New Vrindaban Leads Beach Retreat

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Tropically settled on the southern coast of the Sunshine State, Delray Beach is a welcome home to many- especially those looking to catch some waves or connect body, mind, and spirit! A month before the Bhakti Lifestyle Retreat, five New Vrindaban devotees had scoped out the area during a short fall vacation earlier. At the time, they didn’t realize Krishna would soon place them back in Delray Beach to gift a spiritual revolution to the salty-haired yogis they had crossed paths with- but they were more than happy to receive the invitation.

Ananta Gauranga was one of the main organizers of the Bhakti Lifestyle Retreat. Ananta is a 2nd generation devotee from New York who has been living in New Vrindaban, interning under Jaya Krsna as a young leader. He often helps organize major retreats and teaches bhakti philosophy and kirtan. Melting hearts with his melodious kirtans and sharing deep Krishna Conscious philosophy in a relatable, practical way is just a microscopic sample of his sincerity and realizations in bhakti. Vrindavan Priya would also lend her equally mesmerizing kirtan talent and friendly wisdom in this endeavor.

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Comments

  • आनंद भाष्यकार आचार्य चक्रवर्ती यतिराज श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य भगवान एवं उनके द्वादश महाभागवतों का उल्लेख कई ग्रंथों में पाया जाता है।

    रामानन्दो रामरूपो राममन्त्रार्थवित्कविः।
    राममन्त्रप्रदो रम्यो राममन्त्ररतः प्रभूः।।

    (अगस्त्य संहिता, १३३ अध्याय)

    श्रीमद् रामानंदाचार्य श्रीराम के ही रूप ही हैं और श्रीराम के मंत्रों का अर्थ जानने वाले कवि हैं। चित्त को हरने वाले श्रीराम के मंत्रों को बताते हैं और उन्हीं के मंत्रों से प्रीति करते हैं।

    अब नारद पंचरात्र वैश्वनार संहिता से,

    रामानन्दः स्वयं रामः प्रादुर्भूतो महीतले।

    कलौ लोके मुनिर्जातः सर्वजीवदयापरः॥

    तप्तकांचनसंकाशी रामानन्दः स्वयं हरिः ॥

    "भावार्थ यही है की जगद्गुरु श्रीमद् रामानंदाचार्य स्वयं श्रीराम ही है जो पृथ्वी पर प्रकट हुए है।"

    मध्वो ब्रह्मा शिवो विष्णुर्निम्बार्कः सनकस्तथा ।
    शेषो रामानुजो रामो रामानन्दो भविष्यतीति ॥

    ~भार्गव पुराण

    भावार्थ यही की भविष्य में श्रीराम ही स्वयं श्रीमद् रामानंदाचार्य के रूप में प्रकट होंगे।

    आचार्या बहवोऽभूवन् राममन्त्र प्रवर्तकाः । किन्तु देवि कलेरादी पाखण्ड प्रचुरे जने ||२३||

    रामानन्देति भविता विष्णुधर्म प्रवर्तकः । यदा यदा हि धर्मोऽयं विष्णोः साकेतवासिनः ||२४||

    कृशतामेति भो देवि तदा सः भगवान् हरिः । रामानन्द-यतिर्भूत्वा तीर्थराजे च पावने ॥ २५॥

    अन्तर्यामी महायोगी अवतीर्य जगन्नाथ धर्मं स्थापयते पुनः। देशकालावच्छिन्नो विष्णोधर्मः सुखप्रदः ||२६||

    श्री वाल्मीकि संहिता अ ०५ श्लोक २३/२४/२५/२६

    श्रीराममन्त्र के प्रवर्तक आचार्य बहुत हुए, किन्तु हे देवि ! कलियुग के आदि में बहुत पाखण्डवाले जन होने पर वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीरामानन्द इस नाम से प्रख्यात आचार्य होगे ॥२३॥

    साकेतवासी विष्णु का यह धर्म जब जब हास प्राप्त कर जाता है, तब तब हे देवि ! वे भगवान् हरि ||२४||

    श्रीरामानन्द नामक यति होकर पवित्र तीर्थराजमें अवतार लेकर वे जगत्स्वामी फिर धर्मकी स्थापना किया करते हैं ||२५||

    देश और काल से अवछिन्न अर्थात् अवशिष्ट वैष्णव धर्म सुखदायक है वह काल से अनाच्छादित-अनावृत हमेश प्रवृत्त होता रहता है ॥२६॥

    भविष्यपुराण तृतीय प्रतिसर्ग खण्ड दो अध्याय ३२ में लिखा है कि चारों सम्प्रदाय के आचार्य सूर्य विम्ब से प्रगट हुये (यहां सूर्य का अर्थ सूर्य देवता नहीं बल्कि वेदावतर श्रीमद् वाल्मीकि रामायण के अनुसार सूर्यों के सूर्य प्रभु श्रीराम से है),

