Wish you Happy Rama Navami !!!

ISKCON Desire Tree wishes you a Happy Rama Navami

Lord Sri Ramacandra is a powerful incarnation of the Supreme Personality of Godhead as an ideal king. He appeared in the Treta-yuga, more than two million years ago.

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Comments

  • श्रीमद् आदिपुराण में श्रीकृष्ण द्वारा श्रीराम नाम की महिमा ~

    श्रीकृष्ण उवाच अर्जुन के प्रति~

    १)
    रामनाम सदा ग्राहो रामनाम प्रियः सदा ।
    भक्तिस्तस्मै प्रदातव्या न च मुक्तिः कदाचन ।।

    अर्थ:~हे प्रिय! जो श्रीराम नाम का उच्चारण करते हैं तथा जिनको श्रीराम नाम सदा प्रिय लगता है। उनको मैं स्वयं भक्ति प्रदान करता हूं कभी मुक्ति प्रदान नहीं करता।

    २)
    गायन्ति रामनामानि वैष्णवाश्च युगे युगे ।
    त्यक्त्वा च सर्वकर्माणि धर्माणि च कपिध्वज ।।

    अर्थ:~वैष्णव जन श्रीराम नाम का गुणगान प्रतेक युग में करते हैं। हे कपिध्वज! वे सभी कर्मों और सभी धर्मों का त्याग करके श्रीराम नाम को जपते हैं।

    ३)
    रामनामैव नामैव रामनामैव केवलम् ।
    गतिस्तेषां गतिस्तेषां गतिस्तेषां सुनिश्चितम् ।।

    अर्थ:~जिनको सिर्फ राम नाम और सिर्फ राम नाम का ही आधार है, उनकी सुगति तीनों काल में सुनिश्चित बनी रहती है।

    ४)
    श्रद्धया हेलया नाम वदन्ति मनुजा भुवि ।
    तेषां नास्ति भयं पार्थ रामनामप्रसादतः॥

    अर्थ:~हे पार्थ! इस भूमि पर श्रद्धा से अथवा निंदा से कैसे भी मनुष्य यदि श्रीराम का नाम लेता है तो उसे श्रीराम की कृपा से कभी कोई भय नहीं रहता।

    ५)
    रामनाम रता यत्र गच्छन्ति प्रेम सम्प्लुताः ।
    भक्तानामनुगच्छन्ति मुक्तयः स्तुतिभिस्सह ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम के प्रेम रस में डूबे हुए भक्त जहां भी जाते हैं, वहां मुक्ति उनकी स्तुति करते हुए पीछे पीछे चलती हैं।

    ६)
    मानवा ये सुधासारं रामनाम जपन्ति हि ।
    ते धन्या मृत्यु संत्रास रहिता रामवल्लभाः ।।

    अर्थ:~जो मनुष्य इस सुधासागर श्रीराम नाम को निरंतर जप करते हैं, उनको मृत्यु का कभी भय नहीं रहता क्योंकि वे श्रीराम के दुलारे बन जाते हैं।

    ७)
    नामैव परमा मुक्तिर्नामैव परमा गतिः ।
    नामैव परमा शान्तिर्नामैव परमा मतिः ।।

    अर्थ:~ श्री रामनाम ही परम मुक्ति, परम गति, परम शांति और परम गति देता है।

    ८)
    नामैव परमा भक्तिर्नामैव परमा धृतिः ।
    नामैव परमा प्रीतिर्नामैव परमा स्मृतिः ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही परम भक्ति है, नाम ही परम धैर्य है, नाम ही सर्वोच्च प्रेम है और नाम ही सर्वोच्च स्मृति है।

    ९)
    नामै व परमं पुण्यं नामै व परमं तपः ।
    नामैव परमो धर्मो नामैव परमो गुरुः ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम लेना ही परम पुण्य है, परम तप है, परम धर्म है और उनका नाम ही परम गुरु है।

    १०)
    नामैव परमं ज्ञानं नामैव चाखिलं जगत् ।
    नामैव जीवनं जन्तोर्नामैव विपुलं धनम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही अखिल लोक में परम ज्ञान है, उन्हीं का नाम मनुष्य का जीवन है और जापकों का श्रेष्ठ धन है।

