दायें हाथ में चाबुक और
लिए बाएं हाथ में लगाम.
हे पार्थसारथी ! आपके सिवा
और किसे करूँ मै प्रणाम.
जिनकी दृष्टि से सृष्टि
हो जाती है चलायमान.
कैसे हांक रहे स्वयं रथ
कर अर्जुन को विराजमान.
तीनों लोकों के स्वामी
चौदहों भुवनों के पति.
बनकर बैठे हैं सारथी
बनाया भक्त को रथी.
भक्तों से करे जो ऐसे प्रेम
छोड़ उसको हम किसे भजे.
छोड़ दे भले सारा जग साथ
पर कृष्ण हमें कभी न तजे.
हे भक्तों के पालक, प्रेमी, प्रभु
सेवा में अपनी हमें भी लगा लो.
बिगड़ गई है मेरी मति व गति
आपकी ही हूँ आप ही संभालो.
!!दायें हाथ में चाबुक और लिए बाएं हाथ में लगाम. हे पार्थसारथी ! आपके सिवा और किसे करूँ मै प्रणाम!!
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