Melody 10 - Learn Harmonium Chords for Hare Krishna Mantra

Views: 2848
Get Embed Code
Simple chords for beginners to start leading kirtans without any difficulty

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT

Comments

  • पद्म पुराण में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा राम नाम की महिमा का वर्णन अर्जुन के प्रति निम्न प्रकार है:~

    अथ श्रीपद्मपुराण वर्णित रामनामामृत स्त्रोत श्रीकृष्ण अर्जुन संवाद~

    अर्जुन उवाच~

    १)
    भुक्तिमुक्तिप्रदातृणां सर्वकामफलप्रदं ।
    सर्वसिद्धिकरानन्त नमस्तुभ्यं जनार्दन ॥

    अर्थ:~ सभी भोग और मुक्ति के फल दाता, सभी कर्मों का फल देने वाले, सभी कार्य को सिद्ध करने वाले जनार्दन मैं आपको नमन करता हूं।

    २)
    यं कृत्वा श्री जगन्नाथ मानवा यान्ति सद्गतिम् ।
    ममोपरि कृपां कृत्वा तत्त्वं ब्रहिमुखालयम्।।

    अर्थ:~हे श्रीजगन्नाथ! मनुष्य ऐसा क्या करें कि उसे अंत में सद्गति हो? वह तत्व क्या है? मेरे पर कृपा करके अपने ब्रह्ममुख से बताइए।

    श्रीकृष्ण उवाच~

    १)
    यदि पृच्छसि कौन्तेय सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ।
    लोकानान्तु हितातार्थाय इह लोके परत्र च ॥

    अर्थ:~ हे कुंती पुत्र! यदि तुम मुझसे पूछते हो तो मैं सत्य सत्य बताता हूं, इस लोक और परलोक में हित करने वाला क्या है।

    २)
    रामनाम सदा पुण्यं नित्यं पठति यो नरः ।
    अपुत्रो लभते पुत्रं सर्वकामफलप्रदम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम सदा पुण्य करने वाला नाम है, जो मनुष्य इसका नित्य पाठ करता है उसे पुत्र लाभ मिलता है और सभी कामनाएं पूर्ण होती है।

    ३)
    मङ्गलानि गृहे तस्य सर्वसौख्यानि भारत।
    अहोरात्रं च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~हे भारत! उसके घर में सभी प्रकार के सुख और मंगल विराजित हो जाते हैं, जिसने दिन-रात श्रीराम नाम के दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया।

    ४)
    गङ्गा सरस्वती रेवा यमुना सिन्धु पुष्करे।
    केदारेतूदकं पीतं राम इत्यक्षरद्वयम् ॥

    अर्थ~जिसने श्रीरामनाम के इन दो अक्षरों का उच्चारण कर लिया उसने श्रीगंगा, सरस्वती, रेवा, यमुना, सिंधु, पुष्कर, केदारनाथ आदि सभी तीर्थों का स्नान, जलपान कर लिया।

    ५)
    अतिथेः पोषणं चैव सर्व तीर्थावगाहनम् ।
    सर्वपुण्यं समाप्नोति रामनाम प्रसादतः ।।

    अर्थ:~उसने अतिथियों का पोषण कर लिया, सभी तीर्थों में स्नान आदि कर लिया, उसने सभी पुण्य कर्म कर लिए जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    ६)
    सूर्यपर्व कुरुक्षेत्रे कार्तिक्यां स्वामि दर्शने।
    कृपापात्रेण वै लब्धं येनोक्तमक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~उसने सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में स्नान कर लिया और कार्तिक पूर्णिमा में कार्तिक जी का दर्शन करके कृपा प्राप्त कर ली जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    ७)
    न गंङ्गा न गया काशी नर्मदा चैव पुष्करम् ।

    सदृशं रामनाम्नस्तु न भवन्ति कदाचन।।

    अर्थ:~ ना तो गंगा, गया, काशी, प्रयाग, पुष्कर, नर्मदादिक इन सब में कोई भी श्रीराम नाम की महिमा के समक्ष नहीं हो सकते।

    ८)
    येन दत्तं हुतं तप्तं सदा विष्णुः समर्चितः।
    जिह्वाग्रे वर्तते यस्य राम इत्यक्षरद्वयम्।।

