मासाहारी पशुओ की तुलना करते हुवे मानव शरीर की संरचना के वैज्ञानिक अध्ययन किये गए ! इन अध्ययनों के परिणाम स्वरूप निम्नाकित तथ्य सामने आये हैं :-मासाहारी पशुओ के तेज नुकीले पंजे होते हैं ! उनके निचले जबड़े सिर्फ ऊपर -निचे ही चल सकते हैं !मासाहारी प्राणियों के पंजे छोटे मगर तेज नाखूनी होते हैं ,जिससे वे अपने शीकार को मार सके एवं चीर फाड़ कर सके ! वे पानी अपनी जीभ से चाट चाट कर पीते हैं ! उनकी लार अम्लीय होती हैं, उनके गुर्दे अपेछाकृत बड़े होते हैं ,तथा उनके यकृत बड़ी मात्रा में पित रस स्रावित करते हैं !उनकी श्वास - गति तीव्र होती हैं : इस कारण उनका जीवन काल छोटा होता हैं ! सामान्यतया बस दस से पंद्रह साल के बीच ! शिकार पकड़ सकने की खातिर उनको अँधेरे में भी सूझता हैं ! इस के विपरीत मानव के नुकीले पंजे नहीं होते हैं और न उनके दांत बाघ की तरह तेज होते हैं ! मानव को आठ छिप्र जतिक अंगुलिया एवं दो अंगूठे होते हैं जिससे वे पेड़ -पौधों से फल अदि आसानी से पकड़ कर तोड़ सकते हैं ! मानव के जबड़े ऊपर -नीचे एवं दाये-बाये दोनों ओर चल सकते हैं ,जिससे कोई चीज को चबाने में आसानी होती हैं ! उनके दांतों में मुख्यतः चौवा होते हैं जिससे फल ,अनाज आदि चबाने में आसानी होती हैं ! कुत्ते - बिल्लियों जैसे मासाहारी पशुओ को तेज सुवा दांत होते हैं ताकी वे अपने शीकार के शरीर को नोच - नोच कर खा सके , गाय - भैस की तरह मानव प्राणी भी जल की सतह से मुंह सटा कर चूस - चूस कर पानी पीते हैं ! मानव प्राणी की लार छारीय होती हैं, जो फल, दाल , साग - सब्जी, अनाज आदि के भोजनों को पचाने में सहायक होती हैं ! हम मानव की श्वास गती की दर प्रति मिनट पंद्रह बार हैं !इस कारण हमारा जीवन - काल मासाहारी पशुओ की तुलाना में अपेछाकृत अधिक लंम्बे होते हैं ! कछुवा एक मिनट में सिर्फ तीन बार ही साँस लेता हैं और इस कारण वो दो सौ पचास साल तक जी लेता हैं ! रात में अपने शिकार को नहीं पकड़ सके इस लिए मानव को रात में नहीं सूझता हैं !कुछ लोगो की धारणा हैं की मांशभछी अपेक्छाकृत बलवान होते हैं, मगर हाथी, गेंडा जैसे बिशाल जानवर तो साकाहारी ही हैं !शाकाहारियो में बैल, गधे एवं घोड़े अथक रूप से अधिक देर तक कठोर परिश्रम कर सकते हैं वे स्वभाव से भी शांत एवं नम्र होते हैं, जबकि मासाहारी पशु हिंसक होते हैंएक धारणा यह भी प्रचलित हैं कि शाकाहारी भोजन में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में नहीं होते ! पर एक एकड़ में उपजे अनाज से एक एकड़ में जितने भोज्य मवेशी पाले जा सकते हैं ! उनसे पाँच गुणा अधिक प्रोटीन प्राप्त हो सकते हैं मटर आदि अनाज के पौधों में दस गुणा तथा पत्तीदार सब्जियों में पच्चीस गुणा अधिक प्रोटीन मिलते हैं !पोषण विशेषज्ञ का मानना कि दाल, अनाज, ताज़ी, सब्जी दूध एव दही - संतुलित आहार हैं जो प्रयाप्त मात्रा में प्रोटीन प्रदान करते हैं ! साकाहारी भोजन में खनिज लवण एवं विटामिन को पचाने के लिए आवश्यक रसेदार तत्व (रफेज ) रहते हैं ये रसेदार तत्व कब्ज एवं बड़ी आँत के कैंसर का प्रतिकार करने में समर्थ हैं ! यें खून में चिकनाई को घटाते हैं जिससे रक्त - परिचालन सम्बन्धी रोग दूर होते है !