जन्मस्थली नन्दभवन से प्राय: एक मील पूर्व में ब्रह्माण्ड घाट विराजमान है। यहाँ पर बालकृष्ण ने गोप-बालकों के साथ खेलते समय मिट्टी खाई थी। माँ यशोदा ने बलराम से इस विषय में पूछा। बलराम ने भी कन्हैया के मिट्टी खाने की बात का समर्थन किया। मैया ने घटनास्थल पर पहुँच कर कृष्ण से पूछा-'क्या तुमने मिट्टी खाई?' कन्हैया ने उत्तर दिया- नहीं मैया! मैंने मिट्टी नहीं खाईं।' यशोदा मैया ने कहा-कन्हैया ! अच्छा तू मुख खोलकर दिखा।' कन्हैया ने मुख खोल कर कहा- 'देख ले मैया।' मैया तो स्तब्ध रह गई। अगणित ब्रह्माण्ड, अगणित ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा चराचर सब कुछ कन्हैया के मुख में दिखाई पड़ा। भयभीत होकर उन्होंने आँखें बन्द कर लीं तथा सोचने लगीं, मैं यह क्या देख रही हूँ? क्या यह मेरा भ्रम है य किसी की माया है? आँखें खोलने पर देखा कन्हैया उसकी गोद में बैठा हुआ है। यशोदा जी ने घर लौटकर ब्राह्मणों को बुलाया। इस दैवी प्रकोप की शान्ति के लिए स्वस्ति वाचन कराया और ब्राह्मणों को गोदान तथा दक्षिणा दी। श्रीकृष्ण के मुख में भगवत्ता के लक्षण स्वरूप अखिल सचराचर विश्व ब्रह्माण्ड को देखकर भी यशोदा मैया ने कृष्ण को स्वयं-भगवान के रूप में ग्रहण नहीं किया। उनका वात्सल्य प्रेम शिथिल नहीं हुआ, बल्कि और भी समृद्ध हो गया । दूसरी ओर कृष्ण का चतुर्भुज रूप दर्शन कर देवकी और वसुदेव का वात्सल्य-प्रेम और विश्वरूप दर्शन कर अर्जुन का सख्य-भाव शिथिल हो गया। ये लोग हाथ जोड़कर कृष्ण की स्तुति करने लगे। इस प्रकार ब्रज में कभी-कभी कृष्ण की भगवत्तारूप ऐश्वर्य का प्रकाश होने पर भी ब्रजवासियों का प्रेम शिथिल नहीं होता । वे कभी भी श्रीकृष्ण को भगवान के रूप में ग्रहण नहीं करते। उनका कृष्ण के प्रति मधुर भाव कभी शिथिल नहीं होता । ========================================== दूसरा प्रसंग बालकृष्ण एक समय यहाँ सहचर ग्वालबालों के साथ खेल रहे थें अकस्मात बाल-टोली ताली बजाती और हँसती हुई कृष्ण को चिढ़ाने लगी। पहले तो कन्हैया कुछ समझ नहीं सके, किन्तु क्षण भर में उन्हें समझमें आ गया। दाम, श्रीदाम, मधुमंगल आदि ग्वालबाल कह रहे थे कि नन्दबाबा गोरे, यशोदा मैया गोरी किन्तु तुम काले क्यों? सचमुच में तुम यशोदा मैया की गर्भजात सन्तान नहीं हो। किसी ने तुम्हें जन्म के बाद पालन-पोषण करने में असमर्थ होकर जन्मते ही किसी वट वृक्ष के कोटरे में रख दिया था। परम दयालु नन्दबाबा ने वहाँ पर असहाय रोदन करते हुए देखकर तुम्हें उठा लिया और यशोदा जी की गोद में डाल दिया। किन्तु यथार्थत: तुम नन्द-यशोदा के पुत्र नहीं हो। कन्हैया खेलना छोड़कर घर लौट गया और आँगन में क्रन्दन करता हुआ लोटपोट करने लगा। माँ यशोदा ने उसे गोद में लेकर बड़े प्यार से रोने का कारण पूछना चाहा, किन्तु आज कन्हैया गोद में नहीं आया। तब मैया जबरदस्ती अपने अंक में धारण कर अंगों की धूल झाड़ते हुए रोने का कारण पूछने लगी। कुछ शान्त होने पर कन्हैया ने कहा-दाम, श्रीदाम आदि गोपबालक कह रहे हैं कि तू अपनी मैया की गर्भजात सन्तान नहीं है। 'बाबा गोरे, मैया गोरी और तू कहाँ से काला निकल आया। यह सुनकर मैया हँसने लगी और बोली-'अरे लाला! ऐसा कौन कहता हैं?' कन्हैया ने कहा-'दाम, श्रीदाम, आदि के साथ दाऊ भैया भी ऐसा कहते हैं।' मैया गृहदेवता श्रीनारायण की शपथ लेते हुए कृष्ण के मस्तक पर हाथ रखकर बोली- 'मैं श्री नारायण की शपथ खाकर कहती हूँ कि तुम मेरे ही गर्भजात पुत्र हो।' अभी मैं बालकों को फटकारती हूँ। इस प्रकार कहकर कृष्ण को स्तनपान कराने लगी। इस लीला को संजोए हुए यह स्थली आज भी विराजमान है। यथार्थत: नन्दबाबा जी गौर वर्ण के थे। किन्तु यशोदा मैया कुछ हल्की सी साँवले रंग की बड़ी ही सुन्दरी गोपी थीं। नहीं तो यशोदा के गर्भ से पैदा हुए कृष्ण इतने सुन्दर क्यों होते? किन्तु कन्हैया यशोदा जी से कुछ अधिक साँवले रगं के थे। बच्चे तो केवल चिढ़ाने के लिए वैसा कह रहे थे।
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