    अर्थ:~उसने भांति-भांति के हवन, दान, तप और विष्णु भगवान की आराधना कर ली, जिसकी जिह्वा के अग्रभाग पर श्रीराम नाम के दो अक्षर विराजित हो गए।

    ९)
    माघस्नानं कृतं येन गयायां पिण्डपातनम् ।
    सर्वकृत्यं कृतं तेन येनोक्तं रामनामकम्।।

    अर्थ:~ उसने प्रयागजी में माघ का स्नान कर लिया, गयाजी में पिंडदान कर लिया उसने अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर लिया जिसने श्रीराम नाम का उच्चारण कर लिया।

    १०)
    प्रायश्चित्तं कृतं तेन महापातकनाशनम् ।
    तपस्तप्तं च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने अपने सभी महापापों का नाश करके प्रायश्चित कर लिया और तपस्या पूर्ण कर ली जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षर का उच्चारण कर लिया।

    ११)
    चत्वारः पठिता वेदास्सर्वे यज्ञाश्च याजिताः ।
    त्रिलोकी मोचिता तेन राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने चारों वेदों का सांगोपांग पाठ कर लिया सभी यज्ञ आदि कर्म कर लिए उसने तीनों लोगों को तार दिया जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षर का पाठ कर लिया।

    १२)
    भूतले सर्व तीर्थानि आसमुद्रसरांसि च।
    सेवितानि च येनोक्तं राम इत्यक्षरद्वयम् ।।

    अर्थ~उसने भूतल पर सभी तीर्थ, समुद्र, सरोवर आदि का सेवन कर लिया जिसने श्रीराम नाम के दो अक्षरों का जाप कर लिया।

    अर्जुन उवाच~

    १)
    यदा म्लेच्छमयी पृथ्वी भविष्यति कलौयुगे ।
    किं करिष्यति लोकोऽयं पतितो रौरवालये ।।

    अर्थ~भविष्य में कलयुग आने पर पूरी पृथ्वी मलेच्छ मयी हो जाएगी इसका स्वरूप रौ-रौ नर्क की भांति हो जाएगा तब जीव कौन सा साधन करके परम पद पाएगा?

    श्रीकृष्ण उवाच~

    १)
    न सन्देहस्त्वया काय्र्यो न वक्तव्यं पुनः पुनः ।
    पापी भवति धर्मात्मा रामनाम प्रभावतः ।।

    अर्थ~यह संदेह करने योग्य नहीं है, जैसे संदेह व्यर्थ है वैसे बार-बार वक्तव्य देना भी व्यर्थ है। कैसा भी पापी हो श्रीराम नाम के प्रभाव से वह धर्मात्मा हो जाता है

    २)
    न म्लेच्छस्पर्शनात्तस्य पापं भवति देहिनः ।
    तस्मात्प्रमुच्यते जन्तुर्यस्मरेद्रामद्वचत्तरम् ।।

    अर्थ~उसे मलेच्छ के स्पर्श का भी पाप नहीं होता, मलेच्छ संबंधित पाप भी छूट जाते हैं जो श्रीराम नाम के दो अक्षरों का जाप करते हैं।

    ३)
    रामस्तत्वमधीयानः श्रद्धाभक्तिसमन्वितः।
    कुलायुतं समुद्धृत्य रामलोके महीयते ।।

    अर्थ~जो श्रीराम से संबंध रखने वाले स्त्रोत का पाठ करते हैं तथा जिनकी भक्ति, विश्वास और श्रद्धा श्रीराम में सुदृढ़ है। वह लोग अपने दस हज़ार पीढ़ियों का उद्धार करके श्रीराम के लोक में पूजित होते है।

    ४)
    रामनामामृतं स्तोत्रं सायं प्रातः पठेन्नरः ।
    गोघ्नः स्त्रीबालघाती च सर्व पापैः प्रमुच्यते ।।

    अर्थ~जो सुबह शाम इस रामनामामृत स्त्रोत का पाठ करते हैं वे गौ हत्या, स्त्री और बच्चों को हानि पहुंचाने वाले पाप से भी बच कर मुक्त हो जाते हैं।

    (इति श्रीपद्मपुराणे रामनामामृत स्त्रोते श्रीकृष्ण अर्जुन संवादे संपूर्णम्)


    श्रीमद् वाल्मीकियानंद रामायण से कुछ श्लोक उद्धत कर रहा हूं जहां भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से श्री राम नाम की महिमा कही है:~

