आपसे सूना ये असीम अम्बर

इसकी भला क्या हमें जरुरत

आपकी कभी न दिखे है छवि

फिर क्यों रोज उगता है ये रवि.

चाहूं कि बादल में, पानी में

हर जगह ही आपको मै देखूं.

पर अब तक आप दिखे न मुझे

ये देखने की कला कैसे मै सीखूं.

पानी का स्वाद या चाँद की चाँदनी

हर जगह ही आप मौजूद सदा है.

ये हवाओं के झोकें, ये बादल की बूंदे

ये सब भी तो आपकी ही अदा है.

मुझ जैसे अज्ञानी, अधम पापी को

कण-कण में आप दिख पाते नही.

जहाँ लेकर गैया बजाये आप वंशी

प्रभु मुझे भी वहीँ क्यों बुलाते नही.

मुझे भी वहीँ क्यों बुलाते नही..........................

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