    रामानंदिय

    इत्युक्त्वा स्वस्य विम्बस्य तेजोराशि समं ततः । समुत्पाद्य कृतं काश्यां रामानन्दस्ततोऽभवत् ॥ १

    निम्बादित्य (तत्रैव))

    कलौ भयानके देवा मदंशो हि जनिष्यति ।

    निम्बादित्य इति ख्यातो देवकार्यं करिष्यति ॥ २

    मध्वाचार्य (तत्रैव)

    इत्युक्त्वा भगवान् सूर्यो देवकार्यार्थमुद्यतः ।

    स्वाङ्गात् तु तेज उत्पाद्य वृन्दावनमपेषयत् ।।

    तेभ्यश्च वैष्णवीं शक्तिं प्रददौ भुक्ति मुक्तिदाम् ।

    मध्वाचार्य इति ख्यातः प्रसिद्धोऽभून्महीतले ।।३

    विष्णुस्वामी (तत्रैव)

    अष्टविंशे कलौ प्राप्ते स्वयं जाता कलिञ्जरे ।

    शिवदत्तस्य तनयो विष्णुशर्मेति विश्रुता ॥

    इत्युक्त्वा तु ते सर्वे प्रशस्य बहुधा हि तम् ।

    विष्णुस्वामीति तं नाम्ना कथाश्चक्रुश्च हर्षिताः ॥४

    उपर्युक्त भविष्य वाक्योंसे निश्चय होता है कि श्रीसम्प्रदायके मुख्य आचार्य श्रीरामानन्द स्वामी ही हैं।

    शब्दकल्पद्रुम तथा वाचस्पत्यभिधान नामक कोष ग्रंथो में सम्प्रदाय शब्द के अर्थ के अन्तर्गत लिखा है ।

    पद्म पुराणे~

    अतः कलौ भविष्यन्ति चत्वारः सम्प्रदायिनः ।

    श्री माध्विरुद्रसनका वैष्णवाः क्षितिपावनाः ||

    रामानन्दो हविष्याशी निम्बार्कश्च महेश्वरि ।।


    आगे स्वयं भगवान श्रीराम के आदेशानुसार आचार्यों का प्रदुर्भव हुआ;

    भविष्यंति कलौ घोरे जीवा हरिबहिर्मुखाः॥
    रामाऽज्ञया हनूमान् वै मध्वाचार्यः प्रभाकरः॥
    शंकरः शंकरः साक्षाद्वचासो नारायणः स्वयम्॥
    शेषो रामानुजो रामो रामदत्तो भविष्यति॥

    (इति सदाशिव संहिता)

    अर्थ:~महाघोर कलियुग में सब जीव ईश्वरसे विमुख होजायेंगें तब श्रीरामजीके आज्ञासे निश्चयपूर्वक हनुमानजी मध्वाचार्यजीके अवतार होंगे, शंकरजी साक्षात् शंकराचार्य होंगे और व्यासजी स्वयं नारायण होंगे। शेषजी (लक्ष्मण जी) श्रीरामानुजस्वामी होंगे और श्रीरामजी स्वयं (रामदत्त) श्रीरामानंदाचार्य होंगे।

    वैखानसः सामवेदादौ श्रीराधावल्लभी तथा । गोकुलेशो महेशानि तथा वृन्दावनी भवेत् ॥

    पाञ्चरात्रः पञ्चमः स्यात् षष्ठः श्रीवीरवैष्णवः । रामानन्दी हविष्याशी निम्बार्कश्च महेश्वरि ॥

    ततो भागवतो देवि! दश भेदाः प्रकीर्त्तिताः । शिखी मुण्डी जटी चैव द्वित्रिदण्डी क्रमेण च ॥

    महेशानि! वीरशैवस्तथैव च। सप्त पाशुपताः प्रोक्ता दशधा वैष्णवा मताः ॥

    एतेषां वासनं देवि! श्रृणु यत्नेन शाम्भवि ! वेवेष्टि सर्वं संव्याप्य यस्तिष्ठति स वैष्णवः ॥

    (श्रीशक्तिसंगम तन्त्र प्रथम खण्ड, अष्टम पटल)

