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श्री नृसिंह कवच in Hindi .pdf

Sri Narasimha Kavacha ( श्री नृसिंह कवच )

 

श्री नृसिंह कवच- हिंदी अनुवाद के साथ - Corrected.pdf

 

Sri Narasimha Kavacha (श्री नृसिंह कवच -हिंदी अनुवाद के साथ)

  (1) अनुवाद- आज हम भगवान नृसिहं के कवच को पढने जा रहे हैं जो प्रहलाद महाराज जी ने भगवान की स्तुति के रूप में गाया था। यह कवच हर प्रकार के पुण्यों को प्रदान करता है तथा सभी उपद्रवों से मनुष्यों की रक्षा करता है।

(2) इस कवच का पाठ करते समय मनुष्य को भगवान नृसिंह, जो संपूर्ण देवताओं के स्वामी हैं और स्वर्ण के सिंहासन पर विराजमान है, का ध्यान करना चाहिए। इस प्रकार वो हर प्रकार की सम्पति एवं सुखों का उपभोग करके स्वर्गीय ग्रहों और मोक्ष तक प्राप्त कर लेता है।

(3) जिनका मुख विकराल है और जो तीन नेत्रों वाले हैं और शरद ऋतु के चंद्र के समान दीप्तिमान है, जिनके वाम  भाग में श्री लक्ष्मी शोभायमान है, सिद्ध पुरुषों के द्वारा जिन की उपासना होती है और उनका रूप सभी भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के सुखों का आश्रय है।

(4)  चार भुजाओं और कोमल शरीर वाले नृसिंह भगवान स्वर्ण कुंडल से आभूषित हैं। वक्षस्थल पर सुंदर फूलों का हार शोभायमान है। और उनकी भुजाएँ रत्नो से युक्त आभूषणों से सुशोभित हैं।

    

(5) जो तपे पिघले हुए सोने की तरह सुंदर दिव्य पीले वस्त्र शरीर पर धारण किए हैं। वे इंद्र के नेतृत्व वाले भौतिक लोकों तथा सांसारिक क्षेत्र से परे हैं और भौतिक तथा आध्यात्मिक अस्तित्व का मूल कारण है। नृसिंह भगवान के मुकुट पर जडित श्रेष्ठ मणि की दीप्ति से वे सुशोभित हैं।

(6) जिनके दोनो चरण अत्यंत सुंदर है और जिनकी स्तुति गरूड जी श्रद्धा के साथ विनम्र होकर करते हैं, वे नृसिंह भगवान, शंख, चक्र, गदा आदि शस्त्रों से शोभायमान है I

(7)   ऐसे आनंद-सागर श्रीलक्ष्मी-नृसिहं भगवान का ध्यान करके साधक को नृसिहं भगवान को अपने हृदय-कमल पर स्थापित करके इस मंत्र का पठन करना चाहिएI संसार की रक्षा के लिये प्रकट हुये नृसिंह भगवान जो सभी ग्रहों उपग्रह की रक्षा करते हैं, मेरे मस्तक की रक्षा करें।    

(8)  सर्वव्यापी और बलशाली नृसिहं भगवान जो स्तंभ से भी प्रकट हो जाते हैं। मेरे मस्तिष्क, मेरी वाणी और मेरे कर्मफलों से मेरी रक्षा करें। सूर्य के समान अग्नि जैसे नेत्रों वाले नृसिहं भगवान मेरे नेत्रों की रक्षा करें।

 

(17) मंत्रों को गति प्रदान करने वाले भगवान मेरी सब दिशाओं से रक्षा करें। हे महावीर! नृसिंह भगवान, महाउग्र रूप से पूर्व दिशा में और दक्षिण-पूर्व दिशा में जिसकी अध्यक्षता अग्नि ने की है, मेरी रक्षा करें। हे महाविष्णु भगवान दक्षिण दिशा में मेरी रक्षा करें और महाज्वाला की चमक वाले नरसिम्हा भगवान दक्षिण-पश्चिम दिशा में मेरी रक्षा करें।

