भक्ति का मतलब
है सम्पूर्ण समर्पण
हर कार्य हो बस
प्रभु चरणों में अर्पण
न शंका न शक
न विचलन
न भटकन
बस प्रभु का
श्रवन
स्मरण
और कीर्तन
न मोह
न माया
न ही कोई
बंधन
नित्य प्रतिपल
बस प्रभु का
अभिनन्दन
उनकी उपस्थिति
का आभास
कराये
कण - कण
उनकी लीलाओं
का आस्वादन
उनके नाम
का भजन
उनके लिए
रुदन
उनके लिए
क्रंदन
व्याकुल हो
हर क्षण
उनके लिए
अंतर्मन
खुली आँखों से
दर्शन
स्वप्न में भी हो
उन्ही से मिलन
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