HARE KRISHNA

हरि नाम रस क्या है? जब हम भजन में गहरे उतरते
हैं, ध्यान में परमात्मा के गुणगान में जब
समूची इंद्रिया पूरी तरह डूब जाती है तब
हरि नाम रस के उत्पत्ति होती है. इसके बाद
संसार के विषय आकर्षित नहीं करते. मन भगवान
के चरणविन्द में अधिक लगने लगता है.
इस हरिनाम रस को पाना चाहते
हो तो सभी को सुख प्रदान करो, आनंद प्रदान
करो. यदि दिल में अशांति है
तो समझाना चाहिये की हमने ठीक तरह से
भगवान के चरणों का सहारा नहीं लिया,
क्योकि भगवत-शरणागति ही सब समस्याओं
का समाधान व सब क्लेशो का निवारण करने
की रामबाण औषधि है. वैसे भी जो भगवान के भजन
में लग गया तो समझो वह ठीक रास्ते पर आ गया.
आज तक जितने ही ऋषि मुनि हुए हैं सभी ने इस
नाम रस का पान किया है. भगवान् शेष
भी अपनी सहस्त्र जिव्हाओं से नाम रस का पान
करते थकते नहीं है. कबीर, मीरा, रैदास, नरसी,
नामदेव, सुर सभी तो इस नाम रस के पिपासु रहे
हैं. आईये अपने ह्रदय के समस्त द्वारो को खोलकर
हम भी नाम रस पान से अंत:करण को पवित्र करे.
अपने भीतर की कलुषिता को धोकर उसे पुन:
पावन बना ले. इसके लिए एक ही साधन है-
हरिकथा श्रवण एवम हरि संकीर्तन.
भक्तो का संग, कथा का संग भगवान के
प्यारो का संग जीवन में
सदवृतीयों को जगाता है. शील, दया, छमा,
शुचिता, शुभ कर्मो को करने की भावना, और
उल्लास का जीवन में आगमन होता है. ऐसे
संकीर्तन में जाकर समय का आभास समाप्त
हो जाता है, और मन मयूर मुग्ध होकर नाचने
लगता है.
कोशिश करके हरिनाम संकीर्तन के पथ के
अनुगामी बने क्योकि इससे मिलाने वाला सुख
सदा सर्वदा के लिए ह्रदय में अंकित हो जाता है.
फिर सिर्फ अपने सुख की कमाना नहीं रहती.
भगवान का भक्त तो समूची सृष्टी को सुखमय
देखना चाहता है. वह सभी के कल्याण में अपने
कल्याण का मार्ग ढुंढता है. सभी के लिए शुभ
कामना करके अपने शुभत्व का अनुभव करता है.
आईये सत्कर्मो की इसी भावना को आत्मसात करे.
"सर्वे भवन्तु सुखन:" की मंगलकामना करते हुए
जीवन को नवीन दिशा प्रदान करे.
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