(18) हे सर्वेश्वर पश्चिम दिशा में मेरी रक्षा करें और सभी तरफ मुख धारण करने वाले भगवान, कृपया मुझे हर दिशा से बचाए। भगवान नृसिंह उत्तर-पश्चिम दिशा से मेरी रक्षा करें जो वायु द्वारा नियंत्रित है। भगवान नृसिंह उत्तर दिशा से मेरी रक्षा करें, जहाँ सोम (चंद्रमा) रहता है। 

(19) सर्व मंगल करने वाले नृसिंह भगवान उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा जो सूर्य-देवता की दिशा है, से मेरी रक्षा करें। संसार के सर्व-कारणों के कारण, भगवान नृसिंह मृत्यु के भय से मेरी रक्षा करें। मेरी इस भौतिक संसार में जन्म तथा मृत्यु के चक्र से मेरी रक्षा करें।

 

(20) प्रहलाद के मुख से महिमा वंदित किया गया इस कवच का यदि मनुष्य भक्ति भाव से प्रतिदिन पाठ करें तो वह मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।

(21) इस कवच के पठन से या श्रवण से मनुष्य पुत्रवान, धनवान और दीर्घायु हो जाता है और इस संसार में जो भी इच्छा करता है, उसे वह बिना किसी संदेह के प्राप्त करता है।

(22) इस कवच का पाठ करने वाला मनुष्य जो विजयी होने की इच्छा रखता है, सर्वत्र विजय प्राप्त करता है। वह सभी ग्रहों ,पृथ्वी, अंतरिक्ष और दिव्य लोकों में सभी प्रकार के प्रभावों का निवारण कर सकता है।

(23) यह कवच, बिच्छू और सर्पदंश के जहरीले विष के प्रभाव को हरने वाला है तथा गुह्यम्-राक्षस, ब्रहम-राक्षस, भूतों और यक्षों को दूर भगाता है।

(24) कोई मनुष्य अपनी बाँह पर यह सर्व शुभ प्रार्थना लिख ​​सकता है या इसे भोज्यजपत्र या एक ताड़ के पत्ते में लिखकर इस कवच को भुजा में बांधने से उसके सभी कार्य परिपूर्ण हो जाते हैं।

(25) दिन में एक या तीन बार संध्या में जो कोई इस नृसिंह कवच का पठन या श्रवण करता है वह परम योग्यता प्राप्त करके देवों, मनुष्यों और असुरों पर आज्ञामात्र से विजय प्राप्त करता है।  

(9) अनुवाद- श्रेष्ठ ऋषियों की स्तुति के द्वारा प्रसन्न रहने वाले नृसिहं भगवान मेरे कानों और मेरी स्मृति की रक्षा करें। सिंह की नासिका वाले भगवान नृसिहं मेरी नासिका की रक्षा करें। भाग्य की देवी लक्ष्मी जी को अति प्रिय मुख वाले नृसिहं भगवान मेरे मुख की रक्षा करें।

(10) संपूर्ण विद्या और सभी विज्ञानों के अधिपति नृसिंह भगवान मेरी स्वाद की इन्द्रिय जीह्वा की रक्षा करें। प्रहलाद महाराज के द्वारा वंदित और पूर्णिमा के चंद्रमा के मुख समान तेजस्वी भगवान नृसिंह मेरे चेहरे की रक्षा करें। 

(11) हे भगवान नृसिंह मेरे कंठ की रक्षा करें। संसार के भार को ग्रहण करने वाले और अद्भुत चमत्कार करने वाले दिव्य अस्त्रों से सुशोभित भगवान नृसिंह मेरी भुजाओं की रक्षा करें।

(12) देवताओं को वरदान देने वाले भगवान नृसिंह मेरे हाथों की रक्षा करें। हे नृसिंह भगवान आप मेरी चारों ओर से रक्षा करें। योगियों के हृदय कमल में निवास करने वाले भगवान श्री हरि मेरे हृदय की रक्षा करें।

 

(13) हिरण्यकशिपु की छाती और उदर को चीरने वाले भगवान नृसिंह भगवान मेरे मध्य भाग कमर की रक्षा करें। जिनकी नाभि से उत्पन्न ब्रहमाजी के द्वारा उनकी स्तुति होती है। हे भगवान नृसिंह मेरी नाभि की रक्षा करें।

