इसका न है कोई कर्मकांड
जब भी चाहो ले लो नाम
इसका न है कोई कडा विधान
क्या पिता का नाम लेने में
करनी होती है कोई तैयारी
उसी सहजता से लेनी है
अब परमपिता की है बारी
तुलसी की माला हो और
उसमे मनके एक सौ आठ
सबसे ऊपर होता है सुमेरू
जहाँ होती माले की गाँठ
जहाँ से प्रारंभ होती माला वो
होता सुमेरू के बाद पहला मनका
सबसे पहले पढ़ते हैं क्षमा मंत्र फिर
यही से शुरू होता जाप महामंत्र का
एक-एक कर जब मनके सारे
हरि कीर्तन से ख़त्म हो जाते है
तब जाके एक बार फिर हम
सुमेरू पे वापस लौट कर आते हैं
यहाँ रखना होता है एक ध्यान
सुमेरू को हम पार नही है करते
दूसरी माला को करने के लिए
माला को दूसरी तरफ हैं पलटते
क्योंकि सुमेरू होते है साक्षात कृष्ण
फिर उन्हें हम कैसे लाँघ सकते है
एक सौ आठ मनके हैं उनकी गोपियाँ
जिनके चरण दबा कृष्ण तक पहुँचते हैं
इसी तरह करनी होती है हमें माला
पूरे दिन कभी भी बस सोलह बार
इतनी सी मेहनत तो करनी होती
और हो जाता भवसागर भी पार
इसे करने की विधि है बहुत सरल
ना कोई खर्च न ही कोई बंदिश
किसी धर्म का किसी जात का
इसमें किसी से हैं न कोई रंजिश
फिर आज से ही शुरू करे हम
सोलह माला का अपना अभ्यास
क्योंकि वक़्त बितता जा रहा
पर हमें नही हो पाता है आभास
Comments
Thanks for this beautiful peom once again. I think this can be printed and put up in houses and temples for public inspiration, on nice banners. pls inform if u wd like to replace some urdu words with hindi.