subodhdubey (23)

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अध्याय इकतीस – प्रचेताओं को नारद का उपदेश (4.31)

1 महान सन्त मैत्रेय ने आगे कहा: तत्पश्चात प्रचेता हजारों वर्षों तक घर में रहे और आध्यात्मिक चेतना में पूर्ण ज्ञान विकसित किया। अन्त में उन्हें भगवान के आशीर्वादों की याद आई और वे अपनी पत्नी को अपने सुयोग्य पुत्र के जिम्मे छोड़कर घर से निकल पड़े।

2 प्रचेतागण पश्चिम दिशा में समुद्रतट की ओर गये जहाँ जाजलि ऋषि निवास कर रहे थे। उन्होंने वह आध्यात्मिक ज्ञान पुष्ट कर लिया जिससे मनुष्य समस्त जीवों के प्रति समभाव रखने लगता है। इस तरह वे कृष्णभक्ति में पटु हो

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अध्याय तैंतीस – कपिल के कार्यकलाप (3.33)

1 श्री मैत्रेय ने कहा : इस प्रकार भगवान कपिल की माता एवं कर्दम मुनि की पत्नी देवहूति भक्तियोग तथा दिव्य ज्ञान सम्बन्धी समस्त अविद्या से मुक्त हो गई। उन्होंने उन भगवान को नमस्कार किया जो मुक्ति की पृष्ठभूमि सांख्य दर्शन के प्रतिपादक हैं और तब निम्नलिखित स्तुति द्वारा उन्हें प्रसन्न किया ।

2 देवहूति ने कहा: ब्रह्माजी अजन्मा कहलाते हैं, क्योंकि वे आपके उदर से निकलते हुए कमल-पुष्प से जन्म लेते हैं और आप ब्रह्माण्ड के तल पर समुद्र में शयन करते रहते हैं। लेकिन

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ॐ श्री गुरु गौरांग जयतः

अध्याय अठारह उपसंहार—संन्यास की सिद्धि 

https://youtu.be/VQSon4RQDcM

1 अर्जुन ने कहा— हे महाबाहु! मैं त्याग का उद्देश्य जानने का इच्छुक हूँ और हे केशिनिषूदन, हे हृषिकेश! मैं त्यागमय जीवन (संन्यास आश्रम) का भी उद्देश्य जानना चाहता हूँ।

2 श्रीभगवान ने कहा— भौतिक इच्छा पर आधारित कर्मों के परित्याग को विद्वान लोग संन्यास कहते हैं और समस्त कर्मों के फल-त्याग को बुद्धिमान लोग त्याग कहते हैं।

3 कुछ विद्वान घोषित करते हैं कि समस्त प्रकार के सकाम कर्मों को दोषपूर्ण समझ कर त्याग देना चा

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