हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता,
कहहिं सुनहिं बहु विधि सब संता,
गोपाल हरि केशव अरिहन्ता,
मन भज ले रे तू गोविंदा ||
मल-मूत्र-मांस, पस-कीट शरीरा,
भया भ्रमित सुमंद मति धीरा,
जन्म कोटि सब जायें बिरथा,
मन भज ले रे तू गोविंदा ||
ना मान रहे नाही अपमान,
ना रहूँ मैं, बस रहें राम,
हे अकिञ्चन गोचर जगन्नाथा,
मन भजे सदा ही गोविंदा ||
हे करुणासिन्धु दीनानाथ,
गोवर्धनधारी गोपीनाथ,
दो वर मैँ प्रतिपल तुमको ही ध्याऊँ,
प्रतिक्षण प्रतिकण तुमको ही पाऊँ,
मनमोहन जगदीश मुकुंदा,
मन भजे सदा ही गोविंदा ||
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