जैसे जैसे वंशी की, आवाज़ सुनते जा रहे हैं

जैसे जैसे वंशी की, आवाज़ सुनते जा रहे हैं

तेरी लीला के अनूठे, राज़ खुलते जा रहे हैं

तेरी लीला सामने, चलचित्र- सी दिखने लगी है

लेखनी भी कुछ अनोखी, दास्ताँ लिखने लगी है

तेरे गोप-ओ-गोपियों में, हम भी मिलते जा रहे हैं

जैसे जैसे वंशी की...........................................

एक तड़प है, एक कसक है, एक विरह की वेदना है

नयन कहते हैं प्रतिपल, अब तुम्हें ही देखना है

स्वप्न में देखा है तुमको, आँख मलते जा रहे हैं

जैसे जैसे वंशी की...........................................

तेरी राधा बनके नाचे, रास में होकर मगन

प्रीत की बढती गई, बढती गई, जैसे लगन

कृष्ण की भक्ति के रंग में हम भी रंगते जा रहे हैं 

जैसे जैसे वंशी की...........................................

 

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