Malook Shatak (मलूक शतक)

जगद्गुरु श्रीमलूकदासाचार्यविरचितं 'मलूकशतकम्'

 

मरकत मणि सम श्याम है श्री सीतापति रूप ।
कोटि मदन सकुचात लखि नमै 'मलूक' अनूप ॥१॥

कह 'मलूक' श्रीराम ही धर्मोद्धारन काज ।
श्रीमद्रामानन्द भे भाष्यकार यतिराज ॥२॥

जगद्गुरु रामानन्दजी आचार्यन शिरताज ।
तिनहिं 'मलूका' नमत है जय जय श्रीयतिराज ॥३॥

कह 'मलूक' प्रस्थान त्रय भाष्य रच्यो आनन्द ।
श्रीवैष्णव मत कमल रवि स्वामी रामानन्द ॥४॥

जिनकी अनुपम कृपा से तत्त्व परयो पहिचान ।
उन श्रीगुरुपद पद्म का धरत 'मलूका' ध्यान ॥५॥

वेदान्तसिद्धान्त —
तत्त्व विशिष्टाद्वैत है यही वेद-सिद्धान्त ।
कहै 'मलूका' लखि परै गुरु की कृपा अभ्रान्त ॥६॥

जीव प्रकृति ईश्वर इन्हीं तीन तत्त्व का ज्ञान ।
आवश्यक है मोक्ष महँ-कहै 'मलूका' तान ॥७॥

आत्मा —
ज्ञानाश्रय है आत्मा देहेन्द्रिय नहिं प्रान ।
कहै 'मलूका' नित्य अरु निर्विकार तेहि जान ॥८॥

कहै 'मलूका' राम के ये शरीर अरु शेष ।
स्वप्रकाश अणु जीव हैं धार्य नियाम्य अशेष ॥९॥

सदा पराश्रित जीव हैं राम सदैव स्वतन्त्र ।
कहै 'मलूका' भ्रान्त जो जीवहिं कहें स्वतन्त्र ॥१०॥

तत्त्वमसि —
सदा प्रकार्यद्वैत को कहै तत्त्वमसि-वाक्य ।
नाहिं प्रकाराद्वैत यह कहत 'मलूका' वाक्य ॥११॥

सदा प्रकारी राम हैं चिदचिद् देह प्रकार ।
'यस्यात्मा' इत्यादि श्रुति कहैं 'मलूका' सार ॥१२॥

तत् पद कहै परेशकों कहै 'मलूका' जान ।
त्वद्देही त्वं पद कहें दोउ प्रभु-ऐक्य बखान ॥१३॥

नित्यपदस्थित ईश ही अन्तर्यामी होय ।
नाम रूप व्याकरण हित एक 'मलूका' दोय ॥१४॥

जीव अज्ञ सर्वज्ञ प्रभु केहि विधि दुइनौं एक ।
कहै 'मलूका' भ्रान्त जो जीव ब्रह्म कहें एक ‌१५॥

सामानाधिकरण्य नहिं बनै तत्त्वमसि ठौर ।
जीव ब्रह्म के भेद बिन कहै 'मलूका' और ॥१६॥

सामानाधिकरण्यार्थ —
भेद प्रवृत्तिनिमित्त का एक अर्थ पुनि होय ।
सामानाधिकरण्य तहँ कह 'मलूक' सब कोय ॥१७॥

तत् त्वं पद की लक्षणा चेतन में ही जान ।
कहत 'मलूका' अस कबहुँ कहूँ न नर मतिमान् ॥१८॥

अन्वय अरु तात्पर्य की अनुपपत्ति जब होय ।
तबहि 'मलूका' लक्षणा मानत है सब कोय ॥१९॥

केहि विधि दुइ कारण बिना यहाँ लक्षणा होय ।
कहैं 'मलूका' कार्य कहुँ बिन कारण ही होय? ॥२०॥

जीवब्रह्म-भेद —
जीवपनायुत ब्रह्म के भेदवान् नहिं जीव ।
वस्तुपना से घट सदृश सुनहु 'मलूका' जीव ॥२१॥

कह 'मलूक' तुम यह कहौ भेद कहाँ सुप्रसिद्ध ।
जीव बीच तब बाध हो नहीं तो साध्य असिद्ध ॥२२॥

चेतनपनसे मुक्ति महँ प्रभु से जीव अभिन्न ।
ब्रह्म सदृश अस वचन सुनि होत 'मलूका' खिन्न ॥२३॥

सोपाधिक यह हेतु है भवकर्तृत्व उपाधि ।
कहत 'मलूक' प्रकाशपन अद्वैतिन कहँ व्याधि ॥२४॥

