आहार,निद्रा,भय और मैथुन
ये तो पशु भी है करते
गौर करे तो हम भी बस
दिन-रात इसी में लगे है रहते
सुबह से शाम मेहनत करते
हेतु होता है बस भोग ही भोग
ये जीवन आप में है एक दुःख
उसपे पाले है और कितने रोग
रोग ही तो है ये भोग की प्रवृति
और अस्थायी से इतनी आसक्ति
रोग इस कदर है फ़ैल चुका कि
कडवी लगती है हमें प्रभु भक्ति
जितनी जकड़ी बीमारी है होती
उतनी ही दवा कडवी है लगती
माया से जकडे बद्ध जीवों को
भक्ति भी ऐसी ही है लगती
जितनी कडवी भक्ति हमें लगे
उतनी ही हमें आवश्यकता है
मुक्ति के लिए भक्ति करनी ही होगी
ये हर इंसान की विवशता है
जिसने जितनी जल्दी माना
उतनी ही जल्दी त्राण वो पाया
जो इसे समझ न पाया उसे तो
माया ने बड़ा ही नाच है नचाया
भक्ति है एक मात्र सहारा
भवसागर से उबरने का
सावरिया के चरण कमल को
प्रेम से पकड़ने का
Comments
So nice & truth of this life