Hare Krsna,

Please accept my humble obeisances. All glories to Srila Prabhupada & Srila Gopal Krishna Maharaj.

मनुष्य जीवन की सर्वोच्च सिद्धि भगवत्प्रेम प्राप्त करने के लिए प्रह्लाद महाराज (भगवत-धर्म को पूर्णतया जानने वाले बारह महाजन में एक) षड-भक्ति का वर्णन करते हैं, जिसका पहला व महत्वपूर्ण अंग है- प्रार्थना करना अर्थात भगवान से अहैतुकी भक्ति के लिए सुन्दर-सुन्दर प्रार्थनाएँ करना | प्रार्थना के माध्यम से हम भगवान से व्यक्तिगत साक्षात्कार करते हैं, इसलिए यह हृदय का संवाद होना चाहिए | हम अर्थात जीवात्मा भगवान का एक छुद्र अंश (बाल की नोक का दस हजारवां भाग) है | प्रार्थना से हमारी विनम्रता,तुच्छता या अयोग्यता या हम कितने असहाय हैं तथा भगवान के प्रति कृतज्ञता, प्रकट होनी चाहिए | यह हमें शक्ति देती है | हरे कृष्ण महामंत्र का जप भी एक प्रार्थना है, जिसके द्वारा हम श्री भगवान तथा उनकी अंतरंग शक्ति से निवेदन करते हैं कि वे हमें अपनी सेवा में लगाये |

यहाँ सर्वश्रेष्ठ प्रार्थनाओं के कुछ अंश हम सब के मार्गनिर्देशन के लिए दिए गए हैं | हम सब को भी किसी भी भौतिक इच्छाओं की कामना न करते हुए भगवान से इसी प्रकार के भाव में पूरे मनोयोग तथा अत्यन ध्यानपूर्वक, स्थिर मन से प्रार्थनाये करनी चाहिए तभी हम भगवान के चरण-कमलों में अपने मन व बुद्धि को स्थिर कर भगवत्प्रेम का विकास कर पायेगें और इस भव-सागर को पार कर पाएंगे |

चैतन्य महाप्रभु की प्रार्थना: हे परम शक्तिमान भगवान !  मै न तो धन संग्रह करना चाहता हूँ, न मुझे सुंदर स्त्री की भोग करने की इच्छा है और न मुझे अनैक अनुनायी चाहिए | मै तो जन्म जन्मान्तर आपकी अहैतुकी भक्ति की कामना करता हूँ |  हे महाराज नन्द के पुत्र, कृष्ण! मैं आपका नित्य सेवक हूँ, फिर भी मैं जन्म-मृत्यु के सागर में गिर गया हूँ | कृपया मुझे इस मृत्यु सागर से उठा लें और अपने चरण-कमलों में धूलिकण के रूप में स्थान दे दें |                                                                       

ब्रह्माजी की प्रार्थना: हे प्रभु, यह मेरा अहोभाग्य होगा कि इसी जीवन में ब्रह्मा के रूप में या दूसरे जीवन में जहाँ कहीं भी जन्म लूँ चाहे पशु योनी में ही सही, मेरी गणना आपके भक्तों में हो और मैं  आपके चरण-कमलों की सेवा में लग सकूँ (SB.10.14.30) |

प्रह्लाद महाराज की प्रार्थना: हे प्रभु, मुझे सांसारिक ऐश्वर्य, योगशक्ति, दीर्घायु तथा ब्रह्माजी से लेकर सारे जीवों द्वारा भोग्य भौतिक आनन्द नही चाहिए | हे भगवान, मेरी प्रार्थना है कि आप मुझे अपने शुद्ध भक्त की संगति में रखें और निष्ठावान दास के रूप में उनकी सेवा करने दें (SB.7.9.24) | हे प्रभु, मै आपका नि:स्वार्थ सेवक हूँ और आप मेरे स्वाभाविक स्वामी हैं | हे सर्वश्रेष्ठ वरदाता स्वामी, यदि आप मुझे कोई वांछित वर देना चाहते हैं तो मेरी आप से प्रार्थना है कि मेरे हृदय में किसी प्रकार की (भौतिक) कामनाए न रहें (SB.7.10.6-7) |

ध्रुव महाराज की प्रार्थना:  हे अनन्त भगवान, कृपया मुझे उन महान भक्तों की संगति दें जिनके हृदय नितान्त कल्मषरहित हैं तथा जो आपकी दिव्य प्रेमा-भक्ति में उसी प्रकार लगे रहते हैं जिस प्रकार नदी की तरंगे लगातार बहती रहती हैं | मुझे विश्वास है कि भक्तियोग से मैं संसार रुपी अज्ञान के सागर को पार कर सकूँगा जिसमें अग्नि की लपटों के समान भयंकर संकटों की लहरें उठ रही हैं | मैं आपकी दिव्य गुणों तथा शाश्वत लीलाओं को सुनने के लिए पागल होना चाहता हूँ (SB.4.9.11) |

महारानी कुंती की प्रार्थना:  हे कृष्ण, ये सारी विपत्तियाँ हम पर बार बार आयें, जिससे हम आपका दर्शन बार बार कर सके | इस प्रकार हमें बारम्बार होने वाले जन्म तथा मृत्यु को नही देखना पड़ेगा (SB.1.8.25) | हे ब्रह्माण्ड के स्वामी, हे विश्वरूप, कृपा कर मेरे स्वजनों के प्रति मेरे स्नेह-बंधन को काट डालें | हे मधुपति, जिस प्रकार गंगा नदी बिना किसी व्यवधान के सदैव समुंद्र की और बहती है, उसी  प्रकार मेरा आकर्षण अन्य किसी और न बंट कर आपकी और निरन्तर बना रहे (SB.1.8.41-42) |

