vaishnav sadachar (2)

श्री उपदेशामृत-४ - श्लोक सार: प्रसाद स्वरूप कुछ देना; प्रसाद स्वरूप कुछ लेना; हृदय के भेद भक्तों से सांझा करना; तत्वज्ञान संबंधी गुह्य तत्वों को पूछना; भक्तों से भोजन प्रसाद स्वीकार करना; तथा भक्तों को भोजन प्रसाद प्रीति पूर्वक करवाना। भक्तों के संग व्यवहार के यह छः तटस्थ लक्षण कह गए हैं।
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भक्ति विकास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन क्या है? पूर्ववर्ती आचार्यों के श्रेष्ठ आचरण जैसी सतो-वृत्ति व चर्या का वर्धन।
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