पक्ष तथा दृष्टान्त यदि भिन्न होयँ तब बाध ।
कहत 'मलूका' भेद बिन उदाहरण नहिं साध ॥२५॥

आत्मस्वरूप —
गति आगति उत्क्रान्ति ये तीन जीव की होय ।
कह 'मलूक' तेहि हेतु से नाहिं जीव विभु होय ॥२६॥

जीव कर्मवश गहत हैं कोरी कुंजर देह ।
ताते मध्यम मान नहिं कह 'मलूक' सस्नेह ॥२७॥

संकोचादिक के भये होवे जीव विनाश ।
अवयववाली वस्तु का होत 'मलूका' नाश ॥२८॥

अभ्यागत बिन किये का कृत का होय विनाश ।
तेहिसे कहत 'मलूक' है आत्मा है अविनाश ॥२९॥

कह 'मलूक' यह जीव अणु हृदय बीच है थान ।
दीप प्रभा सम ज्ञान से शिर पीड़ादिक जान ॥३०॥

आत्मा तथा ज्ञान का भेद —
ज्ञानरूप है आत्मा धर्म ज्ञान से भिन्न ।
प्रत्यकूपन अरु पराकूपन से 'मलूक' दोउ भिन्न ॥३१॥

'मैं जानौं' परतीति यह सार्वजनिक निर्बाध ।
ज्ञाता भिन्न 'मलूक' यह प्रतीति ज्ञानहिं साध ॥३२॥

जीवैक्य-निरास —
कोई कहते आत्मा सब देहन महँ एक ।
भिन्न भिन्न सब देह महँ कहत 'मलूक' अनेक ॥३३॥

कह 'मलूक' सब देह के जीव होयँ यदि एक ।
एक काल महँ दुःख इक सुख भोगैं किमि एक ॥३४॥

देह भेद से जा कहहु सुखी दुखी का भेद ।
क्यों न 'मलूका' सौभरिहिं सुख-दुख तनु के भेद ॥३५॥

जीवभेद —
बद्ध मुक्त अरु नित्य यह जीव भेद हैं तीन ।
कह 'मलूक' अन्यत्र पुनि बहुत भेद हैं कीन ॥३६॥

अचित् तत्त्व —
मिश्र शुद्ध सत् काल यह अचित् भेद हैं तीन ।
कह 'मलूक' चौबीस तहँ मिश्र-भेद हैं कीन ॥३७॥

कह 'मलूक' प्रकृती महत् अहङ्कार त्रय जान ।
एकादश इन्द्रियन का सात्विक कारण मान ॥३८॥

तामस से तन्मात्र अरु पंच भूत हू होय ।
कह 'मलूक' राजसः पुनः उभय सहायक होय ॥३९॥

शुद्धसत्व अथवा नित्यविभूति —
कहत 'मलूका' शुद्धसत् नित्यविभूतिहि जान ।
“तद्विप्णोः परमं पदम्” तहँ यह श्रुतिहि प्रमान ॥४०॥

काल —
भूत भविष्यत् आदि सब व्यवहारन का मूल ।
कहत 'मलूका' काल है कालहिं भूलि न भूल ॥४१॥

जगन्मिथ्यात्व-निरास —
कह 'मलूक' झूठे कहहिं झूठी ऐसी बात ।
ब्रह्म सत्य अरु जग मृषा परमारथ नहिं तात ॥४२॥

सर्व विशेषण से रहित ब्रह्म एक अद्वैत ।
ब्रह्मसत्यपन हेतु तब कह 'मलूक' किमि देत ॥४३॥

दृश्यपनहु के हेतु जो जग कहँ मृषा बखान ।
कह 'मलूक' तेहि हेतु को सोपाधिक पहिचान ॥४४॥

व्याप्ति कौनसी रीति से गही बतावहु और ।
मिथ्यापन अरु दृश्यपन की 'मलूक' केहि ठौर ॥४६॥

शुक्ति रजत थल कहहु तो नहिं 'मलूक' निस्तार ।
देखहु आनॅंदभाष्य का चतुःसूत्र-विस्तार ॥४७॥

शुक्तिरजत यहि ज्ञान का विषय सत्य पहिचान ।
है यथार्थ विज्ञान सब कहत 'मलूका' जान ॥४८॥

ईश्वरतत्त्व —
सिरजन संहारन तथा जग के पालनहार ।
कहै 'मलूका' राम ही ईश सर्व-आधार ॥५०॥