    ११)
    नामैव जगतां सत्यं नामैव जगतां प्रियम् ।
    नामैव जगतां ध्यानं नामैव जगतां परम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही जगत में सत्य है, उनका नाम ही प्रिय है, उनका नाम ही ध्यान करने योग्य है और जगत में सबसे परम उन्हीं का नाम है।

    १२)
    नामैव शरणं जंतोर्नामैव जगतां गुरुः ।
    नामैव जगतां बीजं नामैव पादनं परम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही जगत की शरणागति है ,जगतगुरु है, इस सृष्टि का बीज है और परम पद प्रदान करने वाला है।

    १३)
    रामनामरता ये च ते वै श्रीरामभावकाः ।
    तेषां संदर्शनादेव भवेद्भकि रसात्मिका ।।

    अर्थ:~जो निरंतर श्रीराम नाम का जप करते हैं वे श्रीराम के प्रति प्रेम भावना से सराबोर हो जाते हैं। ऐसे रसिकों के दर्शन मात्र से हृदय विदारक भक्ति उत्पन्न हो जाती है।

    १४)
    कामादि गुण संयुक्त नाममावैक बान्धवाः ।
    प्रोतिं कुर्वन्ति ते पार्थ न तथा जित षड्गुणाः ।।

    अर्थ:~हे पार्थ! काम आदि गुण सब संयुक्त रुप से श्रीराम नाम को अपना स्वामी मानते हैं और जो नाम जप नहीं करते वे काम आदि छः गुणों पर कभी विजय नहीं प्राप्त कर पाते।

    १५)
    तं देशं पतितं मन्ये यत्र नास्ति सु वैष्णवः ।
    रामनाम परो नित्यं परानन्द विवर्द्धनः ।।

    अर्थ:~वह राष्ट्र पतित हो गया है जहां परम नित्य और सबके आनंद का वर्धन करने वाला श्रीराम नाम जापक वैष्णव नहीं है।

    १६)
    रामनाम रता जीवा न पतन्ति कदाचन ।
    इन्द्राद्दास्सम्पतन्त्यन्ते तथा चान्येऽधिकारिणः ॥

    अर्थ:~जो लोग श्रीराम के नाम के प्रति समर्पित हैं, वे कभी नीचे नहीं गिरते, इंद्र आदि उनके सेवक और अन्य अधिकारी भी नीचे गिर जाते हैं।

    १७)
    राम स्मरणमात्रेण प्राणान्मुञ्चन्ति ये नराः ।
    फलं तेषां न पश्यामि भजामि तांश्च पार्थिव ।।

    अर्थ:~जो श्रीराम का स्मरण करते हुए अपने प्राणों का त्याग करते हैं, मैं स्वयं उनके फल को नहीं जानता अपितु मैं स्वयं उनको नित्य भजता हूं।

    १८)
    नाम स्मरणमात्रेण नरो याति निरापदम् ।
    ये स्मरन्ति सदारामं तेषां ज्ञानेन किं फलम् ।।

    अर्थ:~जो मनुष्य श्रीराम नाम का स्मरण मात्र क्षण भर के लिए कर लेते हैं वे परम पद को प्राप्त हो जाते हैं और जो सदा श्रीराम नाम में ही रमण करते हैं उनके फल को तो मैं स्वयं नहीं जानता।

    १९)
    नामैव जगतां बन्धुर्नामेव जगतां प्रभुः ।
    नामैव जगतां जन्म नामैव सचराचरम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही संपूर्ण जगत का मित्र एवं संपूर्ण जगत का स्वामी है। उनके नाम से ही इस जगत का प्राकट्य होता है और संपूर्ण जड़ चेतन वस्तु नाम के ही प्रभाव से है।

    २०)
    नामैव धार्यते विश्वं नामैव पाल्यते जगत् ।
    नाम्नैव नीयते नाम नामैव भुञ्चते फलम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही इस संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण करता है एवं उसका पालन करता है। उनके नाम से ही नाम जप किया जाता है और उनके नाम से ही नाम का आनंद फल मिलता है।

    २१)
    नामैव गृह्यते नाम गोप्यं परतरात्परम् ।
    नामैव कार्यते कर्म नामैव नीयते फलम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही ग्रहण करने योग्य परम तत्व है, नाम ही समस्त कर्मों को निर्धारित करता है और समस्त फल देता है।