मासाहारी भोजन में चिकनाई तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं जिसके कारण दिल के अचानक दौरे की संभावना अधिक होती हैं ! इस में रसेदार तत्त्व ( रफेज ) का भी आभाव होता हैंमासाहारी की आँत अपेछाकृत छोटे होते हैं - सामान्तया तीन से चार फिट लम्बी होती हैं ! इस कारण वे खाए गए मांस के तेजी से सड़ने एवं नुकसानदेह हो जाने के पूर्व ही जल्दी से बाहर निकल पाने में समर्थ हो जाते हैं ! मासाहारी पशु की आँते उनके शरीर की लम्बाई से तीन गुनी लम्बी होती हैं ! मानव सहित साकाहारी प्राणियों की आँते उनकी शरीर की लम्बाई से दश गुणी अधिक लम्बी होती हैं ! मानव की आँत करीब बारह - तेरा फीट लम्बी होती हैं क्योंकि साकाहारी भोजन को पचने में अधिक समय की जरुरत होती हैं मानव के पाचक अम्ल कम तीखे होते हैं ! मासाहारी प्राणी के पाचक - अम्ल मानव के पाचक अम्ल से बीस गुना अधिक तीखे होते हैं इस कारण खाए गये मास को पचाने में सहायक होते हैं, अन्यथा वे मासाहारी जंतु के शरीर को विषाक्त बना दे ! मानव आँत में भोजन अपेछाकृत अधिक समय तक ठहरता हैं यदि आदमी मांस खाता हैं तो पाचन की पूरी क्रिया के लिए यह बहुत समय तक आंत में ठहर जाता हैं इस कारण तब वह विषाक्त हो जाता हैं ! अब चूँकि विषाक्त मांस आँत में अधिक देर ठहर जाता हैं तो आँत की दीवार विष को अवशोषित करने का अधिक समय पा लेंता हैं इस के आलावा पशु वध के समय भयभीत जानवर के शरीर में विष स्रावित होंते हैं जब मानव इस विषैले मांस को खाते हैं तो शाररिक और मानशिक तौर पर वे प्रभावित हुवे बिना नहीं रहते !अर्जेंटीना एवं उरुग्वे में दक्षिण अफ्रीका के अन्य भागो की अपेछा अधिक मांस खाए जाते हैं ! इसी कारण वहां आंत के कैंसर का अधिक प्रसार हैंअतः निष्कर्ष यही हैं कि मानव प्राणी स्वभावतः साकाहारी हैं ! तो भी कुछ लोगो का मानना हैं क़ि मानव मासाहारी साकाहारी दोनों हैं वस्तुतः सत्वगुणी मानव मांस कभी खाते ही नहीं जब की रजोगुणी एवं तमोगुणी मानव सिर्फ अपनी जिह्वा के लिए मांस भक्षण करते हैं मानव के लिए पशु क़ी हत्या करना एवं उसका भक्षण करना घोर पाप - कर्म हैं ऐसे लोग प्रकृति केनियम का पालन नहीं करते ! यदि किसी बाघ को मांस खाने के लिए न मिले, तो वह घास तो नहीं खाता ! इस प्रकार पशु प्रकृति के नियम का पालन कड़ाई से करते हैं ! परन्तु यधपि मानव साकाहारी ही बनाये गये हैं, फिर भी वे पशु मांस खाते हैं और इस प्रकार वे भगवान के नियम को तोड़ते हैं ! ऐसे लोग अपनी चेतना में पाशविक होते हैं एक कहावत हैं - जैसा अन्न वैसा मन सिर्फ साकाहारी होने से काम नहीं चलेगा ! आखिर कबूतर और बन्दर भी यो साकाहारी ही होते हैं भारतीय परिवारों में धार्मिक अनुष्ठानो क़ी कभी एक परम्परा रही हैं क़ि खाने से पहले वे अपने भोजन का भोग लगावे ! भगवान श्री कृष्ण भगवद गीता (3,13 ) में कहते हैं -----यज्ञशिष्टाशिन: सन्तोमुच्यन्ते सर्वकिल्बिषै:भुज्जनते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात ( 3,13); भगवान के भक्त सभी पापो से मुक्त हो जाते हैं ; क्योंकि वे यज्ञ में अर्पित किये गए भोजन ( प्रसाद ) को ही खाते हैं ! अन्य लोग जो अपने इन्द्रिय सुख के लिए भोजन बनाते हैं वे निश्चित रूप से पाप ही खाते हैं ! ;इस प्रकार हमें साकाहार से आगे ,,कृष्ण प्रसादम,,आहार तक जाने की जरुरत हैं ! भगवान कृष्ण भौतिक पदार्थ का अध्यात्मिकरण अपनी दैवी शक्ति से कर देते हैं ! प्रेम एवं भक्तिपूर्ण - भाव से भगवान कृष्ण के लिए तैयार किये गए एवं भोग लगाये गए भोजन में अध्यात्मिक पवित्रता आ जाती हैं ! ऐसे भोजन " कृष्ण प्रसादम "कहलाते हैं जिसका अर्थ होता हैं भगवान कृष्ण की कृपा ! इस से भगवान कृष्ण के साथ आत्मा का जो मूलतः सम्बन्ध हैं, उसके प्रति जागरूकता पैदा होती हैं और इस प्रकार मानव जीवन धारणा का जो मूल उद्देश्य हैं वह हमें प्राप्त होता हैं !