श्रील प्रभुपाद के वियोग मेँ... (अकिंचन दासानुदास- ललितमाधवदास)

 

कृष्‍णकृपाश्रीमूर्ति ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद के अनुयायी उनके वियोग मेँ उनकी सेवा का रसास्वादन करते रहे हैं| श्रील प्रभुपाद मात्र एक आचार्य नहीँ थे बल्कि कॄष्णभावनामृत आंदोलन के संस्थापक-आचार्य जो एक सक्रिय आध्यात्मिक वास्तविकता थे। यह वास्तविकता युग धर्म या आध्यात्मिक जीवन के उस रुप से किसी तरह कम नहीं है जिसकी संस्तुति समस्त मानवता के लिए इस कलियुग में की गई है, उस कलियुग में जो सभी युगों में सबसे अधिक खतरनाक है, जिसमें मानव जाति अंतत: सभी धार्मिक सिध्दांतो का परित्याग कर देती हैं। 

जीवन के चरम लक्ष्य की शिक्षा भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता में दी थी, जब उन्होंने घोषणा की थी “सभी धर्मों का परित्याग करके मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें पाप के सभी फलों से मुक्त कर दूंगा, डरो मत।“ भगवान कॄष्ण ने यह शिक्षा पाँचं हजार वर्ष पूर्व दी थी, जब वे इस जगत में प्रकट हुए थे। किंतु लोगो ने भगवान कृष्ण की शिक्षा को गलत समझा और उसकी गलत व्याख्या की। अत: चैतन्य महाप्रभु ने अवतार लिया ताकि भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण के मूल संदेश को, मुख्य रुप से संकीर्तन आंदोलन चलाकर जिसमें भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन किया जाता है, पुनर्जीवित करें।

चैतन्य महाप्रभु के एक महान भक्त, भक्तिविनोद ठाकुर ने पह्ले ही समझ लिया था कि भगवान चैतन्य के संकीर्तन आंदोलन का समग्र संसार में प्रसार हो सकता है, हुआ और होगा। उन्होंने अनेक धर्मों और दर्शनों का गहन अध्ययन किया था किन्तु उन्हें लगता था की भगवान चैतन्य का संकीर्तन विश्वजनीत था; वह धार्मिक जीवन का सारभूत अंश था जिसमें सभी लोगों को जोड्ने और उन्हें पूर्णता देने की शक्ति थी। भक्तिविनोद् ठाकुर के पुत्र भाक्तिसिद्धांत सरस्वती थे जो श्रील प्रभुपाद के आध्यात्मिक गुरु हुए और जिन्होंने श्रील प्रभुपाद को पश्चिम में प्रचार करने हेतु जाकर कॄष्णभावनामृत की विश्वव्यापी कल्पना को साकार रुप देने का आदेश दिया।

अतएव ए.सी.भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को केवल थोडे से अंतरंग सेवकों का गुरु अथवा शिष्यों की एक पीढी का गुरु नहीं मानना चाहिए।  कॄष्णभावनामृत  आंदोलन के संस्थापक आचार्य के रुप में उन्होंने कॄष्ण भक्ति के उस मानक रुप की स्थापना की जिसका अनुगमन सभी निष्ठावान अनुयायी आगामी हजारों वर्षों तक कर सकते हैं

शास्त्रों कि भविष्यवाणी है कि यद्दपि वर्तमान युग निरंतर अशुभ, असौभाग्यपुर्ण और विकृत होता जा रहा है, किंतु भगवान चैतन्य के अवतार के दस हजार वर्ष बाद कलियुग की शक्ति के बावजूद, कृष्ण - भक्ति के स्वर्ण युग का आगमन हो सकता है। अतएव श्रील प्रभुपाद ने महत्वपूर्ण वैष्णव शास्त्रों –भगवद्गीता, श्रीमद्भागवत, चैतन्य चरितामृत तथा भक्तिरसामृत सिंधु के अनुवाद और भक्ति वेदांत तात्पर्य इस योजना के साथ तैयार किए कि दस हजार वर्षों तक  कॄष्णभावनामृत आंदोलन का आधार रहेंगे|  