    २२)
    नाम्नैव चाङ्गशास्त्राणां तात्पर्यार्थमुत्तमम् ।
    नामैववेद सारांश सिद्धान्तं सर्वदा शिवम् ॥

    अर्थ:~श्रीराम का नाम ही सभी शास्त्रों और उनके अंगों का सर्वोत्तम अर्थ है। श्रीराम का नाम ही सभी सिद्धांतों का सार और सदैव शुभ फल देने वाला है।

    २३)
    नाम्नैव नीयते मेघा परे ब्रह्मणि निश्चला ।
    नाम्नैव चञ्चलं चित्तं मनस्तस्मिन्प्रलीयते ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम से ही मनुष्य की बुद्धि उन परम ब्रह्म में निश्चल हो जाती है और श्रीराम नाम के बल से ही चंचल चित्त भी उन में विलीन हो जाता है।

    २४)
    श्रीरामस्मरणेनैव नरो याति पराङ्गतिम् ।
    सत्यं सत्यं सदा सत्यं न जाने नामजं फलम् ।।

    अर्थ:~श्री राम नाम के मात्र स्मरण से मनुष्य परम पद को प्राप्त हो जाता है। मैं सत्य सत्य और सदैव सत्य कहता हूं मैं स्वयं श्रीराम नाम के फल को नहीं जानता।

    २५)
    रामनाम प्रभावोऽयं सर्वोत्तम उदाहृतः ।
    समासेन तथा पार्थ वक्ष्येऽहं तव हेतवे ।।

    अर्थ:~हे पार्थ श्रीराम नाम का प्रभाव सर्वोपरी कहा गया है, मैं संक्षेप में कहता हूं उसे सुनो।

    २६)
    न नाम सदृशं ध्यानं न नाम सदृशो जपः ।
    न नाम सदृशस्त्यागो न नाम सदृशी गतिः ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम तुल्य ना कोई ध्यान है, ना कोई जप है, ना कोई त्याग है और ना कोई गति है।

    २७)
    न नाम सदृशी मुक्तिर्न नाम सदृशः प्रभुः ।
    ये गृह्णन्ति सदा नाम त एवं जित षड्गुणाः ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम के तुल्य ना तो कोई मोक्ष है और ना कोई देवता इनके नाम के बराबर है। जिसने निरंतर श्रीराम नाम का जप कर लिया उसने कामआदि समेत छः गुणों को जीत लिया।

    २८)
    कुर्वन् वा कारयन्वाऽपि रामनामजपॅंस्तथा ।
    नोत्वा कुल सहस्राणि परंधामामि गच्छति ।।

    अर्थ:~जो स्वयं श्रीराम नाम का जप करते हैं और दूसरों को भी करवाते हैं, वे अपनी हजारों पीढ़ियों को परमधाम पहुंचा देते हैं।

    २९)
    नाम्नैव नीयते पुण्यं नाम्नैव नीयते तपः ।
    नाम्नेव नीयते धर्मो जगदेतच्चराचरम् ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम से ही पुण्य होता है, उनके नाम से ही तप होता है और जगत में धर्म का पालन होता है।

    ३०)
    रामनाम प्रभावेण सर्व सिद्धेश्वरो भवेत् ।
    विश्वासेनैव श्रीरामनाम जाप्यं सदा बुधैः ।।

    अर्थ:~श्रीराम नाम के ही प्रभाव से व्यक्ति सभी सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है इसीलिए विश्वास पूर्वक बुद्धिमान जनों को श्रीराम नाम का जप करना चाहिए।

    ३१)
    शान्तो दान्तः क्षमाशीलो रामनाम परायणः ।
    असंख्य कुलजानां वैतारणे सर्वदा क्षमः ॥

    अर्थ:~जो शांतिपूर्वक, आत्मनियंत्रित और क्षमाशील होकर श्रीराम नाम को धारण करता है, वह अपने असंख्य कुल को वैतरणी के पार करने में सक्षम हो जाता है।

    ३२)
    ये नाम युक्ता विचरन्ति भृमौत्यक्त्वाऽर्थकामान्विषयश्च भोगान् ।
    तेषां च भक्तिः परमा च निष्ठा सदैव शुद्धा सुभगा भवन्ति ।।