मोक्ष काम धर्मार्थ के देनहार श्रीराम ।
दिव्य देह शुभ गुणन के हैं 'मलूक' शुभ धाम ॥५१॥

देह रूप अरु गुणन से व्यापक प्रभु सब ठौर ।
कह 'मलूक' सब वस्तु के बाहर भीतर और ॥५२॥

कह 'मलूक' परभक्ति से तुष्ट होयँ श्रीराम ।
निज भक्तहिं सायुज्य तब देत अखिलपति राम ॥५३॥

पर व्यूह अरु विभव अरु अन्तर्यामी मान ।
कह 'मलूक' अर्चातनुहिं हरि पञ्चम थिति जान ॥५४॥

पर साकेतनिवास हैं अवतारी श्रीराम ।
कह 'मलूक' परिकरनयुत वैदेही-अभिराम ॥५५॥

वासुदेव इत्यादि कहँ चतुर्यूह पहिचान ।
कह 'मलूक' मत्स्यादि कहँ विभव रूप से मान ॥५६॥

अन्तर्यामी रमे जस मेहँदी लोहित रूप ।
कह 'मलूक' अवधादि महँ अर्चामूर्ति अनुप ॥५७॥

श्रीअवधपुरी —
हनुमदादि भरतादि सह तथा जानकी साथ ।
कह 'मलूक' जहँ कीन प्रभु निज लीला रघुनाथ ॥५८॥

अवधपुरी सो श्रेष्ठतम मोक्षदानि सुखखानि ।
महिमा तासु 'मलूक' पुनि को कवि सकै बखानि ॥६०॥

श्रीसरयू लीला लीला-धाम की ललित जहाँ विख्यात ।
कह 'मलूक' सुरसरित तेहि सरयुहिं लखि सकुचाति ॥५८॥

पञ्च संस्कार —
ऊर्ध्वपुण्ड्र से होत सुख मोक्ष तथा दुखनाश ।
कह 'मलूक' सो पुण्ड्र लखि यम-गण होत हताश ॥६१॥

धनुर्बाण-अंकित भुजा जो जन होत 'मलूक' ।
सर्वपाप से मुक्त तेहि पर पद मिलत अचूक ॥६२॥

भगवत् पूर्व 'मलूक' पुनि नाम अन्त महँ दास ।
मुक्ति मिलत तब, शास्त्र कह जीव मात्र हरिदास ॥६३॥

तुलसी बिन नहिं हरि-भजन-अधिकारी हो जीव ।
कह मलूक अति श्रेष्ठ है तुलसी भूषितग्रीव ॥६४॥

जिमि सब वेदन बीच है सामवेद शिरताज ।
तिमि मलूक सब मंत्र महँ राममंत्र अधिराज ॥६५॥

धर्म —
एक धर्म ही जात है मरे जीव के साथ ।
अन्य 'मलूका' नष्ट हों सब शरीर के साथ ॥६६॥

चतुर वर्ण महँ होत है ब्राह्मण यथा महान् ।
सब महॅं वैष्णव धर्म तिमि महत् 'मलूक' बखान ॥६७॥

विष्णु-भक्त कहँ जे कहहिं कह 'मलूक' दुर्वाक्य ।
परहिं नरक सुखहीन ह्वै कहत शास्त्र अस वाक्य ॥६८॥

परहित सम कोउ धर्म नहिं हिंसा सम नहिं पाप ।
धर्म करहिं वैष्णव सदा कह 'मलूक' नहिं पाप ॥६९॥

इन्द्रादिक सब देव अरु गंगादिक सब तीर्थ ।
कह 'मलूक' तहँ वसत हैं जहँ वैष्णव-पद-तीर्थं ॥७०॥

निज वर्णाश्रम-कर्म से अर्चहिं जो सियराम ।
कह 'मलूक' सो लहत हैं अक्षय सुख पर-धाम ॥७१॥

रामनाम —
कह 'मलूक' शतसन्धियुत जर्जर गिरत शरीर ।
भेषज तजि रसवर पियहु नित्य नाम रघुवीर ॥७२॥

राम माहिं रमि राहत हूँ राम राम इति नाम ।
कह 'मलूक' शिव कहत अस सहसनाम सम राम ॥७३॥

रामनाम सम आन नहिं कलि मुँह सुगम उपाय ।
कह 'मलूक' योगादि महँ मन नहिं थिर गति पाय ॥७४॥

सन्तोष —
क्यों 'मलूक' पचि मरत हो बुरे पेट के हेत ।
राम जीव के जन्मतहि मातथनन पय देत ॥७५॥

