Damodarashtakam in Hindi

✨ श्रीदामोदराष्टकम् ✨

नमामीश्वरं सच्चिदानन्दरुपं,
लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्।
यशोदाभियोलूखलाद्वावमानं,
परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या ॥1॥

वह भगवान जिनका रूप सत, चित और आनंद से परिपूर्ण है, जिनके मकरो के आकार के कुंडल इधर उधर हिल रहे है, जो गोकुल नामक अपने धाम में नित्य शोभायमान है, जो (दूध और दही से भरी मटकी फोड़ देने के बाद) मैय्या यशोदा की डर से ओखल से कूदकर अत्यंत तेजीसे दौड़ रहे है और जिन्हें यशोदा मैय्या ने उनसे भी तेज दौड़कर पीछे से पकड़ लिया है ऐसे श्री भगवान को मै नमन करता हू ।।1।।

रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्यँ मृजन्तं,
कराम्भोज-युग्मेन साँतकनेत्रम्।
मुहु: श्वासकम्प-त्रिरेखाँककण्ठ
-स्थितग्रैव दामोदरं भक्तिबद्धम्॥2॥

(अपने माता के हाथ में छड़ी देखकर) वो रो रहे है और अपने कमल जैसे कोमल हाथो से दोनों नेत्रों को मसल रहे है, उनकी आँखे भय से भरी हुयी है और उनके गले का मोतियो का हार, जो शंख के भाति त्रिरेखा से युक्त है, रोते हुए जल्दी जल्दी श्वास लेने के कारण इधर उधर हिल-डुल रहा है , ऐसे उन श्री भगवान् को जो रस्सी से नहीं बल्कि अपने माता के प्रेम से बंधे हुए है मै नमन करता हु ।।

इतीदृक स्वलीलाभिरानन्दकुण्डे,
स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्
तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं,
पुन: प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे ॥3॥

ऐसी बाल्यकाल की लीलाओ के कारण वे गोकुल के रहिवासीओ को आध्यात्मिक प्रेम के आनंद कुंड में डुबो रहे है, और जो अपने ऐश्वर्य सम्पूर्ण और ज्ञानी भक्तो को ये बतला रहे है की "मै अपने ऐश्वर्य हिन और प्रेमी भक्तो द्वारा जीत लिया गया हु", ऐसे उन दामोदर भगवान को मै शत शत नमन करता हु ।।


वरं देव मोक्षं न मोक्षीवधिँ
वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।
इदन्ते वपुर्नाथ गोपालबालं सदा मे
मनस्या विरास्ताँ किमन्यै ॥4॥

हे भगवन, आप सभी प्रकार के वर देने में सक्षम होने पर भी मै आप से ना ही मोक्ष की कामना करता हु, ना ही मोक्षका सर्वोत्तम स्वरुप श्री वैकुंठ की इच्छा रखता हु, और ना ही नौ प्रकार की भक्ति से प्राप्त किये जाने वाले कोई भी वरदान की कामना करता हु । मै तो आपसे बस यही प्रार्थना करता हु की आपका ये बालस्वरूप मेरे हृदय में सर्वदा स्थित रहे, इससे अन्य और कोई वस्तु का मुझे क्या लाभ ?


इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै:
वृतं कुन्तलै: स्निग्ध-वक्रैश्च गोप्या।
मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे,
मनस्याविरास्तामलं लक्षलाभै:॥5॥

हे प्रभु, आपका श्याम रंग का मुखकमल जो कुछ घुंघराले लाल बालो से आच्छादित है, मैय्या यशोदा द्वारा बार बार चुम्बन किया जा रहा है, और आपके ओठ बिम्बफल जैसे लाल है, आपका ये अत्यंत सुन्दर कमलरुपी मुख मेरे हृदय में विराजीत रहे । (इससे अन्य) सहस्त्रो वरदानो का मुझे कोई उपयोग नहीं है ।


नमो देव दामोदरानन्त विष्णो!
प्रसीद प्रभो! दु:खजालाब्धि-मग्नम।
कृपादृष्टि-वृष्टचातिदीनं वतानु,
गृहणेश!मामज्ञमेध्यक्षिदृश्य:॥6॥

हे प्रभु, मेरा आपको नमन है । हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, आप मुझपर प्रसन्न होवे (क्यूंकि) मै संसाररूपी दुःख के समुन्दर में डूबा जा रहा हु । मुझ दिन हिन पर आप अपनी अमृतमय कृपा की वृष्टि कीजिये और कृपया मुझे दर्शन दीजिये ।।


कुबेरात्मजौ बद्धमूर्तैव यद्धत,
त्वया मोचितौ भक्तिभाजौ कृतौ च।
तथा प्रेमभक्तिँ स्वकाँ मे प्रयच्छ,
न मोक्षे ग्रहो मेऽस्ति दामोदरेह ॥7॥

हे दामोदर (जिनके पेट से रस्सी बंधी हुयी है वो), आपने माता यशोदा द्वारा ओखल में बंधे होने के बाद भी कुबेर के पुत्रो (मणिग्रिव तथा नलकुबेर) जो नारदजी के श्राप के कारण वृक्ष के रूप में मूर्ति की तरह स्थित थे, उनका उद्धार किया और उनको भक्ति का वरदान दिया, आप उसी प्रकार से मुझे भी प्रेमभक्ति प्रदान कीजिये, यही मेरा एकमात्र आग्रह है, किसी और प्रकार की कोई भी मोक्ष के लिए मेरी कोई कामना नहीं है ।


नमस्तेऽस्तु दामने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने,
त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।
नमो राधिकायै त्वदीय प्रियायै,
नमोऽनन्तलीलाय देवाय तुभ्यम॥8॥

हे दामोदर, आपके उदर से बंधी हुयी महान रज्जू (रस्सी) को प्रणाम है, और आपके उदर, जो निखिल ब्रह्म तेज का आश्रय है, और जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का धाम है, को भी प्रणाम है । श्रीमती राधिका जो आपको अत्यंत प्रिय है उन्हें भी प्रणाम है, और हे अनंत लीलाऐ करने वाले भगवन, आपको प्रणाम है ।


✨✨✨✨ || जय श्री राधा दामोदर || ✨✨✨✨

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