मूल:
नारीस्तनभरनाभिनिवेशं दृष्ट्वा मायामोहावेशम्।
एतन्मांसवसादिविकारं मनसि विचारय वारंवारम्॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढ़मते।
हिन्दी:
नारी-अंग निहार चपल चित्त, मत हो मायाविष्ट विमोहित।
मांसवसादिक के विकार ये, कर तू बारंबार विवेचित॥
भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढ़मते।
श्री शंकराचार्य का यह तीसरा श्लोक स्त्री-मोह के बारे में है। हम सब जानते हैं कि यह मोह कितना प्रबल है और इस पर विजय पाना कितना कठिन है।
स्त्री का शारीरिक सौन्दर्य एक भ्रम है। उससे होने वाले मानसिक उद्वेगों को सच्चा नहीं मानना चाहिए। आदिशंकर के कहने का तात्पर्य यह है कि तुम स्त्रियों के शरीर पर दृटि मत डालो, भ्रम में मत पड़ो। जिसे तुम अतीव सुन्दर-सुगठित समझते हो, वह शरीर वास्तव में चर्बी और मांस आदि से विकृत है, इसमें कोई संदेह नहीं है। श्री शंकर पहले चेतावनी देते हैं कि अपनी दृष्टि पर काबू रखो। दृटि को कुमार्ग पर जाने दोगे तो पछताओगे। यह मत सोचो कि सुन्दर शरीर को देखने में क्या दोष है, मैं स्पर्श थोड़े ना कर रहा हूँ। ऐसे विचारों से ही धोखा खाओगे। युवतियों पर दृष्टि डालोगे तो मन में विकार उत्पन्न होने की पूरी संभावना है। तुम्हारा धैर्य कम होता जाएगा। उद्वेग इसी को कहते हैं, और इससे मन नियंत्रण के बाहर चला जाएगा। बार-बार इस बात को ध्यान में लाओ कि यह सौन्दर्य एक भ्रम है, अस्थायी है, मन को बेबस कर देने वाला एक विकार है। आँखे तो एक जरिया बनेंगी मन को वश के बाहर करने की।
त्तात्पर्य यह कि हमें इन्द्रियों के वेग को रोकने का अभ्यास करना चाहिए। गीता यथारूप में श्रील प्रभुपाद ने इसके लिए एक बड़ी आसान विधि बताई है, अपने मन और इन्द्रियों को कृष्ण सेवा में लगा देना। अगर सौन्दर्य-पान की इच्छा हो हीं तो फ़िर सदा शाश्वत श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का रसास्वादन करने में हर्ज हीं क्या है? इद्रियों के वेग को रोकने से हम मन पर काबू रख सकेंगे। इसमें अनुपम आनन्द है। यदि हम इस्द्रियों के वेग को रोकने में सिद्ध हो जाएँ तो हमारा मन अनायास ही शान्त हो जाएगा। मन की इसी शान्ति में शाश्वत आनन्द है।
इस स्थिति को पाने के लिए पहले आँखों को वश में रखने का अभ्यास करना होगा। यह मन की शान्ति के लिए अनिवार्य है। इसीमें हमारा कल्याण है। हमें सच्चे हृदय से इसके लिए प्रयास करना चाहिए। दूसरे हमें साधु-महात्मा कह कर पुकारें, इस नियत से ढ़ोंग कदापि नहीं करना चाहिए।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥
Comments
Prabhu There is some spelling mistake please correct it .
Indriyon ki spelling mistake hai , please correct it , i will write it in separate place after you have completed it .Also tell who is author of this translation ?
Hare Krsna .
Jai Ho Prabhu ..
All Glories To You .