अजगर करै न चाकरी पक्षी करै न काम ।
'दास मलूका' कहत है सब के दाता राम ॥७६॥

भक्ति —
कर्म-योगहू व्यर्थ हो ज्ञान-योग हो रोग ।
कह 'मलूक' हरि-भक्ति बिन मिटै न भवको भोग ॥७७॥

एक अनन्या भक्ति महँ मुक्ति-दान की शक्ति ।
कहत 'मलूका' सन्त जन नव प्रकार की भक्ति ॥७८॥

नवधा भक्ति —
श्रीसीतापति चरित का श्रवण प्रेम से मान ।
कहत 'मलूका' प्रथम यह 'श्रवणभक्ति' उर आन ॥७९॥

नाम सहित रघुनाथ का प्रेम सहित गुणगान ।
कहत 'मलूका' दूसरी 'कीर्तन भक्ति' सुजान‌ ॥८०॥

'सुमिरन भक्ति' कहत हैं तीसरि सुनहु मलूक ।
निशिदिन हरि-गुण-धाम का सुमिरन करै अचूक ॥८१॥

दशरथनृप-सुत-चरण-रज जड़हिं करै चैतन्य ।
सोइ 'पद-सेवन-भक्ति' है चौथि 'मलूका' धन्य ॥८२॥

कौशल्या के लाल की बहुविधि अर्चा जोय ।
पश्चम 'अर्चन' नाम सो भक्ति 'मलूका' होय ॥८३॥

षष्ठी 'वन्दन' भक्ति है कह 'मलूक' स्वर ऊँच ।
प्रभु-पद-वन्दन-भक्ति है सब यज्ञन से ऊँच ॥८४॥

भक्ति सप्तमी रामकी दास्य नाम की होय ।
कह 'मलूक' हरि-दास बिन नहिं तारत कुल कोय ॥८५॥

बन्धु सदृश व्यवहार कहँ नर सम देखन हेत ।
'सख्य भक्ति' अष्टम करहिं जन 'मलूक' करि चेत ॥८६॥

'आत्मसमर्पण' करत जन छॉडि सकल विध कर्म ।
जिमि जटायु तिमि नवम यह भक्ति 'मलूका' मर्म‌ ॥८७॥

श्रवण भक्ति लवकुश करे वाल्मीकि गुणगान ।
कह 'मलूक' सुमिरण करे कुम्भज शिष्य सुजान ॥८८॥

भरत भावयुत चरणरत शबरी अर्चन जान ।
कह 'मलूक' वन्दन पुनः वन्द्य विभीषण मान ॥८९॥

श्री मारुत-सुतदास अरु सखा भये कपिराज ।
स्वात्मार्पक तु 'मलूक' है श्री जटायु खगराज ॥९०॥

प्रपत्ति —
एक बारहू शरण हित तव हूँ इमि जो याच ।
कह 'मलूक' श्रीराम तेहि अभय करें यह साँच ॥९१॥

गुरुदेव —
जेहि से सब ब्रह्माण्ड यह कह मलूक हैं व्याप्त ।
तेहि हरि दर्शक गुरु बिना सुख न कहत जन आप्त ॥९२॥

कह 'मलूक' जो भजत है सद्गुरु अरु भगवान् ।
सोई जानै तत्त्व जो कहते वेद पुरान ॥९३॥

त्रय रहस्य अरु तत्त्वत्रय पञ्श्च अर्थ का ज्ञान ।
कह मलूक गुरु से लहहु जो चाहहु कल्याण ॥९४॥

चार सम्प्रदाय —
जानहु श्री सनकादि अरु ब्रह्मा रुद्र उदार ।
कह 'मलूक' वैदिक यही सम्प्रदाय हैं चार ॥९५॥

रामानन्दाचार्य जी श्री के शुभ आचार्य ।
कह 'मलूक' सनकादि के हैं (श्री) निम्बार्काचार्य ॥९६॥

कह 'मलूक' श्री ब्रह्म के हैं श्री मध्वाचार्य।
विष्णु स्वामि श्री रुद्र के सम्प्रदाय-आचार्य ॥९७॥

गुरुपरम्परा-प्रणाम —
श्री सीतापति आदि मँह मध्यम रामानन्द ।
कह 'मलूक' निज-गुरुन कहँ प्रणमहु सदा अमन्द ॥९८॥

कल्याणोपदेश —
परिशीलहु भाष्यादि श्री सम्प्रदाय के ग्रन्थ ।
कह 'मलूक' भव-तरन का इहै अकण्टक पन्थ ॥९९॥

