श्री चैतन्य महाप्रभु दक्षिणी भारत की यात्रा कर रहे थे| एक दिन वे श्री रंगनाथ मंदिर पहुँच गए| उन्होंने वहा पर देखा की एक साधारणसा ब्राम्हण श्रीमद्भागवद्गीता पढने में तल्लीन था| उसके नेत्र अश्रुओंसे से भर चुके थे| ब्राम्हण के इस गीतापठन को देख श्री चैतन्य महाप्रभु आनंद से भाव विभोर हो गए| वहा उपस्थित कुछ ब्राम्हण इस ब्राम्हण को देख कर हँस रहे थे| उन्होंने कहा की यह ब्राम्हण पढना लिखना नहीं
जानता तो ये गीता पढना असंभव है|
श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने कहा की जगत में कोई भी ईश्वर की दिव्य वाणी ,उपदेश ग्रहण कर सकता है किन्तु वह एक ईश्वर को समर्पित आत्मा होना आवश्यक है| बिना किसी समर्पण भाव से गीता पठन करना व्यर्थ है|
श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने ब्राम्हण से प्रश्न किया की गीता में उन्होंने ऐसा क्या पढ़ लिया है जिससे उनके नेत्र अश्रुओं से भर गए है? ब्राम्हण ने उत्तर दिया ,
“मै गीता पढ़ने का अभिनय मात्र कर रहा हूँ| वास्तव यह है की मैं पढना लिखना नहीं जानता| मेरे गुरु की आज्ञा थी की प्रतिदिन गीता पठन अवश्य करना चाहिए | मै गुरु की अवज्ञा नहीं कर सकता था| इसीलिए मै गीता पठन का अभिनय कर रह हूँ|
श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने पूछा की आँखों से अश्रु आने का कारण क्या है?
ब्राम्हण ने उत्तर दिया,
जब भी मै श्रीमद्भागवद्गीता पठन करता हूँ ,पार्थसारथी भगवान श्रीकृष्ण की छवि मेरे ह्रदय में उपस्थित हो जाती है| जैसे ही मैं भगवान् के इस रूप को देखता हूँ ,मेरा मन भगवान् की भक्त वत्सलता देख कर भाव विभोर हो जाता है और आँखों से अश्रु निकल पड़ते हैं.......
भगवान के प्रति निष्ठा ,श्रद्धा और समर्पण भाव होना आवश्यक है | इनके अभाव में शास्त्रों का अध्ययन व्यर्थ होता हैं| श्रीमद्भागवद्गीता अध्ययन करते समय भगवन श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धा और समर्पण भाव होना चाहिए| गीता का मूल उपदेश भगवान् श्रीकृष्ण के श्रीचरणों में समर्पित होना हैं|
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!
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