इस संसार का उद्देश्य भौतिक विषय सुख के हर प्रयास में हमें ज्यादा से ज्यादा हताश और निराश करना है। यह बात विचित्र प्रतीत हो सकती है लेकिन सत्य है। श्रील प्रभुपाद ने अमेरिका में एक बार हिप्पियों को संबोधित करते हुए कहा कि सम्पूर्ण अमेरिकी समाज आपकी निंदा यह कह कर करता है कि आप सब हताश एवं निराश लोग हैं। लेकिन, मैं आपकी प्रशंशा करता हूँ क्योंकि, निराशा को प्राप्त होना ही इस भौतिक सृष्टि का उद्देश्य है और संसार के प्रति निराशा भगवान के प्रति आकर्षण उत्पन्न कर सकती है। श्री भगवान का सनातन अंश होने के कारण आध्यात्मिक जीव कभी भी सांसारिक विषयों में शाश्वत आनंद प्राप्त नहीं कर सकता। ऐसा अनुभव हम प्रतिदिन करते हैं जब हमें क्षणिक इन्द्रीय सुख के साथ ढेर सारी असुविधाएं भी प्राप्त होती हैं। भौतिक इन्द्रिय सुख की नई नई योजना बनाने के क्रम में अंततः मृत्यु के रूप में हमें निराशा ही हाथ लगती है और ना जाने कितनी इच्छाएं मृत्यु के साथ अधूरी रह जाती हैं। इन इच्छाओं की पूर्ति हेतु जीव इस संसार में पुनः जन्म लेता है और उसकी इच्छा के अनुरूप ही उसे मनुष्य, पशु या किसी अन्य योनि का शरीर धारण करना पड़ता है। जीव अपने वास्तविक स्वरूप जो कि भगवान का शाश्वत अंश होने के कारण उनकी सेवा करना है को भूलने के कारण अनंत काल से संसार चक्र में पड़ कर निराशा को प्राप्त होता रहा है। बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि इस निराशा का मूल कारण जान कर , इसे श्री भगवान की अनुकंपा समझ कर अपने को भगवान की सेवा में स्थित करे । निराश व्यक्ति का एक मात्र आश्रय भगवान स्वयं है।इस प्रकार के समझ या बुद्धि को प्राप्त करने का तरीका श्री हरिनाम जप है जो भगवान की अहैतुकी कृपा को आकर्षित करता है।।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
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