हरे कृष्ण महामन्त्र ही एकमात्र आश्रय
प्रस्तुति ललितमाधव दास द्वारा
श्राद्धदेव या वैवस्वत मनु महाराज इक्ष्वाकु के पिता थे। पहले वे सन्तानहीन थे, किन्तु वशिष्ठ मुनि की कृपा से उन्होंने मित्र तथा वरुण को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ किया। यद्यपि वैवस्त मनु पुत्ररत्न चाहते थे, किन्तु उनकी पत्नी की इच्छानुसार उन्हें इला नामक पुत्री प्राप्त हुई। अतएव वैवस्त मनु पुत्री- प्राप्ति से संतुष्ट नहीं थे। वैवस्वत मनु महाराज ने अपने गुरु वशिष्ठ मुनि से इस प्रकार कहा:-
भगवन् किमिदं जातं कर्म वो ब्रह्मवादिनाम्।
विर्ययमहो कष्टं मैवं स्याद् ब्रह्मविक्रिया ।।
(हे प्रभु ! आप लोग वैदिक मन्त्रों के उच्चारण में पटु हैं। तो फिर वांछित फल से विपरीत फल क्यों निकला? यह पश्चाताप का विषय है। वैदिक मंत्रों का ऐसा उल्टा प्रभाव नहीं होना चाहिए था।) श्रीमद् भागवतम् 9:1:17
तात्पर्य श्रील प्रभुपाद: इस युग में यज्ञ करना मना है क्योंकि कोई भी व्यक्ति वेद-मन्त्रों का ठीक से उच्चारण नहीं कर सकता। यदि वैदिक मन्त्रों का ठीक से उच्चारण किया जाए तो जिस इच्छा से यज्ञ किया जाता है उसकी पूर्ति अवश्य होती है। इसलिए हरे कृष्ण उच्चारण महामन्त्र कहलाता है जो अन्य समस्त वैदिक मन्त्रों से बढ़ चढ़ कर है क्योंकि हरे कृष्ण महामन्त्र के उच्चारण मात्र से अनेक लाभ होते हैं।
जैसा कि श्रीचैतन्य महाप्रभु ने (शिक्षाष्टक-1) में बतलाया है-
चेतोदर्पणमार्जनं भवदावाग्निनिर्वापनं श्रेय:कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्धावधूजीवनम्।
आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम्।।
“श्रीकृष्ण संकीर्तन की जय हो जो वर्षों से ह्रदय में जमी धूल को स्वच्छ करता है और बार-बार जन्म-मरण के बद्ध जीवन की अग्नि को शमन करता है। यह संकीर्तन आंदोलन मानवता के लिए मूल वरदान है क्योंकि यह वरदान रूपी चन्द्रमा की किरणों को बिखेरता है। यह समस्त दिव्य ज्ञान का जीवन है। यह दिव्य आनन्द के सागर को बढ़ाता है और हमें उस अमृत को चखने में समर्थ बनाता है जिसके लिए हम सभी सदैव लालायित रहते हैं ।“
अतएव हमें जिस सर्वश्रेष्ठ यज्ञ को सम्पन्न करना है वह है संकीर्तन यज्ञ। यज्ञै: संकीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधम: (श्रीमद् भागवत 11:5:32)। जो लोग बुद्धिमान है वे इस युग में हरे कृष्ण महामन्त्र का सामुहिक कीर्तन करके महानतम् यज्ञ का लाभ उठाते हैं। जब हरे कृष्ण मन्त्र का कीर्तन कई पुरुष मिलकर करते हैं तो यह संकीर्तन कहलाता है। ऐसे यज्ञ के प्रभाव से आकाश में बादल आ जाएंगे (यज्ञाद् भवति पर्जन्य:)। दुर्भिक्ष के इन दिनों में मात्र हरे कृष्ण यज्ञ की विधि से लोग वर्षा तथा अन्न के अभाव से छुटकारा पा सकते हैं। निस्सन्देह इससे सारें मानव समाज को राहत मिल सकती है। अधुना सारे यूरोप तथा अमेरिका में दुर्भिक्ष है और लोग कष्ट उठा रहे हैं, किन्तु यदि लोग इस कृष्णभावनामृत आन्दोलन को गंभीरतापूर्वक ग्रहण करें, यदि वे अपने पापकर्म बन्द कर दें और हरे कृष्ण महामन्त्र का कीर्तन करें तो उनकी सारी समस्याएँ आसानी से सुलझ जाएँ। यज्ञ की अन्य विधियों में तरह-तरह की कठिनाइयाँ आती हैं क्योंकि न तो ऐसे पण्डित हैं जो मन्त्रों का ठीक से उच्चारण कर सके, न ही यज्ञ सम्पन्न करने की सामग्री प्राप्त कर पाना संभव है। चूंकि मानव समाज दरिद्र है और लोग वैदिक ज्ञान एवं वैदिक मन्त्रों के उच्चारण करने की शक्ति से वंचित हैं अतएव हरे कृष्ण महामन्त्र ही एकमात्र आश्रय है। लोगों को इसका कीर्तन करने की बुद्धिमानी बरतनी चाहिए। यज्ञै: संकीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधम:। जिनके मस्तिष्क कुन्द हैं वे न तो इस कीर्तन को समझ सकते हैं, न ही इसे ग्रहण कर सकते हैं ।
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