कह 'मलूक' यहि देह से यदि चाहहु कल्यान ।
सन्त-संग अरु करिय नित सिय सियपतिका ध्यान ॥१००॥

श्री सीतापति कृपा से शतक कह्यों सुविचारि ।
कह 'मलूक' गुनि भक्ति करि लहहु भव्य फल चारि ॥१०१॥

marakata maṇi sama śyāma hai śrī sītāpati rūpa ।
kōṭi madana sakucāta lakhi namai 'malūka' anūpa ॥1॥

kaha 'malūka' śrīrāma hī dharmōddhārana kāja ।
śrīmadrāmānanda bhē bhāṣyakāra yatirāja ॥2॥

jagadguru rāmānandajī ācāryana śiratāja ।
tinahiṃ 'malūkā' namata hai jaya jaya śrīyatirāja ॥3॥

kaha 'malūka' prasthāna traya bhāṣya racyō ānanda ।
śrīvaiṣṇava mata kamala ravi svāmī rāmānanda ॥4॥

jinakī anupama kṛpā sē tattva parayō pahicāna ।
una śrīgurupada padma kā dharata 'malūkā' dhyāna ॥5॥

vēdāntasiddhānta —
tattva viśiṣṭādvaita hai yahī vēda-siddhānta ।
kahai 'malūkā' lakhi parai guru kī kṛpā abhrānta ॥6॥

jīva prakṛti īśvara inhīṃ tīna tattva kā jñāna ।
āvaśyaka hai mōkṣa maha~-kahai 'malūkā' tāna ॥7॥

ātmā —
jñānāśraya hai ātmā dēhēndriya nahiṃ prāna ।
kahai 'malūkā' nitya aru nirvikāra tēhi jāna ॥8॥

kahai 'malūkā' rāma kē yē śarīra aru śēṣa ।
svaprakāśa aṇu jīva haiṃ dhārya niyāmya aśēṣa ॥9॥

sadā parāśrita jīva haiṃ rāma sadaiva svatantra ।
kahai 'malūkā' bhrānta jō jīvahiṃ kahēṃ svatantra ॥10॥

tattvamasi —
sadā prakāryadvaita kō kahai tattvamasi-vākya ।
nāhiṃ prakārādvaita yaha kahata 'malūkā' vākya ॥11॥

sadā prakārī rāma haiṃ cidacid dēha prakāra ।
'yasyātmā' ityādi śruti kahaiṃ 'malūkā' sāra ॥12॥

tat pada kahai parēśakōṃ kahai 'malūkā' jāna ।
tvaddēhī tvaṃ pada kahēṃ dōu prabhu-aikya bakhāna ॥13॥

nityapadasthita īśa hī antaryāmī hōya ।
nāma rūpa vyākaraṇa hita ēka 'malūkā' dōya ॥14॥

jīva ajña sarvajña prabhu kēhi vidhi duinauṃ ēka ।
kahai 'malūkā' bhrānta jō jīva brahma kahēṃ ēka ‌15॥

sāmānādhikaraṇya nahiṃ banai tattvamasi ṭhaura ।
jīva brahma kē bhēda bina kahai 'malūkā' aura ॥16॥

sāmānādhikaraṇyārtha —
bhēda pravṛttinimitta kā ēka artha puni hōya ।
sāmānādhikaraṇya taha~ kaha 'malūka' saba kōya ॥17॥

tat tvaṃ pada kī lakṣaṇā cētana mēṃ hī jāna ।
kahata 'malūkā' asa kabahu~ kahū~ na nara matimān ॥18॥

anvaya aru tātparya kī anupapatti jaba hōya ।
tabahi 'malūkā' lakṣaṇā mānata hai saba kōya ॥19॥

kēhi vidhi dui kāraṇa binā yahā~ lakṣaṇā hōya ।
kahaiṃ 'malūkā' kārya kahu~ bina kāraṇa hī hōya? ॥20॥

jīvabrahma-bhēda —
jīvapanāyuta brahma kē bhēdavān nahiṃ jīva ।
vastupanā sē ghaṭa sadṛśa sunahu 'malūkā' jīva ॥21॥

kaha 'malūka' tuma yaha kahau bhēda kahā~ suprasiddha ।
jīva bīca taba bādha hō nahīṃ tō sādhya asiddha ॥22॥

cētanapanasē mukti maha~ prabhu sē jīva abhinna ।
brahma sadṛśa asa vacana suni hōta 'malūkā' khinna ॥23॥

sōpādhika yaha hētu hai bhavakartṛtva upādhi ।
kahata 'malūka' prakāśapana advaitina kaha~ vyādhi ॥24॥

pakṣa tathā dṛṣṭānta yadi bhinna hōya~ taba bādha ।
kahata 'malūkā' bhēda bina udāharaṇa nahiṃ sādha ॥25॥