(14) जिनकी कटि भाग में करोड़ों ब्रह्मांड है, ऐसे भगवान नृसिंह मेरे कटि भाग की रक्षा करें। गोपनीय मंत्र में गुप्त रूप से निवास करने वाले भगवान नृसिंह मेरे गुप्त भाग की रक्षा करें।

(15) भगवान नृसिंह जो मन की तरह वेगवान और मूल कामदेव हैं, मेरे जांघों की रक्षा करें। आधा मनुष्य और आधा सिंह रूप में प्रकट होकर पृथ्वी के भार का निवारण करने वाले भगवान नृसिंह मेरी जांघों की और घुटनों की रक्षा करें।

(16) इंद्र को स्वर्गीय ऐश्वर्य प्रदान करने वाले भगवान नृसिंह मेरे पैरों की रक्षा करें। मनुष्य और सिंह के संयुक्त रूप में सर्वोच्च नियंत्रक और सहस्र शिरों वाले सर्वोच्च भोगकर्ता मेरे पूरे शरीर की हर तरफ से और हर तरह से रक्षा करें।

 

 

 

 

 

(26) इस कवच का जो मनुष्य शुद्ध मन से स्वयं ३२,००० बार पाठ करता है तो यह मंत्र सिद्ध हो जाता है। उसका मंगल होता है, वह सभी शुभ कार्यों को प्राप्त करता है और भौतिक सुख तथा  मुक्ति को पाता है।

(27) यह कवच सभी मंत्रो का राजा है। इसे अभिमंत्रित करके इसकी भस्म का तिलक लगाने मात्र से मनुष्य की ग्रह पीड़ा दूर हो जाती है और अन्य सभी मंत्रों का जाप करने का फल केवल इस मंत्र के जाप द्वारा  प्राप्त हो जाता है।

(28) शरीर को तिलक लगाकर, जल से आचमन करके, इस कवच का तीन  बार पाठ करने से सभी अशुभ ग्रहों के डर दूर हो जाते हैं।

(29) नृसिंह भगवान का ध्यान करते हुए यह कवच पढने से और रोगी को अभिमंत्रित जल पिलाने से उसके उदर के रोग तथा अन्य सभी प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं।

(30) ज्यादा क्या कहें, इस मंत्र का जाप करने वाला मनुष्य स्वयं नृसिंह भगवान के अंश समान हो जाता है। छ: मास तक नियम पूर्वक कवच के पाठ करने के प्रभाव से इच्छित फल की प्राप्ति होती है। यह कवच संपूर्ण रहस्यों का तत्व सार है। जो जीव श्रद्धापूर्वक इस कवच का पठन या श्रवण करता है वह सभी मनवांछित इच्छाओं को प्राप्त करता है और अंत काल में नृसिंह तत्व को प्राप्त करता है।

 

(31) भगवान नरसिंह जोर से दहाड़ते हैं और दूसरे सभी जीवों की शक्ति के कारण हैं। वे अपनी अनेक भुजाओं के द्वारा, राक्षसों को दहलाकर उनका संहार करते हैं। वे दिति के राक्षस पुत्रों को हमेशा पृथ्वी और उच्च ग्रहों में से बाहर खदेडकर, उन्हें डराकर नीचे लोकों के मे फेंक देतें हैं। वे बहुत क्रोध के साथ दहाड़ते हुये सभी दिशाओं में राक्षसों का संहार कर देते हैं। वे अपने असीमित हाथों से इस ब्रह्मांड का पालन, संरक्षण और पोषण करते हैं। मैं श्री नृसिंह भगवान के चरणों में, श्रद्धापूर्वक नमस्कार  करता हूँ, जिन्होंने एक दिव्य नरसिंह रूप धारण किया है।

 

इस प्रकार ब्रह्माण्ड पुराण में प्रह्लाद महाराज द्वारा वन्दित नरसिंह-कवच का पाठ पूर्ण हुआ।

 

ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ॥

ॐ हे क्रुद्ध एवं शूर-वीर महाविष्णु, आपकी ज्वाला एवं ताप चारों दिशाओं में फैली हुई है।
हे नरसिंहदेव प्रभु, आपका चेहरा सर्वव्यापी है, तुम मृत्यु के भी यम हो और मैं आपके समक्ष आत्मसमर्पण करता हूँ।

 

 

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