मूल:
नलिनीदलगतसलिलं तरलं, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं, लोकं शोकहतं च समस्तम्॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढ़मते।
हिन्दी:
जीवन यह अत्यन्त चपल है, नलिनी-दल-जल-तुल्य तरल है।
दुःख-व्याधि-अभिमान-संकुलित, शोक-निहत यह लोक सकल है॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढ़मते।
पहले पांडित्य-मोह, फ़िर वित्त-मोह, उसके बाद स्त्री-मोह - इन तीनों का खण्डन करके इस चौथे श्लोक में श्री शंकराचार्य बताते हैं कि मनुष्य का सांसारिक जीवन किस प्रकार होता है।
वह कहते हैं कि मनुष्य का जीवन उसी प्रकार चपल और अस्थिर होता है जिस प्रकार तालाब में कमल के पत्तों के ऊपर पानी की बूँदें। इन्हीं बूँदों की तरह मनुष्यों का मन चंचल रहता है। आशा-पाशों से मनुष्य के मन की ऐसी दशा होती है। उसका शरीर सदा रोगों से पीड़ित होता है, रोग चाहे शारीरिक हो या मानसिक। सभी सांसारिक वस्तुओं के मूल में दुःख तो लगा ही रहता है। वांछित वस्तु जब मिल जाती है तब यह चिन्ता शुरू हो जाती है कि उसे किस प्रकार सुरक्षित रखा जाए। उसके खोने का डर अब मन को अशान्त बना कर रखता है। इस प्रकार शरीर और मन को दुःख देनेवाली बीमारियों की संख्या तो अपार है।
आशा-पाशों का और उनके कारण होनेवाले मन के क्लेशों का क्या वर्णन किया जाए। इनका परिणाम सदा हीं दुःख है। ग्रह के मुँह से बचने के लिए जिस आर्त्त भव से गजेन्द्र ने श्रीहरि को पुकारा था, उसी प्रकार हम रोग और आसक्ति रूपी दोमुँहे ग्राह से छुटकारा पाने के लिए प्रभु को पुकारें, उनकी शरण में जाएँ...दूसरा कोई चारा नहीं है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥
Comments
hare krishna Ashwani Prabhu,
No...he did not read Prabhupad's Books, but he knew "Hare krishna Movement" I was in college when he died, but he discussed Gita with me some times when we chatted. He used to read Gita Sadhak Sanjivani and Gita Tatva Vivechani published by Gita Press, Gorakhpur. Moreover in 1980's ISKCON and Hare Krishna had hardly any influence in Bihar. I got my first copy of Prabhupad's Gita in 2006 when saw one selling Gita and Krishna both as a bundle for Rs. 90/-. My grandfather died in 1992. He was a Gita Fan, I'll say.
Hari Bol Anoop Prabhu ,
you are very fortunate that your Grandfather was Krsna Conscious.
Well ,your grandfather have mentioned About Prabhupada books in his translation , did he read them ?
I told you earlier, I got it from a notebook of my grandfather, but I doubt he had translated it. He might have copied the text with translation from some book/note or so....I don't have the idea.
Please tell who have translated it ?
Hari Bol !!