंड में कौन छोटा है।
पाँच छण और आठ सैकेंड, देखो एक बराबर होता है।। (छण बडा है)
पाँच छण गुपचुप मिलने में, एक काष्ठा लगाते है।
ये काष्ठा हमारे आठ, सैकेंड के बराबर होते हैं।।
सैकेंड से ऊपर आने पर, कितना अच्छा लगता है।
अब धीरे धीरे करके कुछ, समझ आने लगता है।।
अब ये पंद्रह काष्ठा मिलकर के, एक लघु बनाते हैं।
आओ देखे तो लघु से छोटे-छोटे, कौन कहलाते हैं।।
काष्ठा, छण, निमेष, लव, वेध और त्रुटि ये होते हैं।
लघु बनने में ये काष्ठा, दो मिनिट का समय लेते है।।
पंद्रह लघु की मिलन अवधी, नाडिका में बँध जाती है।
ये नाडिका कभी कभी दण्ड, अवधी भी कहलाती है।।
दण्ड अवधि नापने की, शास्त्र विधि अनेक बताते हैं।
ये दण्ड हमारे तीस मिनिट, के बराबर माने जाते हैं।।
दो दण्डों का मिलना एक, शुभ मुहूर्त बन जाता हैं।
एक मुहूर्त का समय, एक घंटे में नापा जाता है।।
छ: या सात दण्ड मिलकर के, एक प्रहर सजाते हैं।।
सुबह, दुपहर, शाम, रात ये प्रहर ही तो बनाते हैं।
तीन घंटे के चार प्रहर दिन चार प्रहर रात बनाते हैं।
कभी-कभी ये प्रहर, याम नाम से भी पुकारे जाते हैं।।
पंद्रह दिन और पंद्रह रातो का, मिलन बडा होता हैं।
इनके मिलन का समय देखो, एक पखवाड़ा होता हैं।।
ये कृष्णपक्ष ,शुक्लपक्ष के नाम से, जाना जाता हैं।
कृष्णपक्ष ,शुक्लपक्ष का संयोग, एक मास बनाता हैं।।
हमारे मास पितृलोक के ,एक दिन रात कहलाते है।
दो मास हिलमिल के, ऋतुओं में बदलते जाते हैं।।
छ: मास में सूरज उत्तर से, दक्षिण में आता है।
ये समय सूरज का एक, सौर गति कहलाता है।।
दो सौरगति करके ही, सूरज एक वर्ष बनाता है।
यही वर्ष शास्त्रो में पंचाग, वर्ष कहलाता हैं।।
परमाणु हो या सूर्य सबका,चक्रकाल नीयत होता है।
हमारा वर्ष देवलोक का बस, एक दिन रात होता है।।
तीन सौ साठ वर्ष हमारे, देवों का एक वर्ष बनाते हैं।
बारह हजार वर्ष देवों के, चार युग कहलाये जाते है।।
सत्य, त्रेता, द्वापर ,कलियुग होते हैं ये चार युग ।
हमारे लगभग 43 लाख, वर्ष बनाते हैं ये चतर्युग।।
सत्य युग 4800 वर्ष, त्रेता 3600,द्वापर 2400,कलयुग 1200
ब्रह्मा जी का एक दिन होता, चार युगों का हज़ार गुना।
रात का समय भी ब्रहमा जी ने, इतना ही लंबा चुना।।
जैसे ही रात होती है, ब्रहमा जी निद्रा में सो जाते हैं।
ब्रहमाजी के सोते ही, सारे लोक जल में खो जाते हैं।।
प्रात: होते ही ब्रहमा जी को, सृजन में लगना पड़ता हैं।
रात्रि होते ही अपनी सृष्टी को, प्रलय में डूबोना पड़ता है।।
सौ वर्ष लंबी ब्रह्मा जी के, जीवन की अवधि होती है।
हर लोक के जीव की अवधि, सौ वर्ष ही निश्चित होती है।।
ब्रह्मा जी की आयु भगवान के, एक निमेष के जितनी है।
हमें पता है एक निमेष में, एक चुटकी भी नहीं बजनी है।
सोचो भगवान की चुटकी मे, हमारे कितने वर्ष हो जाते है।।
ये अद्भुत काल का विज्ञान श्रीमद भागवतम में ही पाते हैं।
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