जगद्गुरु श्रीमलूकदासाचार्यविरचितं 'मलूकशतकम्'
मरकत मणि सम श्याम है श्री सीतापति रूप ।
कोटि मदन सकुचात लखि नमै 'मलूक' अनूप ॥१॥
कह 'मलूक' श्रीराम ही धर्मोद्धारन काज ।
श्रीमद्रामानन्द भे भाष्यकार यतिराज ॥२॥
जगद्गुरु रामानन्दजी आचार्यन शिरताज ।
तिनहिं 'मलूका' नमत है जय जय श्रीयतिराज ॥३॥
कह 'मलूक' प्रस्थान त्रय भाष्य रच्यो आनन्द ।
श्रीवैष्णव मत कमल रवि स्वामी रामानन्द ॥४॥
जिनकी अनुपम कृपा से तत्त्व परयो पहिचान ।
उन श्रीगुरुपद पद्म का धरत 'मलूका' ध्यान ॥५॥
वेदान्तसिद्धान्त —
तत्त्व विशिष्टाद्वैत है यही वेद-सिद्ध