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Comments

  • Volunteer

    Hare Krsna!!
    Wish you a very happy KC b'day, May lord Sri Krsna & Smt. Radha Rani blessed you always. We pray to supreme personality of godhead (Krsna) that this is your last birth in this material world & you never take birth again in this material world.
    Hari Bol

  • happy bday !!

    may u have a krishna conscious year ahead !! 

  • HARE KRSNA
  • The only qualification in devotional service

    The question may be raised that since the Lord is supposed to be worshiped
    by great demigods like Lord Brahma, Lord Siva and others, how can an
    ordinary human being on this planet serve Him? This is clearly explained by
    Prthu Maharaja by the use of the word yathadhikara, “according to one’s
    ability.” If one sincerely executes his occupational duty, that will be
    sufficient. One does not need to become like Lord Brahma, Lord Siva, Indra,
    Lord Caitanya or Ramanujacarya, whose capabilities are certainly far above
    ours. Even a sudra, who is in the lowest stage of life according to the
    material qualities, can achieve the same success. Anyone can become
    successful in devotional service provided he displays no duplicity. It is
    explained here that one must be very frank and open-minded (amayinah). To be
    situated in a lower status of life is not a disqualification for success in
    devotional service. The only qualification is that whether one is a
    brahmana, ksatriya, vaisya or sudra, he must be open, frank and free from
    reservations. Then, by performing his particular occupational duty under the
    guidance of a proper spiritual master, he can achieve the highest success in
    life. As confirmed by the Lord Himself, striyo vaisyas tatha sudras te ‘pi
    yanti param gatim (Bg. 9.32). It does not matter what one is, whether a
    brahmana, ksatriya, vaisya, sudra or a degraded woman. If one engages
    himself seriously in devotional service, working with body, mind and
    intelligence, he is sure to be successful in going back home, back to
    Godhead.
  • bhaktya tv ananyaya sakya
    aham evam-vidho ‘rjuna
    jnatum drastum ca tattvena
    pravestum ca parantapa

    “My dear Arjuna, only by undivided devotional service can I [as nama-rupa avatara] be understood as I am, standing [dancing] before you [on your tongue], and can thus be seen directly [in the proper light]. Only in this way can you enter into the mysteries of My understanding.” (Bg. 11.54)
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    बन में बिहारी बैठ,बंसी बजावे
    बंसी बजावे लाल बंसी बजावे
    पक्षी के पर उड़ नहीं पावे
    गिरत परत मोहन डिग आवे
    मृग कलोले करना भूले
    इकटक लखत पलक न झपावे
    मोहिनी मोहन दार गए हैं
    सखी हमको नहीं चैन न आवे
    वृक्षण की डालन बहु झूमे
    बिहारी जू लाली को झूला झुलावे
    सुध बुध भूले याद न आवे
    नन्द नंदना जब नैन मिलावे
    'हरिदासी' टोना करि डारा
    बार बार यमुना तट जावे

    http://lh3.ggpht.com/_404ckE8WPeI/SoFWdC55gpI/AAAAAAAAAVQ/BPlblD0NR...
    मेरे श्याम मुखडा कहे को मोडा
    मोहब्बत ने हमको कही का न छोडा
    दोनों तरफ से मारे गए हम
    कोई भी रास्ता तुमने न छोडा
    मेरे गम की कोई बात करो न
    मंजिल में आकर के राही को मोडा
    मेरे जख्म पे कोई दवा न लगाना
    मेरे प्यारे ने चौरस्ते पे छोडा
    दुनिया पे हमको भरोसा नहीं हैं
    दुनिया के मालिक ने क्या कर के छोडा
    मेरे साथ कोई भी बातें करो न
    दिल ले गया हैं सांवल सलोना
    मेरी इस दशा पे हसना न कोई
    मोहन ने समझा हैं हमको खिलौना
    'हरिदासी' कुछ भी गिला न करेंगे
    पता भी न चला वोह कर गया टोना
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    बलिहारी जाऊ मेरी छोड़ गगरी
    श्याम सांवरे मेरी छोड़ गगरी
    इस गगरी में जल भर लाऊ
    ठाकुर के मैं चरण धुआऊं
    खाने को दू मैं प्यारी रबडी
    इस गगरी में ढूध भर लाऊ
    प्रेम से श्याम को भोग लगाऊ
    मोहे प्यारी लागे तेरी गोकुल नगरी
    इस गगरी में माखन भरुंगी
    श्याम के आगे जाके धरुँगी
    वृन्दावन धाम हैं प्यारी नगरी
    'हरिदासी' बृजराज कन्हैया
    नाचत निधिवन थैया थैया
    चरणों में रहे तेरी प्रेम पगली
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    निगाहों में यूँ बात होने लगी
    प्यार की ही बरसात होने लगी
    मेरे होंठो पे बसा श्याम ही श्याम हैं
    कैसे कह दूँ? उन्ही से हमे काम हैं
    अब उन्ही से मुलाकात होने लगी
    छवि मोहन की नैनो में हैं बस गयी
    आँखों में राधारानी हैं सज गयी
    हर पल उनसे ही बात होने लगी
    'हरिदासी' हैं उल्फत तो वोह पास हैं
    प्यार से मिलता मोहन यही राज हैं
    दीखता कण कण में, अब बात होने लगी
  • http://lh6.ggpht.com/_404ckE8WPeI/SmrgyM1vr7I/AAAAAAAAASs/Z0m3vKjE4...
    कितना नसीब होता वोह सामने ही होता
    वोह साँवरा मुरारी,मेरे करीब होता
    मिट्टी में आँसू जो गिरे सब देखते रहे
    अछा ही होता-पोंछने वाला भी साथ होता
    उनके ही राज में हम,महफिल में बेठे हैं
    कितना ही अछा होता,जो देख लिया होता
    सुना हैं करुना से भरा दिल हैं हजूर का
    क्या जाता आपका,जो दिल से लगाया होता
    आपकी चुप से समझा,के जमाना भी बुरा हैं
    अछा ही होता जो हमे,दिला में छिपाया होता
    बोलो जरा तो मोहन,'हरिदासी' अर्ज पे
    मीठा सा कुछ बोल के,कुछ हँस दिया होता
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