ātmasvarūpa —
gati āgati utkrānti yē tīna jīva kī hōya ।
kaha 'malūka' tēhi hētu sē nāhiṃ jīva vibhu hōya ॥26॥

jīva karmavaśa gahata haiṃ kōrī kuṃjara dēha ।
tātē madhyama māna nahiṃ kaha 'malūka' sasnēha ॥27॥

saṃkōcādika kē bhayē hōvē jīva vināśa ।
avayavavālī vastu kā hōta 'malūkā' nāśa ॥28॥

abhyāgata bina kiyē kā kṛta kā hōya vināśa ।
tēhisē kahata 'malūka' hai ātmā hai avināśa ॥29॥

kaha 'malūka' yaha jīva aṇu hṛdaya bīca hai thāna ।
dīpa prabhā sama jñāna sē śira pīḍa़ādika jāna ॥30॥

ātmā tathā jñāna kā bhēda —
jñānarūpa hai ātmā dharma jñāna sē bhinna ।
pratyakūpana aru parākūpana sē 'malūka' dōu bhinna ॥31॥

'maiṃ jānauṃ' paratīti yaha sārvajanika nirbādha ।
jñātā bhinna 'malūka' yaha pratīti jñānahiṃ sādha ॥32॥

jīvaikya-nirāsa —
kōī kahatē ātmā saba dēhana maha~ ēka ।
bhinna bhinna saba dēha maha~ kahata 'malūka' anēka ॥33॥

kaha 'malūka' saba dēha kē jīva hōya~ yadi ēka ।
ēka kāla maha~ duḥkha ika sukha bhōgaiṃ kimi ēka ॥34॥

dēha bhēda sē jā kahahu sukhī dukhī kā bhēda ।
kyōṃ na 'malūkā' saubharihiṃ sukha-dukha tanu kē bhēda ॥35॥

jīvabhēda —
baddha mukta aru nitya yaha jīva bhēda haiṃ tīna ।
kaha 'malūka' anyatra puni bahuta bhēda haiṃ kīna ॥36॥

acit tattva —
miśra śuddha sat kāla yaha acit bhēda haiṃ tīna ।
kaha 'malūka' caubīsa taha~ miśra-bhēda haiṃ kīna ॥37॥

kaha 'malūka' prakṛtī mahat ahaṅkāra traya jāna ।
ēkādaśa indriyana kā sātvika kāraṇa māna ॥38॥

tāmasa sē tanmātra aru paṃca bhūta hū hōya ।
kaha 'malūka' rājasaḥ punaḥ ubhaya sahāyaka hōya ॥39॥

śuddhasatva athavā nityavibhūti —
kahata 'malūkā' śuddhasat nityavibhūtihi jāna ।
“tadvipṇōḥ paramaṃ padam” taha~ yaha śrutihi pramāna ॥40॥

kāla —
bhūta bhaviṣyat ādi saba vyavahārana kā mūla ।
kahata 'malūkā' kāla hai kālahiṃ bhūli na bhūla ॥41॥

jaganmithyātva-nirāsa —
kaha 'malūka' jhūṭhē kahahiṃ jhūṭhī aisī bāta ।
brahma satya aru jaga mṛṣā paramāratha nahiṃ tāta ॥42॥

sarva viśēṣaṇa sē rahita brahma ēka advaita ।
brahmasatyapana hētu taba kaha 'malūka' kimi dēta ॥43॥

dṛśyapanahu kē hētu jō jaga kaha~ mṛṣā bakhāna ।
kaha 'malūka' tēhi hētu kō sōpādhika pahicāna ॥44॥

vyāpti kaunasī rīti sē gahī batāvahu aura ।
mithyāpana aru dṛśyapana kī 'malūka' kēhi ṭhaura ॥46॥

śukti rajata thala kahahu tō nahiṃ 'malūka' nistāra ।
dēkhahu ānaॅṃdabhāṣya kā catuḥsūtra-vistāra ॥47॥

śuktirajata yahi jñāna kā viṣaya satya pahicāna ।
hai yathārtha vijñāna saba kahata 'malūkā' jāna ॥48॥

