पसीने से तरबतर
गला भी सूखने लगता है
छटपटाहट में जान जाने को होती है
ऐसी समस्या कि
दिल बैठने लगता है
आँखों में बस आसूं की लड़ी होती है
कभी इतनी खुशी कि
हँसी फ़ैल जाती बरबस होठों पे
जो सोचा भी न था
वो भी क़दमों तले आ जाता है
हर रात को अक्सर
हमारे साथ ये बातें होती है
कभी हँसते कभी रोते
सुबह हमारी आँखें खुलती हैं
हँसी आती खुद पे
अरे ! ये तो सपना था
और मैंने कई रिश्ते बनाकर
एक जिन्दगी भी जी ली इसमें
जिसे हम अंधाधुंध जिए जा रहे है
वो जीवन भी तो एक सपना है
जिस दिन आँखें खुल जायेंगी
उस दिन कहाँ कोई फिर अपना है
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