राधारमण , श्यामसुंदर, बांकेबिहारी

किसी की भी सूरत न हमने निहारी.

गुजरते-गुजरते साल ही गुजर गया

पर हो न पायी देखो मुलाकात हमारी.

कहते हैं सब मन में बसाओ वृन्दावन

मन से ही यात्रा और मन से ही दर्शन.

पर इन आँखों को मै समझाऊं कैसे

करे जो हर क्षण,ब्रज दर्शन को क्रंदन.

मलिन मन ठहरे नही जो करूं चिंतन

ह्रदय में भी न कोई भाव न है  भक्ति.

न ही है प्रेम प्रभु से, न ही लाड प्रभु से

उस पर  जगत से है इतनी आसक्ति.

ऐसे में तो दर्शन बिना न काम बने

क्योंकि संस्कारों  मै बहुत ही नीचे हूँ.

बड़ी-बड़ी साधना न हो पाती मुझसे

क्योंकि भक्ति में भी बहुत पीछे हूँ.

इस नए साल में एक उपहार दे दो

कि तेरे ब्रज में कुछ दिन बीत जाए.

राधारमण, श्यामसुंदर, बांकेबिहारी

इन नयनों में एकबार फिर से समाये.

!!इस नए साल में एक उपहार दे दो कि तेरे ब्रज में कुछ दिन बीत जाए!!

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