समय
लाभ उठाओ या गंवाओ
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निम्नलिखित आध्यात्मिक गुरू महाविष्णु गोस्वामी महाराज के द्वारा साउथ अफ्रीका मे दिए गए प्रवचन का अंश है।
"अपने कर्तव्यों से भागने की आवश्यकता नहीं है, अपितु उनके प्रति जागरूक होने की आवश्यकता है। स्थिति से भागने की नहीं अपितु आप जैसी भी स्थिति में हैं उसमें जागरुक होने की आवश्यकता है। और हमें यह पता होना चाहिए कि स्थितियाँ चाहे वे जैसी भी हों - अच्छी या बुरी - केवल कुछ समय के लिए ही हैं। वे प्राकृतिक रूप से अनित्य है। आज नहीं तो कल परिस्थितियाँ बदल जाएँगी क्योंकि इन परिस्थितियों का मूल कारण हमारा शरीर है जो प्रत्येक क्षण बदलता रहता है।"
श्रीमद् भगवद्गीता के अध्याय 2, श्लोक संख्या 13 में कहा गया है,
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्ति धीरस्तत्र न मुह्रति।।
देहिनो, आत्मा, देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा, ने इस अनित्य शरीर को स्वीकारा है। इस शरीर में यह आत्मा पहले बालक थी। हम दो साल के थे, चार साल के थे, दस साल के थे। वे सब शरीर अब नहीं रहे। आज आप युवास्था, या अधेड़ उम्र या वृद्धावस्था में हो, यह शरीर भी जल्द बदल जाएगा।
श्रीमद् भागवतम् में कहा गया है कि, देहान्तरम् अनुप्रप्या, यह देह बदलती रहेगी और हमें हमारे कर्मो के अनुसार दूसरा देह प्राप्त करना होगा। यह क्रम लगातार चलता रहेगा और हम यह नहीं जानते कि यह समय इस सबका प्रत्यक्षीकरण है।
और इसी तरह से श्रीकृष्ण सब कुछ नियंत्रित करते हैं। यह कहा जाता है कि यह कुर्सी बनाई गई, यह मेज बनाई गई और अनेक उपकरण बनाए गए। अब इस समय ये बनाए जा चुके हैं और हम इनका इस्तेमाल कर रहे हैं। समय आने पर ये बेकार हो जाएगें और हमारे किसी काम के नहीं रहेंगें। यही विनाश है। यह सब भौतिक वस्तुएँ भी समय के बनाए गए कानून के अंतर्गत है। और यह अनन्त समय श्रीकृष्ण भगवान् के हाथों का एक अस्त्र है जिससे भगवान् श्रीकृष्ण सब कुछ नियंत्रित करते हैं और इस क्षेत्र में हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हम जीवात्माएँ कुछ भी या बहुत कुछ नियंत्रित कर सकतीं हैं किंतु समय हमारे नियत्रंण से बाहर है। हो सकता है आपके पास बेशुमार धन-दौलत हो, आप बहुत सुंदर शहर में रह रहे हों परंतु आपके शरीर को बूढ़ा होना ही पड़ेगा। और इसमें आप कुछ नहीं कर सकते। जैसे ही जीवात्मा यह समझ लेती है कि इस भौतिक जगत में जो कुछ भी हो रहा है, उसका एकमात्र कारण भगवान् है, वैसे ही वह जीव श्रीमद् भगवद्गीता की आवश्यकता और उसकी महिमा को समझ जाता है। वह भगवान् कृष्ण की महिमा का गान भी करने लगता है और एक साफ सुथरा जीवन व्यतीत करने लगता है। जैसे ही हम ये सब समझ लेते हैं, हम भगवान् के महिमा ज्ञान के निकट आ जाते हैं क्योंकि समय उन्हीं के वश में है, हमारे वश में नहीं। और यहाँ हम असहाय हो जाते हैं।
यदि आप अपना समय बर्बाद करते हैं, तो वह समय कभी वापस नहीं आएगा - कृष्ण एकोऽपीना लभ्ये स्वर्ण कोटिभि(चाणक्य श्लोक 35)। शायद आप लाखों डालर खर्च करने के काबिल हो परंतु फिर भी आप आज की सुबह वापस नहीं पा सकते। इसलिए आपको समय का बहुत सोच-समझ कर उपयोग करना चाहिए। अपने समय का कुछ इस तरह उपयोग करना चाहिए कि आप कुछ उत्पादक कर सकें। अन्यथा अगर समय हाथ से निकल गया तो वह वापस नहीं आएगा। अगर आप उसका सदुपयोग करते हैं तो उसमें आपका ही लाभ होगा। और यदि आप इसे ऐसे ही गवां देते है तो आप ही का नुकसान होगा, समय चला जाएगा। जो यह बात समझ लेता है वह भगवान् से जुड़ जाता है क्योंकि समय सिर्फ उन्हीं के वश में है। और यदि आप भगवान् को प्रसन्न कर पाते है तो हो सकता है कि समय का दुष्प्रभाव आपके शरीर, वस्तुओं या परिवार पर ना पड़े। और यही मुक्ति का वास्तविक अर्थ है कि हम समय के प्रभाव से मुक्त हो जाएँ।
आप देख सकते है कि दो साल के अंतराल में भगवान् के भक्त और भी जवान हो गए, बूढ़े नहीं हुए हैं। कुछ हद तक उन्होंने समय पर काबू पा लिया है क्योंकि समय के संचालक भगवान् उनके अधिकार में है। भगवान् श्रीकृष्ण इतने दयालु-कृपालु है कि वे अपने भक्तों के भी दास बन जाते ह और भक्तगण उन पर अपना पूरा अधिकार समझते हैं। इसलिए अगर आप हर पल कृष्ण पर अपना अधिकार रखेंगे, उन्हें याद करेंगें तो समय आपके वश में हो जाएगा।
धन्यवाद ।
Chant,
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna
Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama
Hare Hare
and be happy.
Comments
very well prabhu g........
Dandwat Pranam
Very nice pr.
Thank You
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