ये मुरलीवाला, नंद का लाला

ब्रज का ये सुन्दर-सा  ग्वाला.

जिसके इशारों पे नाचे ये सृष्टि

नचा रही हैं उसे ब्रज की बाला.

होगा ये परमेश्वर वैकुंठ में अपने

यहाँ तो है इसने माखन चुराया.

बचना है तो भागना ही पड़ेगा

सुदर्शन भी नही यहाँ काम आया.

ज्ञानी, ध्यानी जन्मों  लगाकर

जिसका ध्यान अपनी ओर खींचे.

वेद-पुराण गाये जिनके गान वो

भाग रहा है देखों गायों के पीछे.

स्तुति नही मिल रही है गाली

मैया की मार भी खानी पड़ती.

फिर भी प्रभु को  तीनों लोकों में

सबसे प्यारी है ब्रज की धरती.

प्रभु के इस घर आँगन में अगर

रहने का कभी भाग्य मिले मुझे.

करोड़ों जन्म मै राह तकूँ कभी

माखन चुराते वे दिख जाए मुझे.

कभी माखन चुराते वे दिख जाए मुझे...............

!!कभी माखन चुराते वे दिख जाए मुझे...............!!

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