नवरात्रि के पावन उत्सव पर सभी को बधाई। माँ दुर्गा जो इस भौतिक जगत रूपी दुर्ग की स्वामिनी हैं, भगवान श्री कृष्ण की बहिरंगा शक्ति महामाया हैं। जैसा ब्रह्म संहिता में वर्णन आता है," सृष्टि स्थिति प्रलय साधन शक्ति रेका, छायेव यस्य भुवनानि विभर्ति दुर्गा, इच्छानुरूपम अपि यस्य च चेस्टते सा गोविंदम आदि पुरुषं तमहं भजामि"। महामाया दुर्गा भगवान की अंतरंग शक्ति की छाया स्वरूप हैं और भगवान की ही इच्छा से इस जगत में समस्त जीवों को भगवान से विमुख कर उन्हें स्वतंत्र भोग करने की सुविधा प्रदान करती हैं। महामाया शक्ति दो प्रकार से कार्य करती हैं यथा आवरणात्मिका एवं प्रक्षेपात्मिका। प्रथम प्रकार में वे समस्त जीवों के चित् को माया द्वारा आवरित कर उनके निज स्वरूप जो भगवान का दासत्व है का विस्मरण कराती हैं जिससे जीव भगवान को भूलकर संसार में निरंतर स्वतंत्र भोगरत होता है। दूसरे प्रकार में महामाया शक्ति भगवान की भक्ति में लगे साधकों को नाना प्रकार के प्रलोभन और समस्या देकर उन्हें भक्ति मार्ग से प्रक्षेपित अर्थात दूर करती हैं। हम यह प्रश्न कर सकते हैं कि दुर्गा देवी जो स्वयं वैष्णवी हैं इस प्रकार क्यों कार्य करती हैं। वस्तुतः दुर्गा देवी ऐसा कर भगवान की विशेष सेवा करती है और वो सेवा है उन जीवो की इच्छा को पूर्ण करना जो अपनी स्वाभाविक स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर भगवान से विमुख होकर स्वयं भोगोन्मुख होना चाहते हैं। भक्तों के जीवन में माया देवी नाना प्रकार के प्रलोभन एवं समस्याओं के माध्यम से उनकी श्रद्धा की परीक्षा लेती हैं और अगर कोई दृढ़ता पूर्वक जीवन के हर मोड़ पर भगवान एवं भगवद भक्ति के अनुकूल कार्यों का चुनाव करता है, तो वे स्वयं उस जीव को भगवान का सानिध्य लाभ कराती हैं।भगवान की शक्ति होने के कारण दुर्गा देवी जीवों की समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। आईये हम सब शक्ति दुर्गा देवी से शक्तिमान श्रीकृष्ण के भक्ति प्रसाद की याचना करें। इस प्रकार की याचना दुर्गा देवी को परम आनंद प्रदान करती है और वे भक्तों की हर परिस्थिति में रक्षा करती हैं। इस संदर्भ में श्रीमद भागवत महापुराण में वर्णित जड़भरत जी की लीला उल्लेखनीय है। जड़भरत भगवान के शुद्ध भक्त थे और भगवान की विशेष अनुग्रह से उन्हें अपना पूर्व जन्म जो राजा भरत के रूप में था का स्मरण था। उन्हें यह स्मरण था कि किस प्रकार जीवन के अंतिम क्षणों में एक हिरण के प्रति आसक्त होने कारण उन्हें अगला जन्म हिरण के रूप में लेना पड़ा था। जड़भरत दुबारा वह भूल नहीं करना चाहते थे अतः प्रमत्त अवधूत की भांति इधर उधर घूमते थे और हृदय में पूर्णतः श्री कृष्ण को शरणागत थे। एकबार वन में विचरित करते हुए उन्हें कुछ हत्यारे लुटेरों ने पकड़ लिया जो एक ऐसे सुगठित शरीर वाले मनुष्य की तलाश में थे जिसे महाकाली को बलि स्वरूप अर्पित किया जा सके। उन लुटेरों को जड़भरत बलि हेतु अत्यंत उपयुक्तपात्र लगे अतः उन्हें पकड़कर लुटेरों के मुखिया के समक्ष एक गुफा में ले जाया गया जहां महाकाली के विग्रह के समक्ष बलि की पूरी तैयारी थी। जैसे ही लुटेरों के मुखिया ने महाकाली का आह्वाहन कर जड़भरत की बलि देने हेतु खड़ग उठाया, महाकाली स्वयं आक्रामक हो प्रकट हुईं और खड़ग से मुखिया समेत समस्त लुटेरों का वध कर जड़भरत को अभय प्रदान किया। जड़भरत भगवान के शुद्ध भक्त थे अतः महाकाली ने उनपर विशेष रूप से अनुग्रह किया।।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे।।
E-mail me when people leave their comments –

You need to be a member of ISKCON Desire Tree | IDT to add comments!

Join ISKCON Desire Tree | IDT