इस भ्रामक कथन का विश्वास नहीं करना चाहिए क़ि अंडे तो मासाहारी नहीं होते हैं ! क्योंकि यह भी एक प्रकार की भ्रूण हत्या ही हैं ! वैष्णव दर्शन के अनुसार हमें पेड़ पौधों क़ि भी अनावश्यक रूप से हत्या नहीं करनी चाहिए भगवद गीता के श्लोक ( 9,26 ) भगवान कृष्ण कहते हैं ;" यदि कोई प्रेम तथा भक्ति के साथ मुझे पत्र, पुष्प, फल, या जल भी प्रदान करता हैं तो मैं उसे स्वीकार करता हूँ ! :"हम लोग कृष्ण को वाही भोजन भोग लगाते हैं, जो वे चाहते हैं और तब ही हम बचे भोजन को खाते हैं ! यदि साकाहारी भोजन का भोग लगाना पापपूर्ण हो तो यह कृष्ण का पाप माना जायगा, हमारा नहीं परन्तु भगवान तोअपापविद्व हैं यानि पापपूर्ण प्रतिक्रिया उनपर लागु नहीं होती ! भगवान को भोग लगाने के उपरांत बचे भोजन का खाया जाना वैसा ही कर्म हैं जैसा की युद्ध में किसी सैनिक द्वारा हत्याकर्म ! किसी युद्ध में जब सेनापति एक सैनिक को आक्रमण की आज्ञा देता हैं तो वह सैनिक जो आज्ञापालन में शत्रु की हत्या करता हैं, तो वह पुरस्कृत होता हैं परंतु जब वही सैनिक अपने किसी साथी सैनिक की हत्या कर देता हैं तो उसके लिए उसे दंड मिलता हैं ! उसी प्रकार जब हम भगवान को लगाये भोग स्वरूप प्रसाद को खाते हैं तो हमें कोई पाप नहीं लगता ! यह भगवद्गीता के (३,१३) श्लोक में निश्चित कर दिया गया हैं ! भोजन में विद्यमान जीवाणुओ को भोजन करते समय जब हम खा जाते हैं या साँस लेते समय हवा में विद्यमान जीवाणुओ को छति पहुचाते हैं तो यह भी एक हत्या एवं पापपूर्ण कर्म हैं ! हरे कृष्ण के महामंत्र के जप कर लेने से उन सभी प्रकार के पापकर्म से मुक्ति मिल जाती हैं जो हमसे अनजाने में हो जाते हैं !अतः भगवान के भक्त सभी प्रकार के पापो से मुक्त हो जाते हैं क्योंकि वे यज्ञ में अर्पित किये गए भोजन ( प्रसाद ) को ही खाते हैं अन्य लोग अपने इन्द्रिय सुख के लिए भोजन बनाते हैं वे निश्चित रूप से वे पाप ही खाते हैं तथा अपने कर्म का फल भोगते हैं हरे कृष्ण का जाप ही ध्यान की परिपूर्णता हैं !!जप ध्यान के लिए एक निर्देश i ज़प - ध्यान के स्वर्ण नियम1 - सफल ध्यान के लिए भगवान श्री कृष्ण की पूर्ण कृपा प्राप्त करने के लिए प्रथमतः :इस पञ्च - तत्त्व महामंत्र का जप करे जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद ! जय अद्वैत गदाधर श्रीवासादी गौर भक्त वृंदा !!2 - माला के प्रत्येक दाने के साथ इस महामंत्र का पूर्ण जप करे !हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !! हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!3 -प्रतेक शब्दांश को साफ - साफ जोर - जोर से उच्चारित करे !4 -महामंत्र के प्रत्येक प्रतिध्वनी को ध्यानपूर्वक एकाग्र मन से सुने तथा प्रसन्न रहे !!हरे कृष्ण -------------------- हरे रामPleash chant & bi Happyहरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरेहरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरेवत्सल मुरारी .... दास विनोद.... विनोद वत्सल मुरारी दास
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