    1) जो मंत्र भगवान श्री राम ने हनुमान जी को दिया था उसी मंत्र का वर्णन करते हुए श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं:~
    श्री कृष्ण उवाच युधिष्ठिर के प्रति~

    रामनाम्नः परं नास्ति मोक्ष लक्ष्मी प्रदायकम्।
    तेजोरुपं यद् अवयक्तं रामनाम अभिधियते।।

    (श्रीमद् वाल्मीकियानंद रामायण~८/७/१६)

    श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं किस शास्त्र में ऐसा कोई भी मंत्र वर्णित नहीं है जो श्रीराम के नाम के बराबर हो जो ऐश्वर्य (धन) और मुक्ति दोनों देने में सक्षम हो। श्रीराम का नाम स्वयं ज्योतिर्मय नाम कहा गया है, जिसको मैं भी व्यक्त नहीं कर सकता।

    2)

    मंत्रा नानाविधाः सन्ति शतशो राघवस्य च।

    तेभ्यस्त्वेकं वदाम्यद्य तव मंत्रं युधिष्ठिर।।

    श्रीशब्धमाद्य जयशब्दमध्यंजयद्वेयेनापि पुनःप्रयुक्तम्।
    अनेनैव च मन्त्रेण जपः कार्यः सुमेधसा।

    ( श्रीमद् वाल्मीकियानंद रामायण, 9~7.44,45a,46a)

    वैसे तो श्रीराघाव के अनेक मन्त्र हैं, किन्तु युधिष्ठिर उनमें से एक उत्तम मन्त्र मैं तुमको बतलाता हूँ । पूर्वमें श्रीराम शब्द, मध्यमें जय शब्द और अन्तमें दो जय शब्दोंसे मिला हुआ (श्रीराम जय राम जय जय राम) राममन्त्र। बुद्धिमान जनों को सिर्फ इसी मंत्र का जाप करना चाहिए।

    ~आदि पुराण में तो बहुत सारा वर्णन दे रखा है लेकिन वहां से केवल एक श्लोक ही उदित कर रहा हूं।

    राम नाम सदा प्रेम्णा संस्मरामि जगद्गुरूम्।
    क्षणं न विस्मृतिं याति सत्यं सत्यं वचो मम ॥

    (श्री आदि-पुराण ~ श्री कृष्ण वाक्य अर्जुन के प्रति)

    मैं ! जगद्गुरु श्रीराम के नाम का निरंतर प्रेम पूर्वक स्मरण करता रहता हूँ, क्षणमात्र भी नहीं भूलता हूँ । अर्जुन मैं सत्य सत्य कहता हूँ ।

    ~एक श्लोक शुक संहिता से भी उदित कर रहा हूं।

    रामस्याति प्रिय नाम रामेत्येव सनातनम्।
    दिवारात्रौ गृणन्नेषो भाति वृन्दावने स्थितः ।।

    (श्री शुक संहिता)

    श्री राम नाम भगवान राम को सबसे प्रिय नाम है और यह नाम भगवान राघव का शाश्वत नाम है। श्रीराम के इस शाश्वत नाम का जप करने से भगवान कृष्ण वृंदावन में सुशोभित होते हैं।

    ऐसे अनेकों अनेक श्लोक और लिख सकता हूं लेकिन विस्तार भय के कारण आगे नहीं लिख रहा हूं।

    और अंत में एक मनुस्मृति के श्लोक से अपनी वाणी को विराम देता हूं:~

    सप्तकोट्यो महामन्त्राश्चित्तविभ्रमकारकाः ।
    एक एव परो मन्त्रो 'राम' इत्यक्षरद्वयम् ॥

    (मनुस्मृति)

    सात करोड़ महामंत्र हैं, वे सब के सब आपके चित्तको भ्रमित करनेवाले हैं। यह दो अक्षरोंवाला 'राम' नाम परम मन्त्र है। यह सब मन्त्रोंमें श्रेष्ठ मंत्र है । सब मंत्र इसके अन्तर्गत आ जाते हैं। कोई भी मन्त्र बाहर नहीं रहता। सब शक्तियाँ इसके अन्तर्गत हैं।

    (यह श्लोक सारस्त्व तंत्र में भी पाया जाता है)

    अवध के राजदुलारे श्रीरघुनंदन की जय❤️❤️
This reply was deleted.
E-mail me when people leave their comments –