अत: हम श्रील प्रभुपाद का वर्णन अनुयायियों की केवल एक पीढ़ी का गुरू कह कर नहीं कर सकते। श्रील प्रभुपाद जगत-गुरु हैं!  वे प्रमाणिक आध्यात्मिक गुरु हैं जो श्रद्धापूर्वक भगवान कृष्‍ण की गुरु परंपरा का संदेश, जैसा कि उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु से परम्परा द्वारा प्राप्त किया, देते रहे। किंतु उससे अधिक वे कॄष्ण द्वारा वह करने को अधिकृत हुए जो किसी गुरु ने कभी नहीं किया। वे चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन को कलियुग में विश्वभर में प्रसारित करने के लिए संस्थापक आचार्य बने।

जो कोई भी वर्तमान अनीश्वरवादी युग के दुष्प्रभावों से संरक्षण चाहता है वह प्रभुपाद द्वारा वर्णित भगवान चैतन्य की शिक्षाओं के निर्देशन के भीतर प्रेमाभक्ति के अनुसरण द्वारा प्राप्त कर सकता है। श्रील प्रभुपाद के शक्तिशाली प्रचार और सिद्धियों से भगवान चैतन्य की उदात्त शिक्षाओं का रुप उद्घाटित हुआ।  जिनकी अब तक अन्यथा अवहेलना हो रही थी और दुरुपयोग हो रहा था तथा जो भारत तक सीमित थी। वास्तव में श्रील प्रभुपाद भगवान चैतन्य की इस भविष्यवाणी को समझ सके कि कॄष्णभावनामृत का प्रचार संसार के प्रत्येक नगर और गाँव में होगा। श्रील प्रभुपाद को इन शब्दों में विश्वास था और उन्होंने स्वयं अपने जीवन काल में देखा कि कॄष्णभावनामृत सभी जातियों और संस्कृतियों द्वारा स्वीकार किया जा सकता है, उन लोगों द्वारा भी जिन्हें वैदिक मानदण्डों से आदिवासी और अछूत माना जाता है। अतएव श्रील प्रभुपाद के अध्य्वसायों के फलस्वरुप कॄष्णभावनामृत आंदोलन इस समय संसार में कहीं भी और किसी के भी द्वारा व्यवहार्य होने के योग्य सिद्ध हो चुका है।

आज प्रभुपाद भौतिक शरीर के रुप में हमारे साथ नहीं है लेकिन वियोग में श्रील प्रभुपाद की सेवा कोई भी कर सकता है। उन्होंने अपने सभी अनुयायियों को चार दुष्कृत्यों से बचने को कहा – मांस भक्षण, मादक द्रव्य सेवन, अवैध यौन सम्बंध और जुंवा तथा प्रतिदिन माला पर कम से कम सोलह फेरियां हरे कृष्‍ण महामंत्र का जाप (कीर्तन) करने को कहा। उन्होंने यह भी उपदेश दिया कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य और शक्ति बनाए रखने के लिए नियमित रुप से भगवद्गीता यथारुप और श्रीमद्भागवत जैसे वैदिक साहित्य का अध्ययंन करना चाहिए ताकि आध्यात्मिक सिद्धांतों का पालन हो सके, मनुष्य को समान विचार वाले भक्तों की संगति करनी चाहिए। जो कोई भी इन आधारभूत सिद्धांतों को मानता है और श्रील प्रभुपाद को कॄष्ण का सीधा प्रतिनिधी स्वीकार करता है वह उनका अनुयायी है और वैदिक शास्त्रों का कथन है कि केवल कॄष्ण के प्रतिनिधी की सेवा करने से कोई स्वयं कॄष्ण का प्रिय बन सकता है।

