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कलयुग की आँखें

 

हिन्दी अनुवाद : भक्तिन  बेनु


निम्नलिखित हमारे गुरु महाराज महाविष्णु गोस्वामी जी के द्वारा 16.12.2006 को श्रीमद्भागवतम के 11.7.5 श्लोक पर दिए गए प्रवचन का हिस्सा है। यह प्रवचन उन्होंने श्री श्री राधा नीलमाधव धाम, राजकोट में दिया था।

 

ना वस्ताव्यम त्वयेवेहा माया त्यक्ते महि टेल।
जानो भद्र रुचिर भद्र भविष्यति कलु युगे।।

 

“मेरे प्रिय उद्धव, जब मैं धरती से विलुप्त हो जाऊँगा तब तुम्हें भी यहाँ नहीं रहना चाहिए। मेरे प्रिय भक्त, तुम निष्पाप हो, लेकिन कलयुग में लोग भिन्न प्रकार की पापमयी गतिविधियों में संलग्न होंगे इसलिए तुम्हें यहाँ नहीं रहना चाहिए।”

 

गुरुदेव समझाते हैं, “क्योंकि हम कलयुग में हैं, अतः हम दिन प्रतिदिन भ्रष्ट होते जा रहे हैं। हमारा खाना, व्यवहार, हमारी संस्कृति सब कुछ इन भौतिक वस्तुओं एवं भौतिक क्रियाकलापों के कारण दूषित हो रहा है। हमें केवल इन सब बेकार की बातों में व्यस्त रहने के लिए दोष नहीं दिया जा रहा है अपितु हम दूसरों व अपने बच्चों को भी इन सब में पड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, हम इसके भी दोषी भी हैं। अगर आप इन भौतिक समस्यों को भौतिक विचार से सुलझाने की कोशिश करेंगे तो आप निश्चित रूप से और भी दुःख और परेशानियों में पड़ जायेंगे। आग को घी डालकर कैसे बुझाया जा सकता हैं ? यह संभव ही नहीं हैं। यह संसार एक बैंक की तरह है और यहाँ सबका समस्याओं का अपना खाता है। सबकी समस्याएँ अलग अलग हो सकती हैं पर वह होंगी जरूर। अगर हम एक समस्या से निपटते हैं तो दूसरी समस्या सामने आ जाती हैं। यदि हम वह भी सुलझा ले तो एक दूसरी समस्या हमारा इंतज़ार कर रही होती है। इस भौतिक संसार मे यही सब है।

 

महाराज श्रीमद्भागवतम के श्लोक १.११.१३ के तात्पर्य से पढ़ते हैं, “हमारी वर्तमान स्थिति पूरे तरीके से भय से भरी हुई हैं। दैहिक अस्तित्त्व की चार समस्याऐं हैं- खाने की समस्या, आश्रय की समस्या, डर की समस्या व संभोंग की समस्या। इन चार समस्याओं में से डर की समस्या हमें दूसरों की तुलना में ज्यादा परेशानी देती है। हम हमेशा अगली आने वाली समस्या के कारण डर रहे हैं। पूरा सामग्री अस्तित्त्व समस्याओं से भरा पड़ा हैं और इस तरह भय की समस्या हमेशा ही प्रमुख हैं। श्रीमद्भागवद्गीता और श्रीमद्भागवतम में हमारी प्रत्येक समस्या का समाधान दिया हुआ है। अगर हम अपनी वर्तमान स्थिति से खुश नहीं हैं तो यह शास्त्र हमें पढ़ने चाहिए। तब हमें शास्त्रों में दिए गए निर्देशों का पालन करके जीने का सही तरीका ढूँढना चाहिए।

 