īśvaratattva —
sirajana saṃhārana tathā jaga kē pālanahāra ।
kahai 'malūkā' rāma hī īśa sarva-ādhāra ॥50॥

mōkṣa kāma dharmārtha kē dēnahāra śrīrāma ।
divya dēha śubha guṇana kē haiṃ 'malūka' śubha dhāma ॥51॥

dēha rūpa aru guṇana sē vyāpaka prabhu saba ṭhaura ।
kaha 'malūka' saba vastu kē bāhara bhītara aura ॥52॥

kaha 'malūka' parabhakti sē tuṣṭa hōya~ śrīrāma ।
nija bhaktahiṃ sāyujya taba dēta akhilapati rāma ॥53॥

para vyūha aru vibhava aru antaryāmī māna ।
kaha 'malūka' arcātanuhiṃ hari pañcama thiti jāna ॥54॥

para sākētanivāsa haiṃ avatārī śrīrāma ।
kaha 'malūka' parikaranayuta vaidēhī-abhirāma ॥55॥

vāsudēva ityādi kaha~ caturyūha pahicāna ।
kaha 'malūka' matsyādi kaha~ vibhava rūpa sē māna ॥56॥

antaryāmī ramē jasa mēha~dī lōhita rūpa ।
kaha 'malūka' avadhādi maha~ arcāmūrti anupa ॥57॥

śrīavadhapurī —
hanumadādi bharatādi saha tathā jānakī sātha ।
kaha 'malūka' jaha~ kīna prabhu nija līlā raghunātha ॥58॥

avadhapurī sō śrēṣṭhatama mōkṣadāni sukhakhāni ।
mahimā tāsu 'malūka' puni kō kavi sakai bakhāni ॥59॥

śrīsarayū līlā līlā-dhāma kī lalita jahā~ vikhyāta ।
kaha 'malūka' surasarita tēhi sarayuhiṃ lakhi sakucāti ॥60॥

pañca saṃskāra —
ūrdhvapuṇḍra sē hōta sukha mōkṣa tathā dukhanāśa ।
kaha 'malūka' sō puṇḍra lakhi yama-gaṇa hōta hatāśa ॥61॥

dhanurbāṇa-aṃkita bhujā jō jana hōta 'malūka' ।
sarvapāpa sē mukta tēhi para pada milata acūka ॥62॥

bhagavat pūrva 'malūka' puni nāma anta maha~ dāsa ।
mukti milata taba, śāstra kaha jīva mātra haridāsa ॥63॥

tulasī bina nahiṃ hari-bhajana-adhikārī hō jīva ।
kaha malūka ati śrēṣṭha hai tulasī bhūṣitagrīva ॥64॥

jimi saba vēdana bīca hai sāmavēda śiratāja ।
timi malūka saba maṃtra maha~ rāmamaṃtra adhirāja ॥65॥

dharma —
ēka dharma hī jāta hai marē jīva kē sātha ।
anya 'malūkā' naṣṭa hōṃ saba śarīra kē sātha ॥66॥

catura varṇa maha~ hōta hai brāhmaṇa yathā mahān ।
saba mahaॅṃ vaiṣṇava dharma timi mahat 'malūka' bakhāna ॥67॥

viṣṇu-bhakta kaha~ jē kahahiṃ kaha 'malūka' durvākya ।
parahiṃ naraka sukhahīna hvai kahata śāstra asa vākya ॥68॥

parahita sama kōu dharma nahiṃ hiṃsā sama nahiṃ pāpa ।
dharma karahiṃ vaiṣṇava sadā kaha 'malūka' nahiṃ pāpa ॥69॥

indrādika saba dēva aru gaṃgādika saba tīrtha ।
kaha 'malūka' taha~ vasata haiṃ jaha~ vaiṣṇava-pada-tīrthaṃ ॥70॥

nija varṇāśrama-karma sē arcahiṃ jō siyarāma ।
kaha 'malūka' sō lahata haiṃ akṣaya sukha para-dhāma ॥71॥

rāmanāma —
kaha 'malūka' śatasandhiyuta jarjara girata śarīra ।
bhēṣaja taji rasavara piyahu nitya nāma raghuvīra ॥72॥

rāma māhiṃ rami rāhata hū~ rāma rāma iti nāma ।
kaha 'malūka' śiva kahata asa sahasanāma sama rāma ॥73॥

rāmanāma sama āna nahiṃ kali mu~ha sugama upāya ।
kaha 'malūka' yōgādi maha~ mana nahiṃ thira gati pāya ॥74॥

santōṣa —
kyōṃ 'malūka' paci marata hō burē pēṭa kē hēta ।
rāma jīva kē janmatahi mātathanana paya dēta ॥75॥

ajagara karai na cākarī pakṣī karai na kāma ।
'dāsa malūkā' kahata hai saba kē dātā rāma ॥76॥

bhakti —
karma-yōgahū vyartha hō jñāna-yōga hō rōga ।
kaha 'malūka' hari-bhakti bina miṭai na bhavakō bhōga ॥77॥