कॄष्ण-सेवा के रुप असीम हैं। जैसा कि श्रील प्रभुपाद ने कौशलपूर्वक दिखाया – उन्होने वैज्ञानिकों, कलाकारों, दार्शनिकों, व्यावसायीयों सभी को अपनी योग्यताओं  और धंधो के अनुसार कॄष्ण की सेवा के लिए आमन्त्रित किया। कलाकार अपनी कल्पना के अनुसार चित्र बनाने अथवा भौतिक उर्जा के विविध रुप अंकित करने के स्थान पर, आध्यात्मिक लोक में स्थित कॄष्ण के चित्र बना सकता है। कवि कॄष्ण को परम सत्य के रुप में वर्णित कर सकता है। दार्शनिक कॄष्ण की व्याख्या – सभी कारणों के कारण – रुप में कर सकता है। वैज्ञानिक सिद्ध कर सकता है कि जीवन जीवन से आता है और व्यवसायी कॄष्णभावनामृत के सुयोग्य कल्याणकारी कार्यकलापों के लिए धन का दान कर सकता है। अतः किसी व्यक्ति को ईश्वर का साक्षात्कार करने के लिए अपना परिवार छोड्ने या किसी गुफा में जाकर निवास करने की आवश्यकता नहीं है। जीवन की किसी भी स्थिति में मनुष्य सांसारिकता से निकल कर कॄष्णभावनामृत के अभ्यास द्वारा आध्यात्मिक मंच पर पहुंच सकता है। श्रील प्रभुपाद का मंतव्य इसी विस्तृत और उदार ढंग से कॄष्णभावनामृत को समाज में व्याप्त कराने से है।

अंतर्राष्ट्रीय कॄष्णभावनामृत संघ (इस्कान) प्रभुपाद का, भक्तों का अपना संघ है जिसका उद्देश्य उन सभी व्यक्तियों की सहायता करना है जो श्रील प्रभुपाद के निर्देशन में आध्यात्मिक जीवन का विकास करने में रुचि रखते हैं। इस्कान प्रभुपाद का संगठन है- मंदिर उपासना को स्थापित करने और उसका विस्तार करने के लिए, पुस्तकों का प्रकाशन और वितरण करने के लिए तथा सामुदायिक जीवन की स्थापना के लिए जहाँ भक्त साथ-साथ रह सके और सेवा कर सके। अतएव प्रभुपाद ने अपनी सारी सम्पतियां, जिसमें वे वैभवशाली मंदिर भी हैं जिनका निर्माण उन्होने करवाया था, इस्कान को सौंप दी ताकि वह उनके कार्यों की रक्षा कर सकें और स्थायी बना सके और उन्होंने अपने शिष्यों को उपदेश दिया कि वे कॄष्णभावनामृत आंदोलन का और अधिक विस्तार करने के लिए आपस में सहयोग करके उनके प्रति प्रेम का प्रदर्शन करें इस प्रकार उन्होंने एक ऐसा घर बनाकर दिया।

जब एक शिष्य ने बम्बई में प्रभुपाद के वैभवपूर्ण आवास की प्रशंसा की तो उन्होंने कहा, “मैं इसे अपने साथ नहीं ले ज सकता- मैं इसे तुम लोगों के प्रयोग के लिए छोड़ रहा हूँ।“ कॄष्णभावनामृत के मुख्य उपहार, जो प्रभूपाद लाए, प्रत्येक के लिए है| यद्यपि अधिकांश लोग इसे नहीं जानते, किन्तु वास्तव में वे सभी आध्यात्मिक जीवन के भूखे हैं| करुणा-वश, प्रभुपाद कॄष्णभावनामृत के उपहारों को संसार के सभी भूखे लोगों में बांटना चाहते थे| ये उपहार - मन की शांति, संतोष, चिंता से मुक्ति- कोई भी प्राप्त कर सकता है, यदि वह परम ईश्वर की सच्चे मन से भक्ति करें| इस शुद्ध आनंदपूर्ण स्थिति की सिद्धी, प्रभुपाद द्वारा छोड़ी गई शक्तिशाली विरासत को अपनाने से हो सकती है| यह विरासत है उनकी पुस्तकें , उनके ग्रंथ, उनके भक्त, उनका कॄष्णभावनामृत संघ और वर्तमान संदर्भ की हर परिस्थिति में कॄष्णभावनामृत को दक्षता के साथ लागू करने की उनकी पद्धति| जो कोई बुद्धिमत्तापूर्वक कॄष्णभावनामृत का अभ्यास अपनाएगा उसे भगवान कृष्ण के शुद्ध भक्त श्रील प्रभुपाद के साथ अपने संबंध की आश्चर्यजनक अनुभूति भी प्राप्त होगी|

हरे कृष्ण !

अकिंचन दासानुदास- ललितमाधवदास

 

 

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