    अर्थात्, हे शिवे! आदिमें वैखानस (सामवेदी वैखानस), श्रीराधावल्लभ, गोकुलेश, और इसी प्रकार वृन्दावनी होते हैं। हे महेश्वरि ! पाँचवा [वैष्णव] पाञ्चरात्र होता है। छठा श्रीवीरवैष्णव होता है। शिवे! [ऐसे ही] रामानन्दी, हविष्याशी (हविष्य या खीर खाने वाला) और निम्बार्क। और इनके बाद भागवत् हे देवि! ये दस भेद कहे गये हैं, हे शिवे ! शिखी, मुण्डी, जटी, क्रम से द्विदण्डी, त्रिदण्डी और एकदण्डी और वीरशैव सात पाशुपत (शैव) कहे गये हैं [ और ] दस प्रकारके वैष्णव माने गये हैं। हे शाम्भव देवि! इनका ज्ञान यत्नसे सुनो। जो सब कुछ सम्यक् रूपसे व्याप्त करके फैलता है, वह वैष्णव है।

    भगवान श्रीमद् रामानंदाचार्य जी के द्वादश शिष्यों का जिक्र श्रीमद् भागवत महापुराण से अगस्त संहिता तक भरा पड़ा है;

    स्वयंभूर्नारदः शम्भुः कुमारः कपिलो मनुः ।

    प्रह्लादो जनको भीष्मो बलिर्वैयासकिर्वयम् ॥

    द्वादशैते विजानीयो धर्मं भागवतं सदा ।

    गुह्यं विशुद्धं दुर्बोधं यं ज्ञात्वामृतमश्नुते ॥

    (श्रीमद्भागवतमहापुराण ६.३.२०-२१)

    अर्थात् भगवान्‌के द्वारा निर्मित भागवतधर्म परम शुद्ध और अत्यन्त गोपनीय है। उसे जानना अत्यंत दुष्कर है। जो उसे जान लेता है, वह भगवत्स्वरूपको प्राप्त हो जाता है। इस भागवतधर्मको हम बारह व्यक्ति ही जानते हैं— ब्रह्माजी, नारदजी, भगवान् शम्भु, सनत्कुमार, कपिल, मनु, प्रह्लाद, जनक, भीष्म पितामह, बलि, शुकदेवजी और स्वयं मैं (अर्थात् यमराज)।

    अगस्त्य संहिता १३२वाँ अध्याय के अनुसार इन्हीं भागवतधर्मवेत्ताओंने भगवान् की आज्ञाको शिरोधार्य कर अवतार लिया (जिसका उल्लेख सदाशिव संहिता में ऊपर किया जा चुका है) एवं जगद्गुरु श्रीमदाद्य रामानन्दाचार्यसे दीक्षा प्राप्त कर भगवद्धर्मका प्रचार किया।

    १. श्रीअनन्तानन्दाचार्य — श्रीब्रह्माजीका अवतरण कार्तिक पूर्णिमा शनिवार कृतिका नक्षत्र धनु लग्नमें अनन्तानन्दके नामसे होगा। देखें~

    आयुष्मन्! कृत्तिकायुक्तंपूर्णिमायां धनौ शनौ। स्वयंभूःकार्तिकस्याद्धाऽनन्तानन्दोभविष्यति॥३०॥

    २. श्रीसुरसुरानन्दजी— मुनिवर्य नारद सुरसुरानन्दके रूपमें वैशाख कृष्ण व गुरुवारको वृषलग्नमें अवतरित हुए। देखें -

    जातः सुरसुरानन्दो नारदो मुनिसत्तमः ।
    वैशाखासितपक्षस्य नवम्यां स वृषे गुरौ ।।३१॥

    ३. श्रीसुखानन्दजी – भगवान् शङ्कर ही उसी प्रकार वैशाख शुक्ल नवमी, शतभिषा नक्षत्र शुक्रवारको तुला लग्नमें सुखानन्दके रूपमें अवतरित होंगे। देखें~

    तस्यामेव तुलालग्ने तादृशीन्दुरिवोग्रधीः ।
    शम्भुरेव सुखानन्दः पूर्वाचार्यार्थनिष्ठकः ॥३३॥

    ४.श्रीनरहरियानन्दजी— वैशाखमासकी कृष्ण तृतीया, व्यतीपात योग, अनुराधा नक्षत्र, मेष लग्न, शुक्रवारको सनत्कुमार नरहरियानन्दके रूपमें अवतरित हुए। ये सदैव शुभ कर्मों में निरत तथा वर्णाश्रमधर्मनिष्ठ रहेंगे। देखें

    व्यतीपातेऽनुराधाभे शुक्रे मेषे गुणाकरे ।
    वैशाखकृष्णपक्षस्य तृतीयां महामतिः॥३४॥
    कुमारो नरहरियानन्दो जातधीर उदारधीः । वर्णाश्रमकर्मनिष्ठः शुभकर्मरतः सदा ॥ ३५॥