ēka ananyā bhakti maha~ mukti-dāna kī śakti ।
kahata 'malūkā' santa jana nava prakāra kī bhakti ॥78॥

navadhā bhakti —
śrīsītāpati carita kā śravaṇa prēma sē māna ।
kahata 'malūkā' prathama yaha 'śravaṇabhakti' ura āna ॥79॥

nāma sahita raghunātha kā prēma sahita guṇagāna ।
kahata 'malūkā' dūsarī 'kīrtana bhakti' sujāna‌ ॥80॥

'sumirana bhakti' kahata haiṃ tīsari sunahu malūka ।
niśidina hari-guṇa-dhāma kā sumirana karai acūka ॥81॥

daśarathanṛpa-suta-caraṇa-raja jaḍa़hiṃ karai caitanya ।
sōi 'pada-sēvana-bhakti' hai cauthi 'malūkā' dhanya ॥82॥

kauśalyā kē lāla kī bahuvidhi arcā jōya ।
paścama 'arcana' nāma sō bhakti 'malūkā' hōya ॥83॥

ṣaṣṭhī 'vandana' bhakti hai kaha 'malūka' svara ū~ca ।
prabhu-pada-vandana-bhakti hai saba yajñana sē ū~ca ॥84॥

bhakti saptamī rāmakī dāsya nāma kī hōya ।
kaha 'malūka' hari-dāsa bina nahiṃ tārata kula kōya ॥85॥

bandhu sadṛśa vyavahāra kaha~ nara sama dēkhana hēta ।
'sakhya bhakti' aṣṭama karahiṃ jana 'malūka' kari cēta ॥86॥

'ātmasamarpaṇa' karata jana chaॉḍi sakala vidha karma ।
jimi jaṭāyu timi navama yaha bhakti 'malūkā' marma‌ ॥87॥

śravaṇa bhakti lavakuśa karē vālmīki guṇagāna ।
kaha 'malūka' sumiraṇa karē kumbhaja śiṣya sujāna ॥88॥

bharata bhāvayuta caraṇarata śabarī arcana jāna ।
kaha 'malūka' vandana punaḥ vandya vibhīṣaṇa māna ॥89॥

śrī māruta-sutadāsa aru sakhā bhayē kapirāja ।
svātmārpaka tu 'malūka' hai śrī jaṭāyu khagarāja ॥90॥

prapatti —
ēka bārahū śaraṇa hita tava hū~ imi jō yāca ।
kaha 'malūka' śrīrāma tēhi abhaya karēṃ yaha sā~ca ॥91॥

gurudēva —
jēhi sē saba brahmāṇḍa yaha kaha malūka haiṃ vyāpta ।
tēhi hari darśaka guru binā sukha na kahata jana āpta ॥92॥

kaha 'malūka' jō bhajata hai sadguru aru bhagavān ।
sōī jānai tattva jō kahatē vēda purāna ॥93॥

traya rahasya aru tattvatraya pañśca artha kā jñāna ।
kaha malūka guru sē lahahu jō cāhahu kalyāṇa ॥94॥

cāra sampradāya —
jānahu śrī sanakādi aru brahmā rudra udāra ।
kaha 'malūka' vaidika yahī sampradāya haiṃ cāra ॥95॥

rāmānandācārya jī śrī kē śubha ācārya ।
kaha 'malūka' sanakādi kē haiṃ (śrī) nimbārkācārya ॥96॥

kaha 'malūka' śrī brahma kē haiṃ śrī madhvācārya।
viṣṇu svāmi śrī rudra kē sampradāya-ācārya ॥97॥

guruparamparā-praṇāma —
śrī sītāpati ādi ma~ha madhyama rāmānanda ।
kaha 'malūka' nija-guruna kaha~ praṇamahu sadā amanda ॥98॥

kalyāṇōpadēśa —
pariśīlahu bhāṣyādi śrī sampradāya kē grantha ।
kaha 'malūka' bhava-tarana kā ihai akaṇṭaka pantha ॥99॥

kaha 'malūka' yahi dēha sē yadi cāhahu kalyāna ।
santa-saṃga aru kariya nita siya siyapatikā dhyāna ॥100॥

śrī sītāpati kṛpā sē śataka kahyōṃ suvicāri ।
kaha 'malūka' guni bhakti kari lahahu bhavya phala cāri ॥101॥

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