मैं तुम्हें माया के प्रभाव से बचने के लिए ही ज्यादा से ज्यादा व्यावहारिक तरीके से जीवन व्यतीत करने के लिए समझाता हूँ। यदि आप अपने आपको भगवान् की सेवा में सलंग्न रखेंगे तो आप भगवान् की कृपा से कभी दूर नहीं होंगे। यह सेवा कुछ भी हो सकती हैं जैसे माला जाप करना, शास्त्र पड़ना, भगवान् के नाम का प्रचार करना या फिर श्री विग्रहों की सेवा करना। याद रखो सभी परेशानियों की एक ही जड़ हैं और वह है कि हम कृष्ण को भूल गए हैं, उनसे अपना संबंध भूल गए हैं। जहाँ कृष्ण नहीं होते वहाँ माया होती हैं। कलयुग की निम्नलिखित बातों को ठुकरा दो, कलयुग की आँखें (Eyes – I’s ) बंद कर दो :

 

१. illicit relations – अवैध संबंध (अपने पति/पत्नी के अलावा किसी दूसरे आदमी/औरत के साथ संबंध)
२. illegal money making – गलत तरीके से पैसा कमाना (जुआ,चोरी इत्यादि)
३. intoxication habits – नशीले पदार्थों का सेवन ( तम्बांकू, सिगरेट पीना आदि)
४. innocent animal food – मासांहार सेवन ( पशोयों का मांस खाना )

 

महाराज कहते हैं कि अच्छी वस्तुयों की ओर मुड़ो। सबमें अच्छा देखो,दूसरों में अच्छाई छांटो ओर उन्हें इतना बढ़ाकर देखो कि बुरी बातें दिखाई ही ना दे। दूसरों की बुराई करना बंद करो ओर उनमे कोई कमी मत देखो क्योंकि हम भी किसी ना किसी तरीके से उन्ही की तरह हैं। जब भक्त प्रभुपाद से यह पूछते थे कि यह कैसे पाता लगाया जाए कि कौन शुद्ध भक्त है, तो प्रभुपाद उत्तर देते थे,”एक शुद्ध भक्त वही है जो अपने अलावा हर किसी को शुद्ध भक्त समझता है।” अच्छा हमेशा अच्छा रहता है ओर सिर्फ अच्छा ही अस्तित्त्व में रहता हैं, बुरा व गलत ज्यादा समय तक अस्तित्त्व में नहीं रहता। अच्छी आदतें डालो, अच्छा सोचो ओर हमेशा अच्छा बोलो लेकिन उनसे बिना किसी लगाव के। जो भी अच्छा हैं वह चाहे भौतिक हो या आध्यात्मिक – वह कृष्ण है। गुरुदेव श्रीमद्भागवत गीता के श्लोक 10.41 से पढ़ते हैं:

 

यद्याद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्त्वं मम तेर्जोश्सम्भवम् ।।

 

“जो जो भी विभुतियुक्त अर्थात ऐश्वर्ययुक्त, कान्तियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है, उस उसको तू मेरे तेज़ के अंश की ही अभिव्यक्ति जान।”

 

अच्छी वस्तुएँ,अच्छे शब्द व अच्छे इंसान किस को अच्छे नहीं लगते? कोई भी व्यक्ति चाहे वह भक्त हो या ना हो, सभी अच्छाई कि तरफ आकर्षित होतें हैं और अच्छाई कृष्ण की ही बनाई हुई है। जो व्यक्ति भगवान् में बिलकुल भी विश्वास नहीं कर्ट उस भी अच्छे कपडे पहनना, अच्छे घर में रहने अच्छा लगता है और उए भी एक अच्छी पत्नी चाहिए। वो जानते नहीं है कि वो भी श्री कृष्ण के साथ रह रहे हैं लेकिन उनके जीवन का केंद्र बिंदु कहीं गम है और वह केंद्र बिंदु है श्री कृष्ण। वह लोग अपने कम ज्ञान के कारण यह नहीं जान पाते हैं। श्रील प्रभुपाद श्रीमद्भागवतम के 1.5.22 श्लोक में बड़े सलीके से बताते हैं, “सारा ज्ञान जो श्री कृष्ण की सेवा मैं नहीं लगा है वह व्यर्थ है।”

 

मैं गुरुदेव की कृपा मुझ पर बरसाने के लिए भीख मांगता हूँ ताकि मैं सही ज्ञान को समझ कर अभ्यास कर सकूँ।

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Comments

  • HARE KRISHNA

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