प्रचेताओं की भगवान से प्रार्थना: हे स्वामी, जब तक हम अपने सांसारिक कल्मष के कारण इस संसार में रहें और अपने कर्मों के कारण विभिन्न योनियों में एक लोक से दूसरे लोक में घूमते रहे, तब तक हम आपके प्रेमी भक्तों की संगति में रहे | हम आपसे केवल यही वर मांगते हैं (SB.4.30.33) |

श्रीधर स्वामी की प्रार्थना: मैं क्या हूँ- सांसारिक बुद्धि आदि के भौतिक आवरणों से बंधा जीव ? हे सर्वशक्तिमान! आपकी महिमा से इसकी क्या तुलना ? हे पतितों के मित्र, हे दया के सागर! भगवान नरहरि! आप मुझे अपनी भक्ति का वर दें | हे माधव! ऐसा करें कि मैं आपको समझूं, जिससे मैं भौतिक सुख तथा दुख के पाश का और अधिक अनुभव न कर सकूँ या फिर अच्छा हो कि आप अपने विषय में श्रवण तथा कीर्तन करने का आस्वादन मुझे प्रदान करें | उस स्थिति में मैं आनुष्ठानिक विधि विधानों का दास नहीं रह जाऊँगा | हे प्रभु! मैं आपका भिन्नांश हूँ, मुझे अपनी माया के बंधन से मुक्त कीजिये | हे परमानन्द के धाम! आप मुझे अपने चरणों की सेवा में लगा कर ऐसा कीजिये |

राजा कुलशेखर की प्रार्थना: हे भगवान! मुझे न तो धार्मिक अनुष्ठान करने, न ही प्रथ्वी का राज्य ग्रहण करने के प्रति आकर्षण है | मुझे इन्द्रिय-भोग की भी परवाह नहीं है; वे मेरे पूर्वकर्मों के अनुसार आते और जाते रहें | मेरी एकमात्र इच्छा यही है कि मैं आपके चरण-कमलों की भक्तिमय सेवा में स्थिर रहूँ, भले ही मुझे यहाँ बारम्बार जन्म क्यों न लेना पड़े (मुकुन्दमाला स्तोत्र 5) |

वृत्रासुर की भगवान से प्रार्थना: हे कमलनयन भगवान ! जैसे पक्षियों के पंखविहीन बच्चे अपनी माँ के लोटने तथा खिलाये जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं, जैसे रस्सियों से बंधे भूख से पीड़ित छोटे-छोटे बछड़े गाय दुहे जाने की प्रतीक्षा करते रहते हैं या जैसे वियोगनी पत्नी अपने प्रवासी  पति के वापस आने तथा सभी प्रकार से तुष्ट किये जाने के लिए लालायित रहती है, उसी प्रकार मै आपकी प्रत्यक्ष सेवा करने का अवसर पाने के लिए सदा उत्कंठित रहूँ | मेरा मन, मेरी चेतना तथा मेरा सर्वस्व सदैव आपके ही प्रति आसक्त रहे (SB.6.11.26)  |

भक्त की तुलसी देवी से प्रार्थना: भगवान श्री कृष्ण की प्रियतमा हे तुलसी देवी, मै आप को बारम्बार प्रणाम करता हूँ | मेरी इच्छा है कि मै श्री राधा-कृष्ण की सेवा प्राप्त करू | जो आपकी शरण लेता हे, उसकी समस्त मनोकामनाएँ पूरी हो जाती हैं | उसे आप वृंदावनवासी बना देती हैं | मेरी भी कामना है कि, मुझे वृन्दावन के कुञ्ज-वनों में निवास मिले जिससे मैं श्री राधा-कृष्ण की सुन्दर लीलाओं का सदैव अपने नेत्रों से दर्शन कर सकूँ | मेरा निवेदन है कि मुझे बृज-गोपियों की अनुचरी बना दीजिये या भक्ति का अधिकार दे कर मुझे अपनी दासी बना लीजिये | कृष्ण का यह अति दीन दास आपसे प्रार्थना करता है कि मैं सदा सर्वदा श्री राधा-गोविन्द के प्रेम में तैरता रहूँ |

हरे कृष्णा

दंडवत प्रणाम

आपका सेवक

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Comments

  • Hare Krsna Devotees,

    मनुष्य जीवन की सर्वोच्च सिद्धि भगवत-प्रेम प्राप्त करने के लिए प्रह्लाद महाराज षड-भक्ति का वर्णन करते हैं, जिसका पहला व महत्वपूर्ण अंग है- प्रार्थना करना अर्थात भगवान से अहैतुकी भक्ति के लिए सुन्दर-सुन्दर प्रार्थनाएँ करना | यहाँ सर्वश्रेष्ठ प्रार्थनाएँ के कुछ उदहारण हम सब के मार्गनिर्देशन के लिए दिए गए हैं |

    हम सब को भी किसी भी भौतिक इच्छाओं की कामना न करते हुए भगवान से इसी प्रकार की प्रार्थनाये करनी चाहिए तभी हम भगवान के चरण-कमलों में अपने मन व बुद्धि को स्थिर कर भगवत-प्रेम का विकास कर पायेगें और इस भव सागर को पार कर पाएंगे |

    हरे कृष्णा

    दंडवत प्रणाम

    आपका सेवक

  • HareKrishna..

    Very nice

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