    ५. श्रीयोगानन्दजी— श्रीकपिलजी योगानन्दजीके रूपमें वैशाख कृष्ण सप्तमी, परिघयोग, मूल नक्षत्रमें कर्क लग्नयुक्त बुधवारको अवतरित होंगे। देखें-

    वैशाखकृष्ण सप्तम्यां मूले परिघसंयुते ।
    बुधे कर्केऽथ कपिलो योगानन्दो जनिष्यति ॥ ३६॥

    ६. श्रीपीपाजी — श्रीमनुजी ही पीपाजीके रूपमें चैत्रमासकी पूर्णिमा तिथि, फाल्गुनी नक्षत्र, ध्रुव योग में बुधवारको अवतरित हुए। देखें

    उत्तरा मनुः पीपाभिधो जात उत्तराफाल्गुनी युजी।
    पूर्णिमायां ध्रुवे चैत्यां धनवारे बुधस्य च ॥ ३८॥

    ७. श्रीकबीरदासजी — चैत्र कृष्ण अष्टमी, मंगलवार, शोभन योग, सिंह लग्न में प्रह्लादजी कबीरदासके रूपमें अवतरित हुए। देखें-

    नक्षत्रे शशिदैवत्ये चैत्रकृष्णाष्टमीतिथौ।
    प्रह्लादोऽपि कबीरस्तु कुजे सिंहे च शोभने ॥ ३९-४०॥

    ८. श्रीभावानन्दजी — जनकजी ही भावानन्दजीके रूपमें वैशाख कृष्ण षष्ठी, मूल नक्षत्र, परिघ योग, कर्क लग्नमें सोमवारको अवतरित होंगे। देखें-

    भावानन्दोऽथ जनको मूले परिघसंयुते ।
    वैशाखकृष्णषष्ठ्यान्तु कर्के चन्द्रे जनिष्यति॥४१॥

    ९. श्रीसेनजी- - पितामह भीष्मका अवतार सेनजीके रूपमें वैशाख कृष्ण द्वादशी, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, तुला लग्न, शुभ योगमें रविवार को हुआ। देखें -

    भीष्मः सेनाभिधो नाम तुलायां रविवासरे।
    द्वादश्यां माधवे कृष्णे पूर्वाभाद्रपदे शुभे ॥ ४२-४३॥

    १०.श्रीधन्नाजी— श्रीबलिजी महाराज साक्षात् धन्नाजीके रूपमें वैशाख कृष्ण अष्टमी, पूर्वाषाढ नक्षत्र, शिव योग, वृश्चिक लग्नमें शनिवारको अवतरित हुए।

    वैशाखस्यासिताष्टम्यां वृश्चिके शनिवासरे। धनाभिधो बलिः साक्षात्पूर्वाषाढयुते शिवे ॥४४॥

    ११.श्रीगालवानन्दजी— श्रीशुकदेवजी गालवानन्दके रूपमें चैत्र कृष्ण एकादशी, वृष लग्न, शुभ योग सोमवारको अवतरित हुए। देखें -

    वासवो गालवानन्दो जात एकादशीतिथौ ।
    चैत्रे वैयासकिश्चन्द्रे कृष्णे लग्ने वृषे शुभे ॥ ४६ ॥

    १२. श्रीरमादास (रैदास) — चैत्र शुक्ल द्वितीया मेष लग्न, हर्षण योग शुक्रवारके दिन श्रीयमराज ही रमादास (रैदास) के रूपमें अवतरित हुए। देखें

    चैत्रशुक्लद्वितीयायां शुक्रे मेषेऽथ हर्षणे ।
    यम एव रमादासस्त्वाष्ट्रे प्रादुर्भविष्यति ॥४८॥

    श्रीनाभादासकृत भक्तमालके अनुसार इनके १२ प्रधान शिष्य ये थे—

    अनंतानंद कबीर सुखा सुरसुरा पद्मावती नरहरि।
    पीपा भावानंद रैदास धना सेन सुरसुर की घरहरि॥
    औरो शिष्य प्रशिष्य एक ते एक उजागर ।
    जगमंगल आधार भक्त दसधा के आगर ॥
    बहुत काल बपु धारि कै प्रनत जनन को पार दियो।
    श्रीरामानँद रघुनाथ ज्यों दुतिय सेतु जगतरन कियो ॥ ३६॥

    इत्यादि इत्यादि बहुत से प्रमाण भरे पड़े हैं शास्त्रों में लेकिन मुझे पूर्ण उम्मीद है कि आपको इतने प्रमाणों से संतुष्टि हो गई होगी।

    अवध दुलारे अवध दुलारी सरकार की जय ❤️

    आचार्य चक्रवर्ती आनंद भाष्यकार श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य भगवान की जय🚩
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