    अर्थ:~जो श्रीराम नाम से युक्त होते हैं वह अपने धन की कामनाओं और वस्तुओं के सुख की चिंता किए बिना पृथ्वी पर विचरण करते हैं। वे अपनी भक्ति और अपने प्रचंड निष्ठा के चलते हमेशा पवित्र और भाग्यशाली रहते हैं।

    ३३)
    स्मरद्दो रामनामानि त्यक्त्वा कर्माणिचाखिलम् ।
    स पूतः सर्वपापेभ्यः पद्मपत्रमिवाम्भसा ।।

    अर्थ:~जो सभी कर्मों का त्याग करके श्रीराम नाम का स्मरण करते हैं वह सभी पापों से मुक्त हुए रहते हैं, जैसे कमल को जल स्पर्श नहीं करता।

    ३४)
    त्यक्त्वा श्रीरामनामानि कर्म कुर्वन्ति येऽधमाः ।
    तेषां कर्माणिबन्धाय न सुखाय कदाचन ।।

    अर्थ:~जो मूर्ख श्री रामनाम को त्याग कर के अन्य कर्म में रुचि लेते हैं उनके कर्म सुख का नहीं अपितु बंधन का कारण बनते हैं।

    ३५)
    यस्य चेतसि श्रीराममहामाङ्गलिकं परम् ।
    स जित्वा सकलॉंल्लोकान् परंधाम परिव्रजेत् ॥

    अर्थ:~जिनके चित्त में सदैव श्रीराम नाम का परम मंगल धाम विराजित है वे समस्त लोकों को लांघ करके परमधाम में विराजित हो जाते हैं।

    ७०)
    रामनाम जपाज्जीवा अनायासेन मंसृतिम् ।
    तरन्त्येव तरन्त्येव तरन्त्येव सुनिश्चितम् ॥

    अर्थ:~श्रीरामनाम जप से समस्त जीव संसार सागर को तर जायेंगे, सन्देह बिना पार उतरेंगे। मैं बारम्बार कहता हुं निश्चय करके मानना।


    अर्जुन उवाच~

    ७१)
    भवत्येव भवत्येव भवत्येव महामते ।
    सर्वपाप परिव्याप्तास्तरन्ति नामबान्धवाः ।।

    अर्थ:~हे महात्मा!ये बात सर्वथा, सर्वथा और सर्वथा है, चाहे कैसा भी पापी हो श्रीराम नाम के बल से वो समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

    ७२)
    नमोस्तु नामरूपाय नमोस्तु नामजल्पिने ।
    नमोस्तु नाम सान्ध्याय वेदवेद्याय शाश्वते ।।

    अर्थ:~श्रीरामनाम के परात्पर स्वरूप को मेरा नमस्कार है, श्रीनाम जापक को मेरा दंडवत् है, परम फलरूप श्रीरामनाम के लिए मेरा मति है की सकल वेद के सार श्रीरामनाम को मेरा प्रणाम हैं।


    ७३)
    नमोस्तु नामनित्याय नमो नाम प्रभाविने ।
    नमोस्तु नामशुद्धाय नमो नाममयाय च ।।

    अर्थ:~परम नित्य, महाप्रभाव संयुक्त, परम शुद्ध सर्व शक्तिमान श्रीरामनाम को मेरा पुनः पुनः प्रणाम है।

    ७४)
    श्रीरामनाम माहात्म्यं यः पठेच्छुद्धयान्वितः ।
    स याति परमं स्थानं रामनाम प्रमादतः ।।

    अर्थ:~श्रीरामनाम का माहात्म्य जो श्रद्धा समेत सुनते, पढ़ते या गाते हैं, वो सज्जन श्रीरामनाम प्रताप से परमधाम प्राप्त करते हैं।

    ७५)
    रामनामार्थमुत्कृष्टं पवित्रं पावनं परम् ।
    ये ध्यायन्ति सदास्नेहात्ते कृतार्थाः जगत्त्रये ।।

    अर्थ:~श्रीरामनाम का उज्जवल गुन अर्थ परम श्रेष्ठ है, परम पवित्र है, जो सनेह समेत मनन करते हैं वे पुनीत होते हैं। वे ही तीनों लोकों में कृतार्थ रूप हैं।
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