कहा जाता है कि "भज गोविन्दं स्त्रोत्र" के रचना की प्रेरणा, एक व्यक्ति के कई सारे प्रश्नों को सुनने के बाद, श्री शंकराचार्य को मिली। इस पाँचवें श्लोक की प्रेरणा उस व्यक्ति के कुछ इस प्रकार से प्रश्न करने पर कि, "आपके अनुसार संसार में दुःख-ही-दुःख है, किन्तु सभी वस्तुओं को कष्टदायक बताकर - इस शरीर को व्याधि-मन्दिर बताकर - आप मेरे जीवन के सुख को क्यों नष्ट करते है? मेरे स्वजनों को हीं लीजिए। वे मुझ पर कितना सारा प्रेम जताते हैं। इससे मुझे कितना आनन्द मिलता है। क्या यह सब मुझे सुखी करने के लिए काफ़ी नहीं है? मेरी पत्नी का मेरे प्रति बड़ा अनुराग है, बस यही संसार के समस्त दुःखों को मिटाने के लिए काफ़ी है। आप इसे मोह क्यों कहते हैं?", हुई थी। इन्हीं प्रश्नों के उत्तर में आदि-शंकर ने इस श्लोक को कहा था।
मूल:
यावद् वित्तोपार्जनशक्तः, तावन्निजपरोवारो रक्तः।
पश्चात जर्जरभूते देहे, वार्ता पृच्छति कोऽपि नन गेहे॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, भज गोविन्दं मूढ़मते।
हिन्दी:
जब लौं शक्ति धनोपार्जन की, पूछताछ तब लौं इस तन की।
जर्जरभूत हुई जब काया, सुधि लेते हैं नहीं स्वजन भी॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते।
अर्थात, जब तक शरीर में बल है तभी तक धनोपार्जन किया जा सकता है। जिनको तुम स्वजन कहते हो, वे तभी तक तुम्हें प्यार करेंगे, जब तक तुम्हारे पास पैसा है। वृद्धावस्था में तुम स्वयं देखोगे कि तुम्हारे स्वजन तुम्हारा कुछ ध्यान नहीं रखते, उलटे वे तुमसे दूर भागेंगे।
परिवार के लोगों के स्वभाव का इस प्रकार वर्णन करके श्री शंकराचार्य ने संसार की प्रचलित रीति हीं बतलाई थी। उनका ध्येय यह नहीं था कि परिवार में सभी स्वार्थी हैं और हमें सब की अवहेलना करनी चाहिए। उन्होंने तो हम बस चेताया है कि निस्सार वस्तु को सारयुक्त समझकर धोखे में मत आओ, अस्थिर वस्तुओं में चित्त लगाकर अन्त में दुःख को निमंत्रण मत दो। गोविन्द का पदारविन्द हीं असल वस्तु है, उन्हीं में अपना चित्त आसक्त रखो। स्वजन तभी तक तुम्हें प्यार करेंगे जब तक तुम उनका भरण-पोषण करते रहोगे। जब तुम्हारे अन्दर धन कमाने की शक्ति नहीं बचेगी, तब वे सब तुम्हें त्याग देंगे। इसलिए उनका इस समय का प्रेम देख कर तुम धोखा मत खाओ। गोविन्द के साथ आसक्ति रखने पर ऐसा कुछ नहीं होगा। गोविन्द आज भी तुमसे प्रेम करते हैं और जब तुम अशक्त हो जाओगे, तब भी तुमसे वैसा हीं प्रेम करते रहेंगे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
Comments
Thanks.
Jay! It gives so much pleasure to read such a wonderful article!
Please Write 5 in Numerals Prabhu .
Bhajo Radhe Govind . True !!